तरंग, विशेषताएँ // class 11physics chapter 15 waves mp board

Sachin ahirwar
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अध्याय 15

तरंगें

तरंग, विशेषताएँ  // class 11physics chapter 15 waves mp board

class 11 physics chapter 15 waves mp board solutions // अध्याय 15 तरंगें pdf // कक्षा 11 की तरंगें क्या हैं? 

प्रश्न 25. प्रगामी तरंग किसे कहते हैं ? इसकी चार विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर- वह तरंग जिसके किसी माध्यम में संचरित होने पर माध्यम के कण सरल आवर्त गति में कम्पन  करते हैं, प्रगामी तरंग कहलाती है।

 

विशेषताएँ

(i) इन तरंगों के संचरण में माध्यम के कण अपनी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर सरल आवर्त गति में कम्पन करते हैं, लेकिन वे अपना स्थान नहीं छोड़ते हैं (अर्थात् माध्यम के कण तरंग के साथ आगे नहीं बढ़ते हैं)।

(ii) ये तरंगें माध्यम में एक निश्चित वेग से आगे बढ़ती हैं। (iii) इन तरंगों द्वारा माध्यम में ऊर्जा का संचरण होता है।

(iv) इन तरंगों में किसी क्षण पर यदि माध्यम के किसी बिन्दु पर शीर्ष या सम्पीड़न बनता है तो T/2 समय पश्चात् उस स्थान पर गर्त या विरलन बनता है जहाँ T तरंग का आवर्तकाल है। 

 

प्रश्न 26. तरंग गति से सम्बन्धित आवृत्ति, तरंगदैर्घ्य और तरंग वेग की परिभाषा दीजिए। 

उत्तर- माध्यम के किसी बिन्दु से 1 सेकण्ड में गुजरने वाली तरंगों की संख्या को उसकी आवृत्ति कहते हैं। इसे n अक्षर से व्यक्त करते हैं। 

तरंगदैर्ध्य एक तरंग की लम्बाई को उसकी तरंगदैर्घ्य कहते हैं। इसे अक्षर lamda से व्यक्त करते हैं। 

तरंग वेग-माध्यम में 1 सेकण्ड में चली गयी दूरी को तरंग वेग कहते हैं। इसे अक्षर V से व्यक्त करते हैं

 

प्रश्न 28. तरंगों के अध्यारोपण का क्या सिद्धान्त है ? यह सिद्धान्त कब लागू नहीं होता है ? 

उत्तर- अध्यारोपण के सिद्धान्तानुसार, जब दो तरंगें माध्यम के किसी कण को साथ-साथ प्रभावित करती हैं तो उस कण पर प्रत्येक तरंग अपना अलग-अलग विस्थापन उत्पन्न करती है। इसके फलस्वरूप उस कण का परिणामी विस्थापन, तरंगों के अलग-अलग विस्थापनों का बीजीय योग होता है। यह सिद्धान्त बहुत बड़े आयाम की तरंगों पर लागू नहीं होता है। 

 

प्रश्न 29. ध्वनि तरंगों के व्यतिकरण का अर्थ समझाइए ।

उत्तर- जब लगभग समान आयाम तथा समान आवृत्ति की दो तरंगें माध्यम में एक ही दिशा में तथा एक हो रेखा में चलती हैं तो उनके अध्यारोपण से विभिन्न स्थानों पर परिणामी तीव्रता भिन्न-भिन्न होती है। कुछ स्थानों पर परिणामी तीव्रता उनकी अलग-अलग तीव्रताओं के योग से भी अधिक होती है तथा कुछ स्थानों पर परिणामी तौव्रता उनकी अलग-अलग तीव्रताओं के अन्तर से भी कम होती है। इस घटना को व्यतिकरण कहते हैं।

 

प्रश्न 30. ध्वनि तरंगों के व्यतिकरण के लिए आवश्यक प्रतिबन्ध लिखिए। 

उत्तर- दो ध्वनि तरंगों में व्यतिकरण होने के लिए निम्नलिखित आवश्यक प्रतिबन्ध हैं :

 

(i) दोनों तरंगों के मध्य कलान्तर, समय के साथ नहीं बदलना चाहिए अर्थात् दोनों तरंगें कला सम्बद्ध होनी चाहिए, अन्यथा समय के साथ कलान्तर बदलने से किसी भी स्थान पर परिणामी तीव्रता स्थिर नहीं रहेगी, बल्कि समय के साथ बदलेगी।

 

(ii) दोनों तरंगों के आयाम लगभग बराबर होने चाहिए अन्यथा विनाशी व्यतिकरण की स्थिति में ध्वनि की परिणामी तोव्रता शून्य नहीं होगी तथा तब सम्पोषी व विनाशी व्यतिकरण में अन्तर स्पष्ट करना कठिन होगा। 

(iii) दोनों तरंगों द्वारा उत्पन्न विस्थापन एक हो सरल रेखा में होने चाहिए।

(iv) दोनों तरंगों की तरंगदैघ्यं तथा आवृत्ति समान होनी चाहिए।

 

प्रश्न 32. क्या व्यतिकरण की घटना में ऊर्जा संरक्षित रहती है ? यदि हाँ, तो कैसे ? 

उत्तर- हाँ, व्यतिकरण की घटना में ऊर्जा संरक्षित रहती है। विनाशी व्यक्तिकरण की स्थिति के कणों का आयाम न्यूनतम होता है, अतः वहाँ ऊर्जा भी न्यूनतम होती है। यहाँ की ऊर्जा उन स्थानों पर स्थानान्तरित हो जाती है जहाँ पर रचनात्मक व्यतिकरण होता है।

 

प्रश्न 33. विस्पन्द (या संकर) किसे कहते हैं? विस्पन्द बनने के लिए आवश्यक शर्तों का उल्लेख कीजिए।

 

उत्तर- जब समान आयाम की दो ध्वनि तरंगें जिनको आवृत्तियाँ लगभग समान हैं, (अर्थात् बहुत कम अन्तर हो), एक ही दिशा में चलती हैं तो उनके अभ्यारोपण से एक ही बिन्दु पर समय के साथ क्रमानुसार ध्वनि की तीव्रता बढ़ती और घटती है। ध्वनि के इस प्रकार घटने व बढ़ने को विस्पन्द कहते हैं। विस्पन्द बनने के लिए आवश्यक है कि (i) दोनों तरंगों के आयाम समान होने चाहिए, (ii) दोनों तरंगों की आवृत्तियों में बहुत कम अन्तर होना चाहिए, तथा (iii) दोनों तरंगें एक ही दिशा में चलनी चाहिए।



प्रश्न 35. विस्पन्द के कोई तीन उपयोग लिखिए। 

उत्तर- (i) किसी स्वरित्र की अज्ञात आवृत्ति ज्ञात करना।

(ii) किसी वाद्य यन्त्र को समस्वरित करना।

(iii) खानों में हानिकारक गैस का पता लगाना ।

 

प्रश्न 36. अप्रगामी तरंगें क्या हैं? अप्रगामी तरंगें बनने के लिए आवश्यक प्रतिबन्ध क्या हैं? 

उत्तर- जब समान आयाम तथा समान आवृत्ति की दो प्रगामी तरंगें किसी एक बद्ध माध्यम में समान चाल से एक ही रेखा पर, परन्तु विपरीत दिशा में चलती हैं तो उनके अध्यारोपण से उत्पन्न होने वाली परिणामी तरंग, समय के साथ आगे नहीं बढ़ती है। इसे अप्रगामी तरंग कहते हैं।

 

आवश्यक प्रतिबन्ध - (1) दोनों प्रगामी तरंगों की आवृत्ति समान होनी चाहिए। 

(ii) दोनों प्रगामी तरंगों का आयाम समान होना चाहिए।

(iii) दोनों तरंगें एक ही रेखा पर परस्पर विपरीत दिशा में चलनी चाहिए।

प्रश्न 37. अप्रगामी तरंगें क्या है ? अप्रगामी तरंगों की चार विशेषताएँ लिखिए। 

उत्तर-किसी वद्ध माध्यम में दो समान, आयाम, समान आवृत्ति, लेकिन परस्पर विपरीत दिशा में चलने वाली प्रगामी तरंगों के अध्यारोपण से बनी तरंगें अप्रगामी तरंगें कहलाती है। 

विशेषताएँ— (i) ये तरंगें माध्यम में आगे नहीं बढ़ती हैं, बल्कि अपने ही स्थान पर स्थिर रहकर फैलती व सिकुड़ती रहती हैं। इन तरंगों के इस गुण के कारण ही इन्हें अप्रगामी तरंगें कहते हैं।

(ii) इन तरंगों द्वारा ऊर्जा का कोई भी स्थानान्तरण नहीं होता है। 

(iii) इन तरंगों में माध्यम के कुछ बिन्दुओं पर स्थित कण सदैव स्थिर रहते हैं। इन बिन्दुओं को निस्पन्द (nodes) कहते हैं।

(iv) किन्हीं भी दो क्रमागत निस्पन्दों के बीच के बिन्दु पर स्थित कण का विस्थापन अन्य सभी कणों की अपेक्षा अधिकतम होता है। इन्हें प्रस्पन्द (antinodes) कहते हैं।

 

प्रश्न 38. अप्रगामी तरंग का समीकरण स्थापित कीजिए, जबकि प्रगामी तरंग का परावर्तन मुक्त सिरे से होता है

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प्रश्न 41. संनादी किसे कहते हैं? बनी डोरी में कौन-कौन से संनादी उत्पन्न किये जा सकते हैं ? चित्र खींचकर समझाइए ।

उत्तर- उत्तर- संनादी वे स्वरक होते हैं जिनकी आवृत्ति, मूल स्वरक की आवृत्ति की पूर्ण गुणज होती है। वे संनादी जिनकी आवृत्तियाँ, मूल स्वरक की आवृत्ति की दोगुनी, चौगुनी, छः गुनी, ......... होती हैं, सम संनादी कहलाते हैं तथा वे संनादी जिनकी आवृत्तियाँ मूल स्वरक की आवृत्ति की तिगुनी, पाँच गुनी, सात गुनी, …….. होती हैं, विषम संनादी कहलाते हैं। 

 

तनी डोरी में सम तथा विषम सभी प्रकार के संनादी उत्पन्न किये जा सकते हैं। चित्र 10.6 (a), (b) तथा (c) में क्रमश: मूल स्वरक, द्वितीय संनादी तथा तृतीय संनादी प्रदर्शित हैं जिनकी आवृत्तियों का अनुपात n1 : n2 : n3 = 1 : 2 : 3 है

 

प्रश्न 43. ऑर्गन नलिका किसे कहते हैं ? खुली ऑर्गन नलिका में मूल कम्पन की आवृत्ति का सूत्र लिखिए। इसमें कौन-कौन से संनादी उत्पन्न किये जा सकते हैं? 

 उत्तर- वह नली जिसमें वायु (या गैस) भरकर उसमें कम्पन करोके ध्वनि उत्पन्न की जाती है, ऑर्गन नलिका कहलाती है।

 

प्रश्न 55. (1) डॉप्लर का प्रभाव क्या है ?

(II) डॉप्लर प्रभाव के लागू होने की क्या सीमा है ?

 

उत्तर- (i) डॉप्लर का प्रभाव जब ध्वनि स्रोत तथा श्रोता के बीच सापेक्ष गति होती है तो ध्वनि स्रोत की वास्तविक आवृत्ति श्रोता को परिवर्तित होती हुई प्रतीत होती है। 

(ii) डॉप्लर का प्रभाव लागू होने की सीमा-डॉप्लर का प्रभाव केवल तभी लागू होता है, जबकि ध्वनि स्त्रोत या प्रेक्षक का वेग, ध्वनि के बैग से कम या बराबर होता है।

 

प्रश्न 56. डॉप्लर प्रभाव के दैनिक जीवन से सम्बन्धित कोई दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर- (1) यदि रेल का इंजन सीटी देता हुआ प्लेटफार्म की ओर आता है तो प्लेटफार्म पर खड़े व्यक्ति को सीटी की आवृत्ति बढ़ी हुई प्रतीत होती है और यदि दूर जाता है तो आवृत्ति घटी हुई प्रतीत होती है। 

(ii) कम्पित स्वरित्र को कान के पास लाने पर उसकी आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है और दूर ले जाने पर आवृत्ति घटती हुई प्रतीत होती है।

 

प्रश्न 57. सुपरसोनिक विमानों की ध्वनि पृथ्वी पर सुनायी नहीं देती है, क्यों ?

उत्तर- सुपरसोनिक विमानों की ध्वनि पृथ्वी पर सुनायी नहीं देती है, क्योंकि सुपरसोनिक विमानों का वेग, ध्वनि के वेग के बराबर या इससे अधिक होता है। फलतः इसकी आवृत्ति श्रव्यता की सीमा से बाहर होती है

 

प्रश्न 11. अनुप्रस्थ तथा अनुदैर्घ्य तरंगों में अन्तर लिखिए।

उत्तर- अनुप्रस्थ तरंगें तथा अनुदैर्घ्य तरंग में अन्तर


अनुप्रस्थ तरंगें

अनुदैर्घ्य तरंगें


इनमें माध्यम के कण अपनी मध्यमान स्थिति के ऊपर-नीचे, या अगल-बगल, अर्थात् तरंग गति की दिशा के लम्बवत् कम्पन करते हैं।

इनमें माध्यम के कण अपनी मध्यमान स्थिति के इधर-उधर, अर्थात् तरंग गति की दिशा में कम्पन करते हैं।


अनुप्रस्थ तरंग, शीर्ष एवं गर्त के रूप में संचरित होती है। एक शीर्ष तथा एक गर्त मिलकर एक तरंग बनाते हैं।

अनुदैर्घ्य तरंग, सम्पीडन एवं विरलन के रूप में संचरित होती हैं। एक सम्पीडन तथा एक विरलन मिलकर एक तरंग बनाते हैं।'


शीर्ष पर माध्यम के कणों का विस्थापन धनात्मक व अधिकतम होता है तथा गर्त पर माध्यम के कणों का विस्थापन ऋणात्मक व अधिकतम होता है।

सम्पीडन की स्थिति पर माध्यम के कणों का वेग अधिकतम एवं धनात्मक होता है तथा विरलन पर माध्यम के कणों का वेग अधिकतम एवं ऋणात्मक होता है।


ये तरंगें केवल उसी माध्यम से संचरित हो सकती हैं जिसमें दृढ़ता हो, अर्थात् ये तरंगें केवल ठोसों में तथा द्रव की सतह पर ही उत्पन्न की जा सकती हैं। द्रव के अन्दर या गैस में ये तरंगें उत्पन्न नहीं। की जा सकती हैं।

ये तरंगें उस माध्यम में संचरित हो सकती हैं जिसमें आयतन प्रत्यास्थता हो, अर्थात् ये तरंगें , तीनों माध्यमों (ठोस, द्रव तथा गैस) में उत्पन्न की जा सकती हैं।


इन तरंगों के संचरण से माध्यम के घनत्व तथा दाब में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

इन तरंगों के संचरण से सम्पीडन की स्थितियों पर माध्यम का घनत्व व दाव अधिक हो जाता है तथा विरलन की स्थितियों पर माध्यम का घनत्व व दाब कम हो जाता है।


प्रश्न 15. व्यतिकरण तथा विस्पन्द में चार अन्तर लिखिए।


उत्तर-


व्यतिकरण तथा विस्पन्द में अन्तर



व्यतिकरण

विस्पंद


दोनों ध्वनि तरंगों की आवृत्तियाँ बिल्कुल बराबर होनी चाहिए।

दोनों ध्वनि तरंगों की आवृत्तियाँ लगभग बराबर होनी चाहिए।


दोनों ध्वनि तरंगों के बीच कला अन्तर समय के साथ नियत रहता है।

दोनों ध्वनि तरंगों के बीच कला-अन्तर समय के साथ नियमित रूप से बदलता रहता है।


अधिकतम तथा न्यूनतम ध्वनि तीव्रताओं के बिन्दुओं की स्थितियाँ अचर रहती हैं तथा उनमें समय के साथ कोई भी परिवर्तन नहीं होता है, अर्थात् यदि किसी बिन्दु पर ध्वनि की तीव्रता अधिकतम है तो वहाँ ध्वनि की तीव्रता सदैव ही बनी रहती है।

माध्यम के प्रत्येक बिन्दु पर ध्वनि की तीव्रता समय के साथ क्रमानुसार घटती तथा बढ़ती रहती है, अर्थात् यदि किसी बिन्दु पर किसी समय ध्वनि की तीव्रता अधिकतम है तो कुछ समय बाद उसी बिन्दु पर ध्वनि की तीव्रता न्यूनतम हो जाती है।


माध्यम के भिन्न-भिन्न बिन्दुओं पर आयाम 

भिन्न-भिन्न होता है। किसी बिन्दु पर आयाम अधिकतम होता है तथा किसी बिन्दु पर आयाम न्यूनतम होता है।

माध्यम के एक ही बिन्दु पर आयाम समय के साथ बदलता रहता है। किसी क्षण आयाम अधिकतम होता है तथा दूसरे क्षण आयाम न्यूनतम होता है।


प्रश्न 17. प्रगामी तथा अप्रगामी तरंगों के गुणों में पाँच अन्तर लिखिए

उत्तर

प्रगामी तथा अप्रगामी तरंग में अन्तर



प्रगामी तरंगें

अप्रगामी तरंगें


ये तरंगें माध्यम में निश्चित वेग से आगे बढ़ती हैं। आगे बढ़ने की क्रिया में अनुप्रस्थ प्रगामी तरंगों में शीर्ष और गर्त तथा अनुदैर्ध्य प्रगामी तरंगों में सम्पीडन और विरलन क्रमिक रूप में बनते तथा बिगड़ते रहते हैं। यही शीर्ष और गर्त अथवा सम्पीडन और विरलन माध्यम में आगे बढ़ते हैं जिससे तरंगों की गति का आभास होता है।

ये तरंगें माध्यम में आगे नहीं बढ़ती हैं, बल्कि अपने स्थान पर ही बनी रहती हैं। इसलिए इन तरंगों को अप्रगामी तरंगें कहते हैं


इन तरंगों में माध्यम का प्रत्येक कण अपने पास वाले दूसरे कण को ऊर्जा प्रदान करता है।

इन तरंगों द्वारा माध्यम में ऊर्जा स्थानान्तरित नहीं होती है।



प्रगामी तरंगों के प्रभाव से माध्यम का प्रत्येक कण अपनी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर सरल आवर्त गति करने लगता है। इस आवर्त गति में प्रत्येक कण का आयाम समान होता है।

अप्रगामी तरंगों के प्रभाव से माध्यम के सभी कण गति नहीं करते हैं। प्रत्येक कण का आयाम भी भिन्न-भिन्न होता है। निस्पन्द पर कण का आयाम शून्य तथा प्रस्पन्द पर कण का आयाम अधिकतम होता है, अर्थात् आयाम का मान निस्पन्द से प्रस्पन्द की ओर जाने पर बढ़ता जाता है और प्रस्पन्द से निस्पन्द की ओर जाने पर घटता जाता है।


इन तरंगों में किसी भी स्थिति में माध्यम के सभी कण एक साथ अपनी मध्यमान स्थिति में नहीं होते हैं।

इन तरंगों में एक आवर्त काल में दो बार माध्यम के सभी कण एक साथ अपनी मध्यमान स्थिति में आते हैं (अर्थात् एक आवर्त काल में दो बार सभी कणों का विस्थापन शून्य हो जाता है। 


प्रगामी तरंगों में दो क्रमिक गत अथवा शीर्षो या दो क्रमिक सम्पीडनों अथवा विरलनों के बीच की दूरी lamda (= तरंगदैर्घ्य) होती है।

अप्रगामी तरंगों में दो क्रमिक निस्पन्दों अथवा दो क्रमिक प्रस्पन्दों के बीच की दूरी lamda /2 होती है।






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