कक्षा ग्यारहवीं के भौतिक विज्ञान के 14 पाठ के प्रश्न उत्तर एनसीईआरटी द्वारा | एनसीआरटी सॉल्यूशन कक्षा ग्यारहवीं भौतिक विज्ञान 14 पाठ दोलन के प्रश्न उत्तर
अध्याय 14: दोलन
आवर्ती गति, आवर्तकाल, आवृत्ति, समय के फलन के रूप में विस्थापन आवर्ती फलन। सरल आवर्त गति (S. H. M) और इसका समीकरण कला कमानी के दोलन-प्रत्यानयन बल और बल नियतांक, (S. H. M) में ऊर्जा गविज और स्थितिज ऊर्जाएँ, सरल लोलक - इसके आवर्तकाल के लिए व्यंजक की व्युत्पत्ति। मुक्त, प्रणोदित तथा अवमंदित दोलन (केवल गुणात्मक धारणा), अनुनाद |
प्रश्न 1. सरल आवर्त गति किसे कहते हैं ?
उत्तर- जब कोई पिण्ड अपनी माध्य स्थिति के दोनों और सरल रेखा में इस प्रकार आवर्त गति करता है। कि इसका त्वरण प्रत्येक स्थिति में कण के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है तथा त्वरण की दिशा सदैव माध्य स्थिति की और होती है तब पिण्ड की गति सरल आवर्त गति कहलाती है।
या दूसरे शब्दों में प्रत्यानयन बल के अन्तर्गत पिण्ड की गति रैखिक सरल आवर्त गति होती है।
प्रश्न 2. सरल आवर्त गति की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- (i) वस्तु अपनी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर सरल रेखा में गति करती है।
(ii) गति करती हुई वस्तु एक निश्चित समय के उपरान्त अपनी मध्यमान स्थिति से गुजरती है। इस निश्चित समय को आवर्तकाल कहते हैं।
(iii) वस्तु पर लगने वाला बल, मध्यमान स्थिति से विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है तथा सदैव मध्यमान स्थिति की ओर होता है।
(iv) यान्त्रिक ऊर्जा सदैव संरक्षित रहती है। गतिज ऊर्जा, स्थितिज ऊर्जा में तथा स्थितिज ऊर्जा, गतिज ऊर्जा में बदलती रहती है।
प्रश्न 10. सरल लोलक को जब माध्य स्थिति से हटाया जाता है तो वह दोलन करने लगता है, क्यों ?
उत्तर- चित्र 10.3 जब लोलक को माध्य स्थिति A से विस्थापित करके स्थिति B पर पहुँचा दिया जाता है तो स्पष्ट है कि लोलक कुछ ऊपर उठ जाता है और उसकी स्थितिज ऊर्जा बढ़ जाती है। अब यदि लोलक को स्थिति B पर स्वतन्त्र छेड़ दिया जाता है तो उसका गुरुत्व केन्द्र स्थायी सन्तुलन के लिए नीचे की ओर गिरता है और स्थिति A पर वापस पहुंचते-पहुँचते उसकी सम्पूर्ण स्थितिज ऊर्जा, गतिज ऊर्जा में बदल जाती है। स्थिति A पर आकर लोलक रुकता नहीं है, बल्कि गति के जड़त्व के कारण आगे की ओर बढ़ जाता है और माध्य स्थिति A के दोनों और दोलन करता रहता है।
चित्र 10.3
प्रश्न 11. सरल लोलक के आवर्तकाल का सूत्र लिखो तथा बताओ कि यह किन-किन कारकों पर तथा किस प्रकार निर्भर करता है ?
उत्तर- सरल लोलक का आवर्तकाल T= 2π√ l/g स्पष्ट है कि
(i) सरल लोलक का आवर्तकाल T, लोलक की प्रभावकारी लम्बाई l के वर्गमूल के अनुक्रमानुपाती होता है (अर्थात् T अनुक्रमानुपाती D )
(ii) सरल लोलक का आवर्तकाल T गुरुत्वीय त्वरण g के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होता है (अर्थात् T अनुक्रमानुपाती 1/√ g
प्रश्न 12. एक सरल लोलक का गोलक जल से भरी एक गेंद है। यदि गेंद की तली में एक छोटा छिद्र कर दिया जाये तो इसके आवर्तकाल पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
उत्तर- यदि एक सरल लोलक का गोलक एक खोखली गेंद है जिसमें जल भरा है तो गेंद की तली में छेद करने पर जब जल बाहर निकलेगा तो उसका गुरुत्व केन्द्र नीचे आता जायेगा जिससे प्रभावकारी लम्बाई 7 के बढ़ने से लोलक का आवर्तकाल T लगातार बढ़ता जायेगा। जब काफी जल निकल जायेगा (अर्थात् गेंद आधे से अधिक खाली होने लगेगी) तो गुरुत्व केन्द्र पुनः ऊपर उठने लगेगा जिससे लोलक की प्रभावकारी लम्बाई घटेगी तथा आवर्तकाल T पुनः घटने लगेगा। जब गेंद जल से पूर्णतः खाली हो जायेगी तो गुरुत्व केन्द्र फिर मध्य में आ जायेगा तथा लोलक का आवर्तकाल अपने पूर्व मान को ग्रहण कर लेगा।
प्रश्न 13. क्या कारण है कि गर्मी के दिनों में लोलक घड़ी सुस्त हो जाती है जबकि जाड़े के दिनों में तेज हो जाती है ?
उत्तर- गर्मी के दिनों में लोलक घड़ी के लोलक की लम्बाई ऊष्मीय प्रसार के कारण बढ़ जाती है, अतः उसका आवर्तकाल भी बढ़ जाता है, फलतः बड़ी सुस्त हो जाती है। इसके विपरीत, जाड़े के दिनों में लोलक की लम्बाई सिकुड़ जाती है जिससे उसका आवर्तकाल घट जाता है तथा घड़ी तेज हो जाती है।
प्रश्न 14. क्या कारण है कि उपग्रह के अन्दर स्प्रिंग वाली घड़ी प्रयुक्त की जाती है, न कि लोलक घड़ी।
उत्तर- उपग्रह के अन्दर प्रत्येक वस्तु भारहीनता की स्थिति में होती है अर्थात गुरुत्वीय त्वरण g ) होता है अतः वहाँ सरल लोलक का आवर्तकाल ]= (अनन्त) होगा (अर्थात् लोलक दोलन नहीं करेगा। यही कारण है कि उपग्रह के अन्दर समय ज्ञात करने के लिए स्प्रिंग वाली घड़ी प्रयुक्त की जाती है, न कि लोलक घड़ी।
प्रश्न 15. सरल लोलक को पहाड़ या खान में ले जाने पर उसके आवर्तकाल पर क्या प्रभाव पड़ेगा तथा क्यों ?।
उत्तर- सरल लोलक को पहाड़ या खान में ले जाने पर उसका आवर्तकाल बढ़ जायेगा क्योंकि पहाड़ या खान में जाने पर गुरुत्वीय त्वरण g का मान घटता है तथा सरल लोलक का आवर्तकाल I. गुरुत्वीय त्वरण g के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
प्रश्न 17. एक दोलन किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर - कम्पन कर रहे कण द्वारा एक और अधिकतम विस्थापित स्थिति से दूसरी ओर अधिकतम विस्थापित स्थिति पर जाकर पुनः अपनी पूर्व स्थिति पर वापस आ जाने को एक दोलन कहते हैं।
दोलन मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं-
(i) मुक्त दोलन,
(ii) अवमन्दित दोलन तथा
(iii) प्रणोदित दोलन ।
प्रश्न 18. निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए :
(i) मुक्त दोलन, (II) अवमन्दित दोलन, (iii) प्रणोदित दोलन, (iv) अनुनादी दोलन ।
उत्तर- (i) मुक्त दोलन-बाह्य बल की अनुपस्थिति में कण के नियत आयाम एवं नियत आवृत्ति के दोलन मुक्त दोलन कहलाते हैं।
(ii) अवमन्दित दोलन- बाह्य घर्षण बल की उपस्थिति में वस्तु के क्रमशः घटते आयाम के दोलन अवमन्दित दोलन कहलाते हैं।
(iii) प्रणोदित दोलन- बाह्य आवर्ती बल की उपस्थिति में कण के दोलन प्रणोदित दोलन कहलाते हैं।
(iv) अनुनादी दोलन- यदि बाह्य आवर्ती वल की आवृत्ति, कण के मुक्त दोलनों की आवृत्ति के बराबर होती है तो इन्हें अनुनादी दोलन कहते हैं
प्रश्न . अवमन्दित दोलनों से क्या अभिप्राय है? एक उदाहरण दीजिए तथा विस्थापन समय ग्राफ खींचिए।
उत्तर- यदि कम्पन करने वाली वस्तु के कम्पन माध्यम के घर्षण बल आदि से प्रभावित होते हैं तो वस्तु के कम्पन का आयाम लगातार समय के साथ कम होता जाता है। इन कम्पनों को अवमन्दित कम्पन कहते हैं। चित्र 10.5 में अवमन्दित कम्पन प्रदर्शित किये गये हैं। साधारणतः सरल लोलक के (वायु की उपस्थिति में) कम्पन, अवमन्दित कम्पन होते हैं, क्योंकि लोलक के दोलन का आयाम, समय के साथ धीरे-धीरे घटता जाता है।
चित्र 10.5
उदाहरण- वायु में सरल लोलक के दोलन।
प्रश्न . प्रणोदित दोलनों से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर- जब कोई वस्तु बाह्य आवर्ती बल के प्रभाव में बाह्य आवर्ती वल की आवृत्ति से दोलन करती है तो वस्तु के दोलन प्रणोदित दोलन कहलाते हैं।
उदाहरण- तार वाले वाद्य यन्त्रों (जैसे, स्वरमापी, सितार, आदि) में तार के नीचे एक खोखला बॉक्स होता है जिसे ध्वनि बॉक्स कहते हैं। जब यन्त्र के तार में दोलन उत्पन्न किये जाते हैं तो उसके नीचे लगे सेतु द्वारा कम्पन, ध्वनि बॉक्स तक पहुँच जाते हैं जिससे बॉक्स के अन्दर की वायु में प्रणोदित दोलन उत्पन्न हो जाते हैं।
प्रश्न . अनुनाद की घटना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर- यदि किसी वस्तु पर लगाये गये बाह्य आवर्ती चल (प्रेरक) की आवृत्ति, उस कम्पन करने वाली वस्तु (प्रेरित) की स्वाभाविक आवृत्ति के ठीक बराबर होती है तो प्रणोदित दोलनों का आयाम अधिकतम हो जाता है। इन दोलनों को अनुनादी दोलन कहते हैं तथा इस घटना को अनुनाद कहते हैं।
प्रश्न . क्या कारण है कि सेना को पुल पार करते समय कदम तोड़कर चलने का आदेश दिया जाता है ?
उदाहरण- यदि किसी सेना को पुल के पार उतरना है तो सैनिकों को कदम तोड़कर चलने का आदेश दिया जाता है। इसका कारण यह है कि यदि सैनिक कदम मिलाकर एक साथ अपने दायें तथा बायें पैरों को पुल पर मारते हैं तो पुल पर एक बड़ा आवर्ती बल लगता है। ऐसी परिस्थिति में पुल में अनुनादों कम्पन उत्पन्न हो सकते हैं जिससे पुल को क्षति पहुँच सकती है तथा वह हिलकर टूट भी सकता है।
प्रश्न . युग्मित दोलनों से क्या अभिप्राय है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-किसी निकाय में एक से अधिक अवयवों के दोलनों को युग्मित दोलन कहते हैं। युग्मित दोलनों में एक अवयव के दोलनों पर दूसरे अवयव की उपस्थिति का प्रभाव पड़ता है जिससे उनके दोलन सरल आवर्ती नहीं रहते हैं। ऐसे दोलनों का अध्ययन सामान्य विधाओं में किया जाता है जिसमें प्रत्येक विधा एक निश्चित आवृत्ति की सरल आवर्त गति होती है।
उदाहरण- दो युग्मित स्प्रिंगों से जुड़े द्रव्यमानों को दोलन गति।
प्रश्न . प्रणोदित तथा अनुनादी दोलनों में अन्तर समझाइए ।
उत्तर- प्रणोदित दोलन-यदि किसी दोलन करने वाली वस्तु पर बाह्य आवर्ती बल लगाकर उसे दोलित कराया जाता है तो वस्तु अपनी स्वाभाविक आवृत्ति से दोलन न करके, वाह्य आवर्ती वल की आवृत्ति से दोलन करने लगती है। वस्तु के ये दोलन प्रणोदित दोलन कहलाते हैं। बाह्य आवर्ती बल को प्रेरक (Driver) तथा इससे बाध्य होकर दोलन करने वाली वस्तु को प्रेरित वस्तु (Driven) कहते हैं। वास्तव में पहले तो वस्तु अपनी स्वाभाविक आवृत्ति से ही दोलन करने का प्रयत्न करती है, परन्तु बाह्य आवर्ती चल उन पर अपनी आवृत्ति आरोपित करने का प्रयत्न करता है। फलतः वस्तु का दोलन आयाम कभी घटता है तथा कभी बढ़ता है, परन्तु शीघ्र ही ये अनियमित दोलन समाप्त हो जाते हैं तथा वस्तु बाह्य आवर्ती वल की आवृत्ति से दोलन करने लगती है।
अनुनादी दोलन- जब दोलन करने वाली वस्तु पर लगाये गये बाह्य आवती बल (प्रेरक) की आवृत्ति, उस वस्तु (प्रेरित) को स्वाभाविक आवृत्ति के ठीक बराबर होती है तो प्रणोदित दोलनों का आयाम अधिकतमः हो जाता है। इन दोलनों को अनुनादी दोलन कहते हैं। इस प्रकार अनुनादी दोलन, प्रणोदित दोलनों की ही एक विशेष स्थिति है। सिद्धान्ततः अनुनादी दोलनों का आयाम अनन्त हो जाना चाहिए, लेकिन व्यवहार में अवमन्दन के कारण आयाम अनन्त नहीं हो पाता है। जितना अधिक अवमन्दन होता है, आयाम उतना ही कम होता है।
