कक्षा 10 इतिहास अध्याय 4 एनसीईआरटी समाधान, पाट 4 के सभी प्रश्नो के उत्तर
खंड 2 आजीविका अर्थव्यवस्था एवं समाज
अध्याय 4
★ औद्योगीकरण का युग ★
◆ महत्वपूर्ण बिंदु
● आधुनिक युग तकनीकी और प्रगति के भव्य युग में उभरता हुआ दिखाई देता है।
● औद्योगीकरण के इतिहास अकसर प्रारम्भिक फैक्ट्रियों की स्थापना से शुरू होते हैं।
● इंग्लैण्ड और यूरोप में फैक्ट्रियों की स्थापना से भी पहले ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिये बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था।
● सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों की तरफ रुख करने लगे थे।
● उस समय विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण चीजों की माँग बढ़ने लगी थी।
● इंग्लैण्ड में सबसे पहले 1730 के दशक में कारखाने खुले लेकिन उनकी संख्या में तेजी से इजाफा अठारहवीं सदी के आखिर में ही हुआ।
● कपास (कॉटन) नए युग का पहला प्रतीक थी।
● सूती उद्योग और कपास उद्योग ब्रिटेन के सबसे फलते-फूलते उद्योग थे।
● 1840 के दशक से इंग्लैण्ड में और 1860 के दशक से उसके उपनिवेशों में रेलवे का विस्तार होने लगा था।
● इतिहासकारों के अनुसार, उन्नीसवीं सदी के मध्य के औसत मजदूर मशीनों पर काम करने वाले नहीं बल्कि परम्परागत कारीगर और मजदूर होते थे।
● ईस्ट इंडिया कंपनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर ज्यादा प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की।
● ईस्ट इंडिया कंपनी को माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीदारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी गई।
● भारतीय स्थानीय बाजार में मैनचेस्टर के आयातित माल की भरमार होने लगी।
● बंबई में पहली कपड़ा मिल 1854 में लगी और दो साल बाद उसमें उत्पादन होने लगा।
● देश की पहली जूट मिल 1855 में और दूसरी 7 साल बाद 1862 में चालू हुई।
● बहुत सारे भारतीय व्यावसायिक समूह चीन के साथ पहले से व्यापार करते आ रहे थे।
● अठारहवीं सदी के आखिर से ही अंग्रेज भारतीय अफीम का चीन को निर्यात करने लगे थे।
● भारत में औद्योगिक साम्राज्य स्थापित करने वाले जमशेदजी नुसरवानजी टाटा जैसे पारसियों ने आंशिक रूप से चीन और इंग्लैण्ड को कच्ची कपास का निर्यात कर काफी धन अर्जित कर लिया था।
● पहले विश्वयुद्ध तक यूरोपीय प्रबंधकीय एजेंसियाँ भारतीय उद्योगों के विशाल क्षेत्र का नियंत्रण करती थीं।
● स्वदेशी आंदोलन में लोगों ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया।
● 1900 से 1912 के भारत में सूती कपड़े का उत्पादन दोगुना हो गया।
● आधुनिकीकरण न कर पाने और अमेरिका, जर्मनी व जापान के मुकाबले कमजोर जाने के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी।
● बीसवीं सदी में हथकरघों पर बने कपड़े के उत्पादन में लगातार सुधार हुआ ।
● औद्योगीकरण की शुरूआत से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों के बाजार को फैलाने में और एक नयी उपभोक्ता संस्कृति रचने में अपनी भूमिका निभाई है।
● जब किसी लेवल पर मोटे अक्षरों में 'मेड इन मैनचेस्टर' लिखा दिखाई देता तो खरीदारों को कपड़ा खरीदने में किसी तरह का डर नहीं रहता था।
● लेबलों पर सिर्फ शब्द और अक्षर ही नहीं होते थे, उन पर तसवीरें भी बनी होती थीं।
● इन लेबलों पर भारतीय देवी-देवताओं की तसवीरें प्रायः होती थीं। देवी-देवताओं की तस्वीर के बहाने निर्माता ये दिखाने की कोशिश करते थे कि ईश्वर भी चाहता है कि लोग उस चीज को खरीदें।
● उन्नीसवीं सदी के आखिर में निर्माता अपने उत्पादों को बेचने के लिए कैलेण्डर छपवाने लगे थे।
★ पाठ्यपुस्तक के प्रश्न उत्तर ★
संक्षेप में लिखें
प्रश्न 1. निम्नलिखित की व्याख्या करें-
(क) ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किए।
उत्तर- जेम्स हरप्रीत ने 1764 में स्पिनिंग जेनी का आविष्कार किया था व इस मशीन में कताई की प्रक्रिया को तेज कर दिया, ऊन उद्योग में स्पिनिंग जेनी मशीन का इस्तेमाल शुरू किय गया। इस मशीन के आने के बाद मजदूरों को माँग घटने लगी। एक ही पहिया घुमाने वाला एक मजदूर बहुत सारी तकलियों को घुमा देता था और एक साथ बहुत से धागे वन जाते थे। इससे बेरोजगारी की समस्या खड़ी हो गई। इस क्षेत्र में महिलाएँ अधिक संलग्न थीं। अतः इसका प्रभाव महिलाओं पर अधिक पड़ा। अतः ब्रिटेन की महिलाओं ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमला का दिया क्योंकि इस मशीन के कारण उनका रोजगार (नौकरियाँ) छिना जा रहा था।
(ख) सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गौधों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।
उत्तर- सत्रहवीं शताब्दी में विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण चीजों की माँग बढ़ने लगी थी। इस माँग को पूरा करने के लिए, यूरोपीय शहरों के सौदागर किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उनसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे। गाँवों में गरीब काश्तकार और दस्तकार सौदागरों के लिए काम करने लगे। इस समय काम चलाने के लिए छोटे किसान और गरीब किसान आमदनी के लिए नए मोड़ रहे थे। गाँवों में बहुत से किसानों के पास छोटे-मोटे खेत थे लेकिन उनसे परिवार के सभी लोगों का भरण-पोषण नहीं हो सकता था। शहरों के यूरोपीय सौदागर जब गाँवों में आए और उन्होंने माल पैदा करने के लिए पेशगी रकम दी तो किसान और कारीगर काम करने के लिए फौरन तैयार हो गए। ये लोग गाँव में रहकर अपने खेतों को सँभालते हुए, सौदागरों का काम भी कर लेते थे। इस व्यवस्था से शहरों और गाँवों के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित हुआ। सौदागर शहरों में रहते थे लेकिन उनके लिए काम ज्यादातर देहात में चलता था। चीजों का उत्पादन कारखानों के बजाय घरों में होता था और उस पर सौदागरों का पूर्ण नियंत्रण होता था।
(ग) सूरत बंदरगाह अठारहवीं सदी के अंत तक हाशिये पर पहुँच गया था।
उत्तर- गुजरात के तट पर स्थित सूरत बंदरगाह के जरिए भारत खाड़ी और लाल सागर के बंदरगाहों से जुड़ा हुआ था। 1750 के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियंत्रण वाला यह नेटवर्क टूटने लगा था। यूरोपीय कम्पनियों का अधिकार बढ़ने लगा और उन्होंने व्यापार पर अनुमति का अधिकार प्राप्त कर लिया था। इस कारण अधिकांश व्यापार बंबई से होने लगा था। इससे सूरत का बंदरगाह कमजोर पड़ने लगा। इस बंदरगाह से होने वाले निर्यात में भारी कमी आ गई। 18वीं सदी के आखिरी सालों में सूरत बंदरगाहों से होने वाले व्यापार का कुल मूल्य 1.6 करोड़ रुपया था। 1740 के दशक तक यह गिरकर केवल 30 लाख रुपए रह गया था।
(घ) ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्तों को नियुक्त किया था।
उत्तर- ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर ज्यादा प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की। कम्पनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।
कम्पनी को माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीददारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी गई। इसके लिए उन्हें पेशगी रकम दी जाती थी। एक बार काम का ऑर्डर मिलने पर बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्जा दे दिया जाता था। जो कर्ज लेते थे उन्हें अपना बनाया हुआ कपड़ा गुमाश्ता को ही देना पड़ता था। उसे वे किसी और व्यापारी को नहीं बेच सकते थे। ये गुमाश्ते अपने सिपाहियों और चपरासियों के साथ आते थे और माल समय पर तैयार नहीं होने की स्थिति में बुनकरों को सता देते थे। सता के तौर पर बुनकरों को अकसर पीटा जाता था और उन पर कोड़े बरसाए जाते थे। बुनकरों को कम्पनी से जो कीमत मिलती थी वह बहुत कम थी पर वे कर्मों की वजह से कंपनी से बंधे हुये थे।
प्रश्न 2. प्रत्येक वक्तव्य के आगे 'सही' या 'गलत' लिखें
(क) उन्नीसवीं सदी के आखिर में यूरोप की कुल श्रम शक्ति का 80 प्रतिशत तकनीकी: से विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहा था ।
(ख) अठारहवीं सदी तक महीन कपड़े के अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार पर भारत का दबदबा था।
(ग) अमेरिकी गृहयुद्ध के फलस्वरूप भारत के कपास निर्यात में कमी आई।
(घ) फ़्लाई शटल के आने से हथकरघा कामगारों की उत्पादकता में सुधार हुआ।
उत्तर- (क) गलत, (ख) सही, (ग) गलत, (घ) सही। प्रश्न 3. प्रश्न पूर्व औद्योगीकरण का मतलब बताएँ।
उत्तर पूर्व (आदि) औद्योगीकरण का मतलब उस समय से है जिस समय यूरोप औ इंग्लैण्ड में बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए माल का उत्पादन होता था। इस समय उत्पादन कारखानों में मशीनों की बजाय घरों पर होता था। इस समय उत्पादन गाँव में होता था तथा उत्पादन पर सौदागरों का नियंत्रण था। वे किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उन अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे। इस प्रकार औद्योगीकरण से पहले का वह समय जिस समय फैक्ट्रियों की स्थापना नहीं हुई थी और उत्पादन कार्य होता था पूर्व (आदि) औद्योगीकरण कहलाता है।
चर्चा करें
प्रश्न 1. उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे ?
उत्तर उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों से ज्यादा मजदूरों से काम करवाना अधिक पसंद करते थे क्योंकि मशीनों से एक जैसा एक ही उत्पाद बनता था लेकिन बाज़ार में अकसर बारीक डिजाइन और खास आकारों वाली चीज़ों की काफी माँग रहती थी। इन्हें बनाने के लिए यांत्रिक प्रौद्योगिकी की नहीं बल्कि इंसानी निपुणता की आवश्यकता होती थी। विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग, कुलीन और पूँजीपति वर्ग हाथों से बनी चीखों को ज्यादा महत्त्व देते थे हाथ से बनी चीजों को परिष्कार और सुरुचि का प्रतीक मानते थे। उसकी फ़िनिश अच्छी होती थी। उनको एक-एक करके बनाया जाता था। अतः सबका डिसाइन अलग-अलग और ज्यादा अच्छा होता था।
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी अतः बहुत सारे उद्योगपति मशीनों की अपेक्षा हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे।
बुक बाइंडिंग, प्रिंटिंग एवं बंदरगाहों पर जहाजों की मरम्मत और साफ-सफाई एवं सजावट का काम भी हाथों से ही किया जाता था। अतः वहाँ भी मजदूरों की आवश्यकता थी, मशीनों की नहीं। जिन उद्योगों में मौसम के साथ उत्पादन घटता-बढ़ता रहता था। वहाँ उद्योगपति मशीनों की बजाय मजदूरों को ही काम पर रखना पसंद करते थे।
प्रश्न 2- ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया ?
उत्तर- ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए
(i) कम्पनी ने बुनकरों से माल तैयार करवाने, बुनकरों को माल उपलब्ध कराने और कपड़ों को गुणवत्ता जांचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त किए जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।
(ii) कम्पनी बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्ज उपलब्ध कराने लगी।
(iii) कम्पनी ने माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीदारों के साथ कारोबार करने पर
पाबंदी लगा दो, इसके लिए उन्हें पेशगी रकम दी जाती थी। (iv) महीन कपड़े की मांग बढ़ने के साथ बुनकरों को अधिक कर्ज दिया जाने लगा। ज्यादा कमाई की आस में बुनकर पेशगी स्वीकार कर लेते थे।
(v) यूरोप में भारतीय कपड़ों की भारी माँग को देखते हुए बुनकर और आपूर्ति के सौदागरों पर नियंत्रण करना आवश्यक समझा। कम्पनो ने प्रतिस्पर्धा समाप्त करने, लागतों पर अंकुश रखने और कपास एवं रेशम से बनी चीजों की नियमित आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन और नियंत्रण की एक नई व्यवस्था लागू कर दो।
प्रश्न 3. कल्पना कीजिए कि आपको ब्रिटेन तथा कपास के इतिहास के बारे में विश्वकोश (Encyclopaedia) के लिए लेख लिखने को कहा गया है। इस अध्याय में दी गई जानकारियों के आधार पर अपना लेख लिखिए।
उत्तर- ब्रिटेन और कपास का इतिहास इंग्लैण्ड में औद्योगीकरण से पहले भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था। यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था। इस चरण को आदि औद्योगीकरण कहा जाता है। इंग्लैण्ड में सबसे पहल 1730 के दशक में कारखाने खुले लेकिन उनकी संख्या में 18वीं सदी के अंत में तेजी से वृद्धि हुई। कपास नए युग का प्रतीक था। 19वीं सदी के अंत में कपास के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हुई। 1760 में ब्रिटेन अपने कपास उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए 25 लाख पौंड कच्चे कपास का आयात करता था 11787 में यह आयात बढ़कर 220 लाख पौंड तक पहुँच गया। यह वृद्धि उत्पादन की प्रक्रिया में बहुत सारे बदलावों का परिणाम था।
18वीं सदी में कई ऐसे आविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया के हर चरण की कुशलता बड़ा दी। प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया और पहले से ज्यादा मजबूत धागों व रेशों का उत्पादन होने गया। इसके बाद रिचर्ड आइटी कपड़ा मिल की रूपरेखा सामने रखी। अभी तक कपड़ा उत्पादन पूरे देशात में फैला हुआ था। यह काम लोग अपने घर पर हो करते थे लेकिन अब महंगी नपी मशीनें खरीदकर उन्हें कारखानों में लगाया जा सकता था। कारखानों में सारी प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में आ गई थीं। सूती उद्योग और कपास उद्योग ब्रिटेन के सबसे फलते-फूलते उद्योग थे। कपास उद्योग 1840 के दशक तक औद्योगीकरण के पहले चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था। जब इंग्लैण्ड में कपास उद्योग विकसित हुआ तो वहाँ के उद्योगपति दूसरे देशों से आने वाले आयात को लेकर परेशान दिखाई देने लगे। उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयातित कपड़े पर आयात शुल्क वृसल करें जिससे मैनचेस्टर में बने कपड़े बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैण्ड में आराम से बिक सकें दसरी तरफ उन्होंने इंस्ट इंडिया कंपनी पर दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय बाजारों में भी बेचे ।
1860 के दशक में बुनकरों के सामने नयी समस्या खड़ी हो गई। उन्हें अच्छी कपास नहीं मिल पा रही थी। जब अमेरिकी गृहयुद्ध शुरू हुआ और अमेरिका से कपास की आमद बंद हो गई तो ब्रिटेन भारत से कच्चा माल मँगाने लगा। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आधुनिकीकरण न कर पाने और अमेरिका, जर्मनी व जापान के मुकाबले कमजोर पड़ जाने के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कपास का उत्पादन बहुत कम रह गया था और ब्रिटेन से होने वाले सूती कपड़े के निर्यात में जबरदस्त गिरावट आई थी।
प्रश्न 4. पहले विश्व युद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा ?
उत्तर- पहले विश्व युद्ध तक औद्योगिक विकास धीमा रहा। युद्ध ने एक नई स्थिति उत्पन्न कर दी थी। ब्रिटिश कारखाने सेना को जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध सम्बन्धी उत्पादन में व्यस्त थे इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया। भारतीय बाजारों को रातों रात एक विशाल देशी बाजार मिल गया और नए-नए कारखाने लगाए गए। युद्ध लम्बे समय चला जिसके परिणामस्वरूप भारतीय कारखानों में भी फौज के लिए जूट की बोरियाँ, फौजियों के लिए वर्दी के कपड़े, टेंट और चमड़े के जूते, घोड़े एवं खच्चर के लिए जीन तथा बहुत सारे अन्य सामान बनने लगे। पुराने कारखानों में उत्पादन बढ़ाने के लिए कई पालियों में काम होने लगा ।। बहुत सारे नए मजदूरों को काम पर रखा गया। प्रत्येक मजदूर को पहले से ज्यादा काम करना पड़ता था। यही कारण था कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत का औद्योगिक उत्पादन बढ़ गया।
परियोजना कार्य -
प्रश्न- अपने क्षेत्र में किसी एक उद्योग को चुनकर उसके इतिहास का पता लगाएँ। उसकी प्रौद्योगिकी किस तरह बदली ? उसमें मजदूर कहाँ से आते हैं ? उसके उत्पादों का विज्ञापन और मार्केटिंग किस तरह किया जाता है? उस उद्योग के इतिहास के बारे में उसके मालिकों और उसमें काम करने वाले कुछ मजदूरों से बात करके देखिए ।
उत्तर- छात्र केशव परियोजना पुस्तिका की सहायता लें।
★ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न ★
◆ वस्तुनिष्ठ प्रश्न ◆
प्रश्न 1. सही विकल्प चुनिए
● ब्रिटेन के सबसे बढ़ते उद्योग कौन-से थे
(i)सूती कपड़ा और जलपोत
(ii) सूती कपड़ा और चीनी उद्योग
(iii) सूती कपड़ा और धातु उद्योग
(iv) धातु उद्योग और चीनी उद्योग
उत्तर- (iii) सूती कपड़ा और धातु उद्योग
● स्पिनिंग जेनी क्या है -
(i) मंत्रालय
(ii) मशीन
(iii) युद्धपोत
(iv) उद्योग
उत्तर- (ii) मशीन
• निम्नलिखित में से कौन-से काम गुमाश्ता करते थे -
(I) बुनकरों पर निगरानी रखना
(ii) कपड़ों की गुणवत्ता जाँचना
(ii) माल इकट्ठा करना
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (iv) उपर्युक्त सभी
• गुमाश्ता थे
(i)कृषक
(ii) व्यवसायी
(iii) बिना वेतन का नौकर
(iv) ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्त वेतनभोगी कर्मचारी
उत्तर- (iv) ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्त वेतनभोगी कर्मचारी
● जॉबर कौन थे -
(i) वह व्यक्ति जिसे नए मज़दूरों की भर्ती के लिए उद्योगपति काम पर
(ii) किसानों द्वारा अपने उत्पादन को बेचने के लिए रखा गया व्यक्ति
(iii) वह व्यक्ति, जो एक फैक्ट्री में मशीनों का काम करता है।
(iv) ईस्ट इंडिया कंपनी का वेतनभोगी कर्मचारी
उत्तर- (i) वह व्यक्ति जिसे नए मजदूरों की भर्ती के लिए उद्योगपति काम पर रखते थे
● नए उपभोक्ता पैदा करने के लिए विज्ञापन किस प्रकार मददगार सिद्ध हो सकते हैं
(i) ये विभिन्न उत्पादों को जरूरी और वांछनीय बना देते हैं
(ii) वे लोगों की सोच बदल देते हैं और नई ज़रूरतें पैदा कर देते हैं।
(ii) ये उत्पादों के बाज़ार में फैलाने में मदद करते हैं
उत्तर- (iii) उपर्युक्त सभी
(iv) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) वह व्यक्ति जो रेशों के हिसाब से ऊन को छाँटता या स्टेपल करता है……….कहलाता है।
(ii) अंग्रेज़ भारतीय……….. का चीन को निर्यात करने लगे और उसके बदले में वे चीन से चाय इंग्लैंड ले जाने लगे थे।
(iii) 1760 के दशक में ईस्ट इंडिया कंपनी ने …….. राज्य में राजनीतिक सत्ता स्थापित की थी।
(iv) जब इंग्लैण्ड में कपास उद्योग विकसित हुये तो वहाँ के ............ ने ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय बाजारों में बेचने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी पर दबाव डाला।
(v) ब्रुम्बई. में पहला कपड़ा मिल …….. स्थापित किया गया था।
उत्तर - i. स्टेपलर, (ii) अंफीम, (iii) बंगाल, (iv) उद्योगपतियों, (v) 1854 ई. में
★ अति लघु उत्तरीय प्रश्न ★
प्रश्न- ई.टी. पॉल म्यूजिक कंपनी ने संगीत की किताब कब प्रकाशित की थी, इसके जिल्द पर क्या छपा था?
उत्तर- ई.टी. पॉल म्यूजिक कंपनी ने सन् 1900 में संगीत की एक किताब प्रकाशित की थी। इसके जिल्द पर नयी सदी के उदय (डॉन ऑफ द सेंचुरी) नामक चित्र छपा था।
प्रश्न- प्राच्य किसे कहते हैं?
उत्तर- भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित देश आमतौर पर यह शब्द एशिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पश्चिमी नजरिये में प्राच्य इलाके पूर्व आधुनिक, पारंपरिक और रहस्यमय थे।
प्रश्न- गिल्ड्स क्या थे ?
उत्तर गिल्ड्स उत्पादकों के संगठन होते थे, जो कारीगरों को प्रशिक्षण देते थे, उत्पादकों पर नियंत्रण रखते थे, प्रतिस्पर्धा और मूल्य तय करते थे तथा व्यवसाय में नए लोगों को आने से रोकते थे। शासकों ने भी विभिन्न गिल्ड्स को खास उत्पादों के उत्पादन और व्यापार का एकाधिकार दिया हुआ था।
प्रश्न स्टेपलर एवं फलर को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- स्टेपलर वह व्यक्ति जो रेशों के हिसाब से ऊन को स्टेपल करता है या छाँटता है। स्टेपलर कहलाता है।
फुलर वह व्यक्ति जो चुन्नटों के सहारे कपड़े को समेटता है यानी कपड़ों को फुल करता है फुलर कहलाता है।
प्रश्न- स्पिनिंग जेनी क्या है?
उत्तर- स्पिनिंग जेनी कताई करने की मशीन थी जिसे 1764 में जेम्स हरग्रीव्ज द्वारा बनाया गया था। इस मशीन से कताई की प्रक्रिया तेज हो गयी एवं मजदूरों की माँग घट गयी। एक ही पहिया घुमाने वाला एक मजदूर बहुत सारी तकलियों को घुमा देता था और इससे एक साथ कई धागे बनने लगते थे।
प्रश्न- 1760 के दशक के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से कपड़े के निर्यात को और फैलाना क्यों चाहती थी?
उत्तर- 1760 के दशक के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता के सुदृढ़ीकरण की शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में गिरावट नहीं आई। ब्रिटिश कपास उद्योग अभी फैलना शुरू नहीं हुआ था और यूरोप में बारीक भारतीय कपड़ों की भारी माँग थी। इसलिए कंपनी भी भारत से होने वाले कपड़े के निर्यात को ही और फैलाना चाहती थी।
प्रश्न 1860 के दशक में भारतीय बुनकरों को अच्छी किस्म की कपास की पर्याप्त आपूर्ति नहीं मिल पा रही थी।' कारण दीजिए।
उत्तर- जब अमेरिकी गृह युद्ध शुरू हुआ और अमेरिका से कपास की आमद बंद हो गई तो ब्रिटेन भारत से कच्चा माल मँगवाने लगा। भारत से कच्चे कपास के निर्यात में इस वृद्धि से उसकी कीमत आसमान छूने लगी। इस कारण भारतीय बुनकरों को अच्छी किस्म की कपास की पर्याप्त पूर्ति नहीं हो पा रही थी।
प्रश्न- भारतीय व्यापारियों के निर्यात व्यापार का नेटवर्क कब और क्यों टूटने लगा थी?
उत्तर- निर्यात व्यापार का नेटवर्क (तार) जिसमें अनेक भारतीय व्यापारी और बैंकर सक्रिय थे, 1750 के दशक तक टूटने लगा था। भारतीय व्यापारियों के निर्यात व्यापार के नेटवर्क के टूटने का मुख्य कारण यह था कि यूरोपीय कंपनियाँ भारत आने लगी थीं और राजनीतिक सा पर उनका प्रभाव स्थापित हो गया था।
प्रश्न जॉबर किसे कहते हैं?
उत्तर उद्योगपति नए मजदूरों की भर्ती करने के लिए किसी पुराने और विश्वस्त कर्मचारी को नियुक्त करते थे जिसे जॉबर कहा जाता था। वह अक्सर अपने गाँव से लोगों को काम करवाने के लिए लाता था।
प्रश्न 1840 के दशक के बाद रोजगार के साधनों के बढ़ने का क्या कारण था?
उत्तर- 1840 के दशक के बाद रोजगार के साधनों के बढ़ने के निम्नलिखित कारण थे
(i) सड़कों का निर्माण,
(ii) नए रेलवे स्टेशनों का निर्माण,
(iii) रेलवे लाइनों का विस्तार किया गया,
(iv) सुरंगें बनाई गई,
(v) निकासी और सीवर व्यवस्था बिछाई गई।
प्रश्न- द्वारकानाथ टैगोर कौन थे?
उत्तर ये भारत के उद्यमी थे जिन्होंने बंगाल के द्वारा चीन के साथ व्यापार में खूब पैसा कमाया और वे उद्योगों में निवेश करने लगे; उन्होंने जहाजरानी जहाज निर्माण, खनन बैंकिंग, बागान और बीमा क्षेत्र में निवेश किया था। 1840 के दशक में आए व्यापक व्यावसायिक संकट में इनका उद्यम बैठ गया।
प्रश्न- फ्लाई शटल क्या थी?
उत्तर यह रस्सियों और पुलियों के जरिए चलने वाला एक यांत्रिक औजार है, जिसका बुनाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह क्षैतिज धागे (ताना) को संववत् धागे (बाना) में पिरो देती है। फ्लाई शटल के आविष्कार से बुनकरों को बड़े कर चलाना और चौड़े अरत का कपड़ा बनाने में काफी मदद मिली।
★ लघु उत्तरीय प्रश्न ★
प्रश्न- उन्नसीवीं सदी के प्रारंभ में भारतीय बुनकरों की क्या समस्याएं थीं?
अथवा
अठारहवीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में भारतीय बुनकरों की दयनीय दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय बुनकरों की समस्याएँ (दशाएँ) निम्न
(i) स्थानीय तथा विदेशी बाजार का ठप्प होना ब्रिटेन में औद्योगीकरण के कारण उनका (बुनकरों का निर्यात बाजार ठप्प हो गया। ब्रिटिश व्यापारियों ने मशीनी कपड़े भारत में निर्यात करने शुरू कर दिए, जिससे उनके स्थानीय बाजार सिकुड़ गए।
(ii) कच्चे माल की कमी- जब अमेरिकी गृह-युद्ध छिड़ा और अमेरिका से कपास की आपूर्ति बंद हो गई तो इंग्लैंड भारत की और देखने लगा। भारत से कच्ची कपास का निर्यात बढ़ गया तो यहाँ कच्ची कपास के दाम आकाश छूने लगे। भारतीय बुनकरों की आपूर्ति ठप्प हो गई और वे उच्चतर दामों पर कपास खरीदने को विवश हो गए।
(iii) गुमाश्तों से टकराव सरकार ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने - और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए गुमाश्तों की नियुक्ति की थी। गुमाश्ते दंभपूर्ण व्यवहार करते थे और माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को सजा देते थे। इसलिए बुनकरों का उनसे टकराव हुआ और कई बुनकरों ने अपने करपे बंद कर दिए और खेतों में मजदूरी करने लगे।
प्रश्न- अंग्रेज भारतीय व्यापारी उद्योगपतियों के साथ किस प्रकार भेदभाव करते थे? उत्तर-
(i) सीमित बाजार जिस बाजार में भारतीय व्यापारियों को काम करना था, वह बहुत ही सीमित होता गया।
(ii) निर्मित माल के निर्यात पर प्रतिबंध भारतीयों को यूरोप में निर्मित माल का व्यापार व व्यवसाय करने से प्रतिबंधित कर दिया गया और उन्हें माँग करने पर अधिकांश कच्चे माल, खाद्यान्न, कच्ची कपास, गेहूँ, नील आदि का इंग्लैंड को निर्यात करना पड़ता था।
(iii) यूरोपीयों के विशेष केन्द्र यूरोपीय व्यापारी उद्योगपतियों के पास वाणिज्य के अपने विशेष केन्द्र थे और भारतीयों को इनका सदस्य बनने की अनुमति नहीं थी।
प्रश्न- मैनचेस्टर के भारत आगमन से बुनकरों के समक्ष किस प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हुई ?
उत्तर- मैनचेस्टर के भारत आगमन से बुनकरों के समक्ष कई समस्याएँ उत्पन्न हो गईं
(i) उत्पाद की माँग में कमी औद्योगिक क्रांति के बाद इंग्लैंड की सरकार और उद्योगपतियों का कंपनी पर दबाव पड़ने लगा। वे भारत में ब्रिटेन के बने हुए कपड़ों की ब्रिकी को बढ़ाने के लिए जोर देने लगे। इसके बाद मैनचेस्टर के कपास उद्योग के बने कपड़े भारत आने लगे। परिणामस्वरूप भारत में कपड़ा बुनकरों का निर्यात कम हो गया और स्थानीय बाजार में मैनचेस्टर के कपड़े आ गए जिससे उनके माल की माँग कम हो गयी।
(ii) अच्छे कपास का अभाव और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि मैनचेस्टर के - आगमन के बाद बुनकरों के समक्ष अच्छे कपास की कमी की समस्या आ गई। अच्छे कपास के अभाव में अच्छे वस्त्रों का उत्पादन नहीं हो पा रहा था।
(iii) बड़े उद्योगों की स्थापना भारत में बड़े उद्योगों की स्थापना के बाद कारखानों में उत्पादन होने लगा था। बाजार में मशीनों से बनी चीजों की भरमार हो गई। ये वस्तुएँ कम कीमत पर मिलती थीं। इनका प्रभाव स्थानीय बुनकरों पर पड़ा और उन्हें अपना काम बंद कर देना पड़ा।
प्रश्न- भारतीय व्यापारियों और सौदागरों पर भारत के उपनिवेशीकरण का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- (i) एकाधिकार की समाप्ति अंग्रेजों अथवा अन्य कंपनियों के पहुँचने से पहले व्यापार का पूरा नेटवर्क भारतीय व्यापारियों के नियंत्रण में था जो अब उनके हाथ से निकल गया।
(i) बंदरगाहों में बदलाव - सूरत और हुगली प्रमुख पूर्व औपनिवेशिक बंदरगाह थे परन्तु ईस्ट इंडिया कंपनी के आने से बंबई और कलकत्ता नये बंदरगाह उभरकर सामने आये।
(iii) यूरोपीयों के नियंत्रण में व्यापार पुराने बंदरगाह के स्थान पर नए बंदरगाह का उभरना औपनिवेशिक सत्ता के विकास का सूचक था। नए बंदरगाहों से व्यापार पर यूरोपीय कंपनियों का नियंत्रण था जो कि यूरोपीय जहाजों में होता था। जबकि अनेक पुराने घराने दह चुके थे, जो बचे रहना चाहते थे. उनके पास भी यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों के नियंत्रण वाले नेटवर्क में काम करने के अलावा कोई चारा न था
प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारतीय बाजार में ब्रिटेन को पहले वाली हैसियतकभी हासिल नहीं हो पाई। क्यों ?
अथवा
ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर प्रथम विश्व युद्ध के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- (i) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया क्योंकि युद्ध के दौरान ब्रिटिश कारखाने सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध संबंधी सामान बनाने में व्यस्त थे। (ii) युद्ध के बाद भारतीय बाजार में मैनचेस्टर को पहले वाली हैसियत कभी हासिल नहीं हो पाई। आधुनिकीकरण न कर पाने और अमेरिका, जर्मनी व जापान के मुकाबले कमजोर पड़ जाने के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कपास का उत्पादन बहुत कम रह गया था और ब्रिटेन से होने वाले सूती कपड़े के निर्यात में जबरदस्त गिरावट आई। (iii) उपनिवेशों में विदेशी उत्पादों को हटाकर स्थानीय उद्योगपतियों ने घरेलू बाजारों पर कब्जा कर लिया और धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत बना ली।
प्रश्न बीसवीं सदी में हथकरघे के कपड़े का उत्पादन बढ़कर 1900 और 1940 के बीच तिगुना हो गया था। कारण बताइए।
अथवा
1900 और 1940 के बीच हथकरघे के कपड़े के उत्पादन में विस्तार के कारण क्या थे?
उत्तर- (i) हथकरघा (handloom) उत्पादकों ने नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जिससे उत्पादन में सुधार हुआ परन्तु मूल लागत में कोई वृद्धि भी नहीं हुई। (ii) बीसवीं सदी के दूसरे दशक तक आते-आते अधिकतर बुनकरों को फ्लाई शटल वाले करघों का प्रयोग करते देखा जा सकता था। इससे प्रति व्यक्ति उत्पादकता बढ़ी, उत्पादन बढ़ा और श्रम की माँग में कमी आई। (iii) इसके अलावा कई छोटे-छोटे सुधार किए गए जिनसे बुनकरों को अपनी उत्पादकता बढ़ाने और मिलों से प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिली।
★ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ★
प्रश्न- उन्नीसवीं सदी के अंत में कपड़ा उद्योग के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी क्यों हुई?"
अथवा
18वीं सदी में हुए अनेक आविष्कारों ने सूती वस्त्र उद्योग में उत्पादन प्रक्रिया के हर चरण की कुशलता किस प्रकार बढ़ा दी? व्याख्या कीजिए।
उत्तर- (1) नए आविष्कार 18वीं सदी में कई ऐसे आविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया (कार्डिंग, ऐंठना व कताई और लपेटने) के हर चरण की कुशलता बढ़ा दी।
(ii) उत्पादन में वृद्धि प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया और पहले से अधिक मजबूत धागों व रेशों का उत्पादन होने लगा।
(iii) गुणवत्ता में सुधार मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता में वृद्धि हुई। नए आविष्कारों ने मजबूत धागे के उत्पादन को संभव बनाया।
(iv) कपड़ा मिल की स्थापना रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की स्थापना की थी। अब महंगी नई मशीनें खरीदकर उन्हें कारखानों में लगाया जा सकता था। कारखाने में सारी प्रक्रियाएँ एक छत के नोचे और एक मालिक के हाथ में आ गई थीं।
(v) सभी प्रक्रियाएँ एक ही स्थान पर इससे उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्ता का ध्यान रखना और मजदूरों का निरीक्षण सुगम हो गया था। जब तक उत्पादन गाँवों में हो रहा था, तब तक ये सारे कार्य सहज नहीं थे।
प्रश्न - इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के कोई पाँच कारण बताएँ।
उत्तर- इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति के पाँच कारण निम्न हैं
(i) अंतर्राष्ट्रीय बाजार में वृद्धि सत्रहवीं तथा अठारवीं सदी में यूरोप के नगरों के व्यापारी ग्राम्य क्षेत्रों की ओर जाने लगे और किसानों तथा कारीगरों को धन की आपूर्ति करने लगे ताकि वे अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन कर सकें।
(i) मांग में वृद्धि - विश्व में कई भागों में उपनिवेशी अधिकार होने तथा विश्व व्यापार में प्रसार के कारण वस्तुओं की माँग में वृद्धि होने लगी।
(iii) नवीन आविष्कार अठारवीं सदी में श्रृंखलाबद्ध आविष्कारों ने उत्पादन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की कार्यकुशलता बढ़ा दी थी जिससे लागत कम हो गयी और उत्पादन बढ़ गया।
(iv) पूंजी की उपलब्धता इंग्लैंड ने बढ़ते व्यापार से प्राप्त लाभ के माध्यम से जो भारी पूँजी जमा कर रखी थी, उसे मशीनरी तथा भवनों पर भारी मात्रा में खर्च किया जाने लगा। इससे नवीन प्रौद्योगिकीय विकास संभव हुए।
(v) कच्चे माल की उपलब्धता इंग्लैण्ड में विभिन्न प्रकार के उद्योगों की स्थापना के लिए कोयले और लौह अयस्क की बड़ी मात्रा में उपलब्धता ने भारी सहायता की।
प्रश्न- इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्न प्रकार से प्रभाव डाला -
(i) औद्योगिक क्रांति के कारण इंग्लैंड में बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा। इस माल को बेचने के लिए बाजार की आवश्यकता हुई और उसके बाद ब्रिटेन की बनी वस्तुएँ भारतीय बाजारों में छा गई। परिणामस्वरूप भारत में बड़े पैमाने पर वस्तुओं का आयात होने लगा। (ii) भारतीय लघु उद्योग और दस्तकारियाँ बंदी की स्थिति में आ गए। यह औद्योगिक क्रांति भारतीय अर्थव्यवस्था का दुष्प्रभाव थी।
(iii) भारत के कारीगर और दस्तकार बेकार हो गए और गरीबी के कारण उन्हें मजदूर बनना पड़ा।
(iv) औद्योगिक क्रांति से पहले भारत में अनेक चीजों जैसे सूती, ऊनी और रेशमी कपड़े, नील, मसाले आदि का निर्यात होता था लेकिन क्रांति के बाद भारत का निर्यात कम हो गया जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई।
(v) अंग्रेजी सरकार भारतीय लोगों से कच्चा माल कम कीमत पर लेकर स्वयं अधिक मुनाफा कमाने लगी।
प्रश्न- सूती तथा रेशमी वस्तुओं के बाज़ार को नियंत्रित करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने क्या कदम उठाए थे?
उत्तर- सूती तथा रेशमी वस्तुओं के बाजार को नियंत्रित करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने निम्नलिखित कदम उठाये थे -
(i) एकाधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक सत्ता स्थापित हो जाने के बाद कंपनी ने व्यापार पर अपना एकाधिकार करना चालू कर दिया।
(ii) नई व्यवस्था व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने के बाद, उसने प्रतिस्पर्धा खत्म करने, लागतों पर अंकुश रखने और कपास व रेशम से बनी चीजों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन और नियंत्रण की एक नई व्यवस्था लागू कर दी।
(iii) गुमाश्तों की नियुक्ति कंपनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने और गुमाश्तों के माध्यम से बुनकरों पर अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने को कोशिश की।
(iv) पेशगी की प्रणाली बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखने के लिए कंपनी ने पेशगी देने की प्रणाली अपनाई। एक बार का आर्डर मिलने पर बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए ऋण दे दिया जाता था। जो ऋण लेते थे, उन्हें अपना निर्मित कपड़ा गुमाश्ता को ही देना होता था। ये उसे किसी और व्यापारी को नहीं बेच सकते थे।
(v) सत्ता का प्रयोग कंपनी बाजार को नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक मशीनरी का प्रयोग करती थी। अनेक स्थानों पर माल समय पर तैयार न होने के कारण बुनकरों को पीटा जाता था, उन पर कोड़े बरसाए जाते थे।
प्रश्न- 'औद्योगीकरण एक मिश्रित वरदान था।' सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- (i) सस्ती वस्तुएँ मशीनों द्वारा बनी वस्तु सस्ती व उत्तम होती थीं। अतः उपनिवेशों के लोग सस्ती, उत्तम तथा विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ खरीद सकते थे ।
(ii) नये उद्यमी औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय उद्यमियों को कारखानों में अवसर प्रदान किए। यद्यपि वे नये खिलाड़ी थे तथापि वे अच्छा धन कमाने लगे थे।
(iii) औद्योगिक क्षेत्र का विकास- विदेशियों के आगमन से पूर्व बहुत से लोग कृषि में लगे हुए थे परन्तु औद्योगीकरण ने उन्हें दूसरे क्षेत्रों में काम के अवसर प्रदान किए।
(iv) श्रमिकों का जीवन औद्योगीकरण की प्रक्रिया अपने साथ नवोदित औद्योगिक श्रमिकों के लिए कष्ट भी लेकर आई।
(v) बुनकरों पर प्रभाव - बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखने के लिए कंपनी ने पेशगी की व्यवस्था प्रारंभ की। बुनकरों के लिए पेशगी की प्रणाली हानिकारक सिद्ध हुई।
1. बुनकरों ने मोल-भाव के अवसर खो दिए थे।
2. अधिकतर बुनकर अपनी भूमि बँटाई पर देकर सारा समय बुनाई में ही लगाने लगे। बुनाई में प्रायः उनका पूरा परिवार ही खप जाता था।
(vi) व्यवसायियों तथा व्यापारियों पर प्रभाव - मशीन द्वारा बने कपड़ों के भारत में आयात पर भारतीय व्यापारियों की अर्थव्यवस्था पर कुछ गंभीर प्रभाव पड़े
1. औद्योगीकरण से पूर्व भारतीय व्यापारी विश्व के विभिन्न देशों में अपने उत्पाद निर्यात करते थे परन्तु मशीन से बने कपड़े के आने से उनका विश्व बाजार ठप्प हो गया।
2. मशीन से बने कपड़े उत्तम तथा सस्ते थे। अतः निर्माता उनके साथ प्रतिस्पर्धा करने में असफल रहे। अतः विश्व बाजार के साथ-साथ उनका स्थानीय बाजार भी ठंडा पड़ने लगा।
प्रश्न 19वीं सदी के प्रारंभ में भारतीय कपड़े के निर्यात में लंबी गिरावट आई थी? कारण बताकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- 19वीं सदी के प्रारंभ में भारतीय कपड़े के निर्यात में लंबी गिरावट के निम्न कारण थे
(i) इंग्लैंड में कपास उद्योगों का विकास जैसे ही इंग्लैंड में कपास उद्योग विकसित हुआ, वहाँ के उद्योगपति दूसरे देशों से आने वाले आयात को लेकर चिंतित होने लगे। उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयातित कपड़े पर आयात शुल्क वसूल करे जिससे मैनचेस्टर में बने कपड़े बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैंड में आराम से बिक सकें।
(ii) मिलों का विकास और माँग में कमी मिलों के विकास और घरेलू माँग में कमी के कारण ब्रिटिश उद्योगपतियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी पर दवाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय बाजारों में भी बेचे ।
(iii) दोहरी नीति- भारत में अपना सामान बेचने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने दोहरी नीति अपनाई आयात पर कोई शुल्क नहीं परन्तु निर्यात पर भारी शुल्क लगाया।
(iv) भारत में मैनचेस्टर वस्तुएँ भारत में कपड़ा बुनकरों और छोटे उत्पादकों के सामने एक साथ दो समस्याएँ सामने आई, उनका निर्यात बाजार उह रहा था और स्थानीय बाज़ार सिकुड़ने लगा था। बाजार में मैनचेस्टर के आयातित माल की भरमार थी।
(v) कच्चे माल की कमी 1860 के दशक में बुनकरों के सामने नई समस्या खड़ी हो गई। इन्हें अच्छी कपास नहीं मिल पा रही थी। जब अमेरिकी गृहयुद्ध शुरू हुआ और अमेरिका से कपास की आमद बंद हो गई तो ब्रिटेन भारत से कच्चा माल मैगाने लगा। भारत से कच्चे कपास के निर्यात में इस वृद्धि से उसकी कीमत आसमान छूने लगी। भारतीय बुनकरों को कच्चे माल के लाले पड़ गए। उन्हें मनमानी कीमत पर कच्ची कपास खरीदनी पड़ती थी। ऐसी स्थिति में, बुनकरी के सहारे पेट पालना संभव नहीं था।
प्रश्न- उन्नीसवीं सदी में निर्माता अपने उत्पादों को बेचने के लिए कैलेंडर क्यों छपवाने लगे थे?
उत्तर- उन्नीसवीं सदी के आखिर में निर्माता अपने उत्पादों को बेचने के लिए कैलेंडर छपवाने लगे थे। इन कैलेंडर में भी नए उत्पादों को बेचने के लिए देवी-देवताओं की तस्वीर होती थी। अखबारों और पत्रिकाओं को पढ़कर समझा जा सकता था लेकिन कैलेंडर को देखकर भी समझा जा सकता था। इसके लिए शिक्षित होना जरूरी नहीं था। चाय की दुकानों, दफ्तरों एवं मध्यवर्गीय घरों में ये कैलेंडर लटके रहते थे। जो इन कैलेंडरों को लगाते थे वे विज्ञापन को भी हर रोज पूरे साल देखते थे।देवी-देवताओं की तस्वीरों की तरह महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों एवं नवाबों की तस्वीरों का भी विज्ञापनों एवं कैलेंडरों में खूब इस्तेमाल होने लगा था। इन कैलेंडरों पर अकसर यह संदेश होता था अगर आप शाही व्यक्ति का सम्मान करते हैं तो इस उत्पाद का भी सम्मान कीजिए, अगर इस उत्पाद को राजा इस्तेमाल करते हैं या उसे शाही निर्देश से बनाया गया है तो इसकी गुणवत्ता पर सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता। जब भारतीय निर्माताओं ने विज्ञापन बनाए तो उनमें राष्ट्रवादी संदेश साफ दिखाई देता था। यदि आप में राष्ट्र प्रेम की भावना है तो आप भारतीय उत्पाद ही खरीदेंगे। अतः इस तरह के विज्ञापन स्वदेशी के राष्ट्रवादी संदेश के वाहक बन गए।
