मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया pdf / mudran sanskriti aur adhunik duniya question answer / भारत और समकालीन विश्व 2 कक्षा 10 question answer chapter 5
खंड 3 रोजाना की जिंदगी, संस्कृति और राजनीति
अध्याय 5
मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
★ महत्वपूर्ण बिंदु
●मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई ।
●तकरीबन 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबें छापी जाने लगी थीं। चूँकि पतले, छिद्रित कागज के दोनों तरफ छपाई सम्भव नहीं थी।
● हाथ की छपाई की जगह यांत्रिक मुद्रण के आने पर ही मुद्रण क्रांति संभव हुई।
● 1753 ई. में कितागावा उतामारो ने उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नाम की एक नयी चित्रकला शैली बनाकर अहम योगदान दिया।
● चीन से वुडब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई की तकनीक मार्कोपोलो नामक खोजी यात्री इटली लाए।
● इटली से यह तकनीक बाकी यूरोप में फैल गई।
● जर्मनी के योहान गुटेन्बर्ग ने पहली किताब बाइबिल छापी थी।
● शुरू-शुरू में तो छपी किताबें भी अपने रंग-रूप में इतिहास की झलक दिखाई देती थी। अमीरों के लिए बनाई किताबों में चुने पन्ने पर हाशिये की जगह बेल-बूटों के लिए खाली छोड़ दी जाती थीं।
● छापेखाने के आने से एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ छपाई से किताब की कीमत गिरी।
● किताब की हर प्रति के उत्पादन में जो वक्त और श्रम लगता था, वह कम हो गया।
● किताबों के मुद्रण से पहले ज्ञान का मौखिक लेन-देन ही होता था। अब मुद्रकों ने लोकगीत और लोक कथाएँ छापनी शुरू कर दी थीं।
● हर कोई मुद्रित किताब को लेकर खुश नहीं था। मार्टिन लूथर ने कहा "मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा ।"
● छपे हुए लोकप्रिय साहित्य के बल पर कम शिक्षित लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए।
● शासन द्वारा पुस्तक-विक्रेताओं पर कई तरह की पाबंदियाँ लगाई।
● यूरोप के कुछ हिस्सों में तो साक्षरता दर 60 से 80 प्रतिशत तक हो गई थी।
● यूरोपीय देशों में साक्षरता और स्कूलों के प्रसार के साथ लोगों में पढ़ने का जैसे जुनून पैदा हो गया।
● अब वैज्ञानिक और दार्शनिक भी आम जनता की पहुँच के बाहर नहीं रहे।
● कई सारे लोगों का मानना था कि किताबें दुनिया बदल सकती हैं।
● कई इतिहासकारों का मानना है कि मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ रचीं।
● 19वीं सदी के आखिर से प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होने लगी।
● फ्रांस में 1857 में सिर्फ बाल-पुस्तकें छापने के लिए एक प्रेस या मुद्रणालय स्थापित किया गया।
● महिलाएँ पाठिका और लेखिका की भूमिका में ज्यादा अहम हो गई। उनके लेखन से नारी की नयी परिभाषा उभरी थी।
● न्यूयॉर्क के रिचर्ड एम. हो ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस को बना लिया।
● इससे प्रति घंटे 8000 शीट छाप सकते थे। इसमें एक साथ छह रंग की छपाई मुमकिन थी। प्रिंटिंग प्रेस सोलहवीं सदी में भारत के गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों के साथ आयी।
● 1674 ई. तक कोंकणी और कन्नड़ भाषाओं में लगभग 50 किताबें छप चुकी थीं।
● इंग्लिश ईस्ट इंडिया कम्पनी में 17वीं सदी के अंत तक छापे खाने का आयात शुरू कर दिया था।
● जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 से बंगाल गजट नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन शुरू किया।
● 18वीं सदी के अंत तक कई सारी पत्र-पत्रिकाएँ छपने लगीं कुछ हिन्दुस्तानी भी अपने अखबार छाप्ने लगे थे।
● बदलावों के कारण कुछ लोग मौजूदा रीति-रिवाजों की आलोचना कर रहे थे जबकि कुछ अन्य इन समाज सुधारकों के तर्कों के खिलाफ खड़े थे।
● राममोहन राय ने 1821 से संवाद कौमुदी का प्रकाशन किया।
● तुलसीदास की सोलहवीं सदी की किताब रामचरितमानस का पहला मुद्रित संस्करण 1810 में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ।
● भारतीय भाषाओं में अनगिनत धार्मिक किताबें छपीं मुद्रित और लाने ले जाने में आसान होने के कारण आस्थावान इन्हें कहीं भी पढ़ सकता था।
● 19वीं सदी के अंत तक, एक नयी तरह की दृश्य-संस्कृति भी आकार ले रही थी।
● राजा रवि वर्मा जैसे चित्रकारों ने आम खपत के लिए तस्वीरें बनाई।
● कैलाशवासिनी देवी जैसी महिलाओं ने 1860 के दशक से महिलाओं के अनुभवों पर लिखना शुरू किया।
● 1820 के दशक तक प्रेस की आजादी को नियंत्रित करने के कुछ कानून पास किए गए।
● 1878 में प्रेस पर सेंसर के लिए वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया गया।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
संक्षेप में लिखें -
प्रश्न 1. निम्नलिखित के कारण दें
(क) वुडब्लॉक प्रिंट या तख़्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
उत्तर - वुडब्लॉक प्रिंट या तख़्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई, इसके कई कारण थे -
(i) 1295 ई. के पूर्व यूरोप वुड ब्लॉक प्रिंट की छपाई से अवगत नहीं था। 1295 ई. में माकों पोलो नामक महान खोजी यात्री चीन के आविष्कारों की जानकारी लेकर इटली आया। चीन के पास वुडब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई की तकनीक पहले से मौजूद थी। मार्को पोलो यह ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा।
(ii) वुडब्लॉक प्रिंट या तख़्ती की छपाई यूरोप में 1295 तक नहीं आने का एक कारण यह था कि कुलीन वर्ग, पादरी और भिक्षु संघ पुस्तकों की छपाई को धर्म के विरुद्ध मानते थे। अतः पुस्तकों की छपाई को प्रोत्साहन प्रारम्भ में नहीं मिला।
(ख) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
उत्तर- मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआमं प्रशंसा की। सोलहवीं सदी में रोमन कैथलिक चर्च की कुरीतियों चर्च तथा मठों में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के उद्देश्य से लूथर ने चर्च को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी। उसके लेख बड़ी संख्या में छपने लगे और लोग पढ़ने लगे। कुछ ही हफ्तों में न्यू टेस्टामेंट के लूथर के अनुवाद की 5000 प्रतियाँ बिक गईं और तीन महीने के अन्दर दूसरा संस्करण निकालना पड़ा। लूथर ने मुद्रण की प्रशंसा करते हुए कहा कि मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है और सबसे बड़ा तोहफा है। छपाई ने नया बौद्धिक माहौल बनाया और इससे धर्मसुधार आन्दोलन के नए विचारों के प्रसार में मदद मिली।
(ग) रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी।
उत्तर- रोमन कैथोलिक चर्च ने 16वीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी क्योंकि छपे हुए लोकप्रिय साहित्य के बल पर शिक्षित लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए। सोलहवीं सदी तक इटली की आम जनता किताबों के आधार पर बाइबिल के नए अर्थों से परिचित होने लगी। ये लोग पुस्तकों के माध्यम से ईश्वर और सृष्टि के सही अर्थ समझ पाए। इससे रोमन कैथलिक चर्च में काफी प्रतिक्रिया हुई। ऐसे धर्म विरोधी विचारों को दबाने के लिए रोमन चर्च ने इन्क्वीज़ीशन (धर्म-द्रोहियों को दुरुस्त करने वाली संस्था) शुरू किया। अतः रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक-विक्रेताओं पर कई तरह की पाबंदियाँ लगाईं और 1558 ई. से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखने लगे।
(घ) महात्मा गाँधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
उत्तर - महात्मा गाँधी ने ये शब्द 1922 के समय कहे थे क्योंकि उनके अनुसार वाणी की स्वतंत्रता, प्रेस की आजादी और संगठन की आजादी के बिना कोई राष्ट्र नहीं पनप सकता। यदि देश को बाहरी शासन से मुक्ति दिलानी है तो इन स्वतंत्रताओं को बहुत महत्त्वपूर्ण समझना चाहिए। यदि ये तीनों आजादियाँ नहीं होंगी तो फिर राष्ट्रवाद भी नहीं होगा। महात्मा गाँधी इस तथ्य को जानते थे, इसीलिए वे स्वराज के लिए इनकी आजादी पर जोर देते थे। इनके अभाव में कोई राष्ट्रवाद के विषय में सोच भी नहीं सकता।
प्रश्न 2. छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ
(क) गुटेन्बर्ग प्रेस
(ख) छपी किताब को लेकर इरस्मस के विचार
(ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट
उत्तर- (क) गुटेन्बर्ग प्रेस गुटेन्बर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस मॉडल 1448 में बनाया। इस प्रेस में स्क्रू से लगा एक हैंडल होता था। हैंडल की मदद से स्क्रू घुमाकर प्लाटेन को गीले कागज़ पर दबा दिया जाता था। गुटेन्बर्ग ने रोमन वर्णमाला के तमाम 26 अक्षरों के लिए टाइप बनाए। इसमें यह प्रयास किया गया कि इन्हें इधर-उधर 'मूव' कराकर या घुमाकर शब्द बनाए जा सकें। यही कारण है कि इसे 'मूवेबल टाइप प्रिंटिंग मशीन' के नाम से जाना गया और यही अगले 300 सालों तक छपाई की बुनियादी तकनीक रही। इसके परिणामस्वरूप गुटेन्बर्ग प्रेस एक घंटे में 250 पन्ने (एक साइड) छाप सकता था। इसमें छपने वाली पहली पुस्तक बाइबिल थी।
(ख) छपी किताब को लेकर इरस्मस के विचार इरस्मस लातिन के विद्वान और कैथोलिक धर्म सुधारक थे। उसने कैथलिक धर्म की ज्यादतियों की आलोचना की लेकिन उसने मार्टिन लूथर से एक दूरी बनाकर रखी। प्रिंट को लेकर वह बहुत आशंकित था। 1508 में उसने ऐडेजेज़ में लिखा कि, 'किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह हैं। दुनिया का कौन-सा कोना है, जहाँ ये नहीं पहुँच जातीं ? लेकिन इनका ज्यादा हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है।. किताबें बेकार ढेर हैं क्योंकि अच्छी चीजों की अति भी हानिकारक ही है, इनसे बचना चाहिए। मुद्रक दुनिया को सिर्फ तुच्छ लिखी हुई चीजों से ही नहीं पाट रहे, बल्कि बकवास, बेवकूफ, सनसनी खेज, धर्मविरोधी, अज्ञानी और षड्यंत्रकारी किताबें छापते हैं और उनकी संख्या ऐसी है कि मूल्यवान साहित्य का मूल्य ही नहीं रह जाता।'
(ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट अंग्रेजी सरकार ने 1857 की क्रांति के बाद प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया था। अंग्रेजों ने देसी प्रेस को बंद करने की माँग की। जैसे-जैसे भाषाई समाचार-पत्र राष्ट्रवाद की भावना को जागृत करने लगे वैसे-वैसे औपनिवेशिक सरकार में कड़े नियंत्रण के प्रस्ताव पर बहस तेज होने लगी। आइरिश प्रेस कानून के तर्ज पर 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया गया। इससे सरकार को भाषाई प्रेस में छपी रफ्ट और सम्पादकीय को सेंसर करने का व्यापक अधिकार मिल गया। सरकार विभिन्न प्रदेशों में छपने वाले भाषाई अखबारों पर नियमित नजर रखने लगी। इस एक्ट में अखवारों को जब्त किया जा सकता था और छपाई की मशीनें छीन ली जा सकती थीं।
प्रश्न 3. उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-
(क) महिलाएँ
(ख) गरीब जनता
(ग) सुधारक
उत्तर - (क) महिलाएँ - उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार का महिलाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ा। महिलाओं के जीवन में परिवर्तन आया। महिलाओं की जिंदगी और उनकी भावनाओं पर गंभीरता से पुस्तकें लिखी गई। मध्यमवर्गीय घरों की महिलाएँ पहले से ज्यादा पढ़ने लगीं। 19वीं सदी के मध्य में बड़े-छोटे शहरों में स्कूल बने तो उदारवादी पिता और पति महिलाओं को पढ़ने के लिए भेजने लगे। कई पत्रिकाओं ने लेखिकाओं को जगह दी और उन्होंने नारी शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया। हिन्दू और मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय की महिलाओं में जागरूकता आई। कट्टर रुढ़िवादी परिवार की रशसुंदरी देवी ने रसोई में छिपकर पढ़ना सीखा और बाद में 'आमार जीवन' नामक आत्मकथा लिखी जो 1876 में प्रकाशित हुई। 1860 के दशक में महिलाओं के अनुभवों को कैलाशबाशिनी देवी ने लिखा। 1880 के दशक में ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने उच्च जाति की नारियों की दयनीय स्थिति पर लिखा। मुस्लिम महिलाओं ने भी शिक्षा को आवश्यक समझा। महिलाओं की शिक्षा, विधवा जीवन, विधवा विवाह और राष्ट्रीय आन्दोलन जैसे मसलों पर लेख लिखे जाने लगे। पंजाबी, उर्दू, तमिल, बंगाली और मराठी के बाद हिन्दी छपाई 1870 के दशक में शुरू हुई। बीसवीं सदी तक महिलाओं के लिए मुद्रित और कभी-कभी संपादित पत्रिकाएँ लोकप्रिय हो गईं। इस परिवर्तन के बाद महिलाएँ फुर्सत के समय मनपसंद किताबें पढ़ने लगी थीं।
(ख) गरीब जनता- उन्नीसवीं सदी के मद्रासी शहरों में काफी सस्ती किताबें चौक चौराहों पर बेची जा रही थीं जिसके कारण गरीब लोग भी बाज़ार से उन्हें खरीदने की स्थिति में आ गए थे। सार्वजनिक पुस्तकालय खुलने लगे थे जिससे किताबों की संख्या बढ़ी। ये पुस्तकालय अधिकतर शहरों या कस्बों में होते थे और कहीं-कहीं सम्पन्न गाँवों में भी पुस्तकालय स्थापित होने लगे। स्थानीय अमीरों के लिए पुस्तकालय खोलना प्रतिष्ठा की बात थी। कारखानों में मजदूरों से बहुत ज्यादा काम लिया जा रहा था और उन्हें अपने बारे में लिखने की शिक्षा तक नहीं - मिली थी लेकिन कानपुर के मज़दूर काशीबाबा ने 1938 में छोटे और बड़े सवालों पर लिखा और उसे प्रकाशित करवाया। इस लेख में जातीय और वर्गीय शोषण के बीच का रिश्ता समझाने की कोशिश की। 1935 से 1955 के बीच सुदर्शन चक्र के नाम से लिखने वाले एक और मिल मजदूर का लेखन 'सच्ची कविताएँ' नामक एक संग्रह में छापा गया। बंगलौर के सूती-मिल मजदूरों ने खुद को शिक्षित करने के ख्याल से पुस्तकालय बनाया, जिसकी प्रेरणा उन्हें बम्बई के मिल मजदूरों से मिली थी। समाज सुधारकों ने मजदूरों के प्रयासों को संरक्षण दिया। मज़दूरों के बीच नशाखोरी कम करने, साक्षरता लाने और राष्ट्रवाद का संदेश पहुंचाने में मुद्रण की सराहनीय भूमिका रही।
(ग) सुधारक - उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में जाति भेद के बारे में तरह-तरह की पुस्तिकाओं और निबंधों में लिखा जाने लगा था। 'निम्न जातीय' आंदोलनों के मराठी प्रणेता ज्योतिबा फुले ने अपनी गुलामगिरी 1871 में जाति प्रथा के अत्याचारों पर लिखा। बीसवीं सदी में महाराष्ट्र के भीमराव अम्बेडकर और मद्रास के ई.वी. रामास्वामी नायकर ने जो पेरियार के नाम से जाने जाते हैं उन्होंने जाति पर जोरदार ढंग से लिखा और उनके लेख को पूरे भारत में पढ़ा गया। स्थानीय विरोध आन्दोलनों और सम्प्रदायों ने भी प्राचीन धर्मग्रंथों की आलोचना करते हुए, नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने के मुहिम में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे । उन्नीसवीं शताब्दी के समाज सुधारकों ने पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा सती प्रथा, विधवा विवाह, बाल विवाह, मूर्तिपूजा, जाति प्रथा और ब्राह्मणवाद को समाप्त करने के लिए अपने लेखों के द्वारा आवाज उठाई। समाज सुधारकों ने सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।
चर्चा करें
प्रश्न 1. अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा ?
उत्तर- (i) 18वीं सदी के यूरोप में यह विश्वास बन गया था कि किताबों के जरिए प्रगति और ज्ञानोदय होता है। बहुत सारे लोगों का यह मानना था कि किताबें दुनिया बदल सकती हैं।
(ii) मुद्रण निरंकुशवाद और आतंकी राजसत्ता से समाज को मुक्ति दिलाकर ऐसा दौर लाएँगी जब विवेक और बुद्धि का राज होगा।
(iii) 18वीं सदी में फ्रांस के एक उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने घोषणा की, “छापाखाना प्रगति का सबसे बड़ा ताकतवर औजार है, इससे वन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।" मर्सिए के उपन्यासों में नायक अकसर किताबें पढ़ने से बदल जाते हैं। वे किताबों की दुनिया में जीते हैं और इसी क्रम में ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।
(iv) ज्ञानोदय को लाने और निरंकुशवाद के आधार को नष्ट करने में छापेखाने की भूमिका के बारे में आश्वस्त मर्सिए ने कहा, "हे निरंकुशवादी शासकों, अब तुम्हारे काँपने का वक्त आ गया है! आभासी लेखक के कलम के जोर के आगे तुम हिल उठोगे !"
प्रश्न 2. कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे ? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ ।
उत्तर- कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित इसलिए थे क्योंकि मुद्रण तकनीकी के आविष्कार से किताबों की पहुँच दिन-प्रतिदिन सुलभ होती गई। इससे ज्ञान का प्रसार हुआ और तर्क को बढ़ावा मिला इसके साथ ही कुछ लोगों को भय था कि अगर छपे हुए और पढ़े जा रहे पुस्तकों पर अगर कोई नियंत्रण नहीं होगा तो लोगों में बाग़ी और अधार्मिक विचार पनपने लगेंगे। अगर ऐसा हुआ तो 'मूल्यवान' साहित्यों की सत्ता नष्ट हो जाएगी।
यूरोप से एक उदाहरण- रोमन चर्च की कुरीतियों को जनता के सामने रखने से यूरोप के शासक वर्ग के लोग बौखला गए। इसी प्रक्रम में उन्होंने इटली के एक किसान मनोकियो को बाइबिल के नए अर्थ निकालने का अपराधी घोषित करके मौत के घाट उतार दिया था। रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक-विक्रेताओं पर कई तरह की पाबंदियाँ लगाई और 1558 से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखने लगे। इन पुस्तकों को चर्च ने धर्म-विरोधी कहा।
भारत से एक उदाहरण अंग्रेजी सरकार भारत के राष्ट्रवादी साहित्य के प्रकाशन से बहुत घबड़ाई हुई थी। उन्होंने राष्ट्रवादी साहित्य पर अंकुश लगाने के लिए 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया था। जय पंजाब के क्रांतिकारियों को 1907 में कालापानी भेजा गया तो वाल गंगाधर तिलक ने अपनी पत्रिका 'केसरी' के द्वारा उनके प्रति गहरी हमदर्दी दिखाई। 1908 में तिलक को भी कैद कर दिया गया। इसके बाद पूरे भारत में व्यापक विरोध हुआ।
प्रश्न 3. उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
उत्तर- 'प्रश्न 3 (ख) गरीब जनता' वाले बिन्दु का अध्ययन करें।
प्रश्न 4. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ?
उत्तर मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रबाद के उदय और विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया
(i) मुद्रण संस्कृति भारत में राष्ट्रवाद के विकास का एक शक्तिशाली माध्यम बन गया जिससे राष्ट्रवादी भारतीय देशभक्ति की भावनाओं का प्रसार, आधुनिक आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक विचारों का प्रचार तथा जनसाधारण में जागृति का विकास हुआ।
(ii) प्रेस के माध्यम से राष्ट्रवादियों के लिए अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाना आसान हो गया।
(iii) हिन्दी में माखनलाल चतुर्वेदी, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र तथा मैथिलीशरण गुप्त आदि ने, उर्दू में अल्ताफ हुसैन हाली आदि ने बंगाली में रविन्द्रनाथ ठाकुर, हेमचंद्र बैनर्जी, दीनबंधु मित्र तथा बंकिमचन्द्र चटर्जी आदि ने, मराठी में विष्णु शास्त्री चिपलंकर आदि ने तमिल में सुब्रामन्य भारती आदि ने और असमी में लक्ष्मीनाथ बेज बरूआ आदि जैसे देशभक्त साहित्यकारों ने 'भारतवासियों को स्वतंत्रता का मूल्य समझाया।
(iv) मुद्रण ने जनसाधारण को स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व समर्पण करने की प्रेरणा दी। बंकिमचन्द्र चटर्जी का उपन्यास आनन्दमठ का गीत 'वंदे मातरम्' भारत के जन-जन के लिए स्वाधीनता एवं देशभक्ति का स्रोत बन गया।
अतः मुद्रण संस्कृति के विकास ने भारतीयों के आत्मगौरव और देशप्रेम को जागृत करके उन्हें स्वाधीनता के मार्ग की ओर अग्रसर किया।
परियोजना कार्य -
प्रश्न- पिछले सौ सालों में मुद्रण संस्कृति में हुए अन्य बदलावों का पता लगाएँ। फिर इनके बारे में यह बताते हुए लिखें कि ये क्यों हुए और इनके कौन से नतीजे हुए?
उत्तर- छात्र केशव परियोजना पुस्तिका की सहायता लें।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. सही विकल्प चुनिए
• निम्नलिखित में से कौन 768-770 ई. के आसपास छपाई की तकनीक लेकर जापान आए
(i) बौद्ध प्रचारक (iii) यूरोपीय व्यापारी
(ii) जापानी व्यापारी
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर- (i) बौद्ध प्रचारक
• पहली प्रिंटिंग प्रेस का विकास किसने किया
(i) योहान गुटेन्बर्ग ने
(ii) आइजेक न्यूटन ने
(iv) न्यूकॉमेन ने
(iii) मार्को पोलो ने
उत्तर- (i) योहान गुटेन्बर्ग ने
• योहान गुटेन्बर्ग ने सबसे पहली पुस्तक कौन-सी छापी
(1) कुरान
(ii) बाइबिल
(ii) डायमंड सूत्र
(iv) रामचरितमानस
उत्तर- (ii) बाइबिल
● किसने कहा था, "मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफ़ा।"
(i) चार्ल्स डिकेन्स
(i) जे.वी. शैले
(ii) महात्मा गाँधी
(iv) मार्टिन लूथर
उत्तर- (iv) मार्टिन लूथर
• इंग्लैण्ड में चैपमेनों द्वारा गरीब तबके के खरीदारों को कौन सी किताबें बेची जाती थीं
(i) चैपबुक्स
(iii) डिक्शनरी
(ii) चीपयुक्त
(iv) एलमनैक
उत्तर- (i) चैपबुक्स
प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) चीनी बौद्ध प्रचारक 768-770 ई. के आस-पास छपाई की तकनीक लेकर………… आए।
(ii) जर्मनी के……… ने बरसों लगाकर किसानों के बीच से लोक-कथाएँ जमा कीं।
(ii) प्रिंटिंग प्रेस पहले-पहल………… धर्म प्रचारकों के साथ भारत के गोवा में आयी।
(iv) कागज का आविष्कार……….में हुआ था।
(v) 19वीं सदी के आरंभ के दौरान उत्तर भारत में………मुस्लिम राजवंशों के धराशायी होने के बारे में बहुत अधिक चिंतित थे।
उत्तर- (i) जापान, (ii) ग्रिम बंधुओं (iii) पुर्तगाली, (iv) चीन (v) उलमा ।
प्रश्न 3. एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए
• किताबों का सुलेखन या खुशनवीसी करने वाले लोग क्या कहलाते थे?
उत्तर- दक्ष सुलेखक या खुशखत ।
● सर्वप्रथम मुद्रित सामग्री का लंबे समय तक उत्पादक कौन था?
उत्तर - सर्वप्रथम मुद्रित सामग्री का एक लंबे समय तक सबसे बड़ा उत्पादक चीनी राजतंत्र था।
● 1857 में बाल-पुस्तकें छापने के लिए प्रेस किस देश में स्थापित हुआ?
उत्तर- फ्रांस ।
● सोलहवीं सदी की तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' का पहला मुद्रित प्रकाशन कब और कहाँ से हुआ?
उत्तर- 1810 ई. में कलकत्ता से ।
● 'गीत गोविंद' का लेखक कौन था?
उत्तर- जयदेव ।
• लक्ष्मीनाथ बेजबरूवा की रचनाएँ बतलाइए?
उत्तर- बूढ़ी आइर साधु (दादी की कहानियाँ), ओ मोर अपुनर देश (ओ मेरी प्यारी भूमि) ।
• वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट कब लागू किया गया?
उत्तर- 1878 ई. में ।
प्रश्न 4. सत्य / असत्य का चयन कीजिए.
(i) कितागावा उतामारो ने उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नाम की नयी चित्रकला शैली में अहम योगदान दिया था।
(ii) गरीब वर्ग के लोगों के लिए वेलम या चर्म-पत्र पर छपाई होती थी। (ii) भारत में सबसे पहले मुद्रण की शुरूआत पुर्तगाली धर्म प्रचारकों ने की थी ।
(iv) राजा राममोहन राय द्वारा 'संवाद कौमुदी' नामक पुस्तक प्रकाशित की गई।
(v) 'स्त्रीधर्म विचार' नामक पुस्तक में जाति प्रथा के अत्याचारों पर लिखा गया है।
उत्तर - (i) सत्य, (ii) असत्य, (iii) सत्य, (iv) सत्य, (v) असत्य ।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
० प्रश्न मुद्रण की सबसे पहली तकनीक कहाँ और कब छपी थी?
उत्तर - मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान, और कोरिया में विकसित हुई यह छपाई हाथ से होती थी तकरीबन 594 ई. में ।
प्रश्न- चीन में मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक कौन था? इस सामग्री का प्रयोग किसके लिए होता था?
उत्तर- चीन में इम्पीरियल स्टेट मुद्रित सामग्री का प्रमुख उत्पादक था। इससे सिविल सर्विस परीक्षाओं में बैठने वाले परीक्षार्थियों के लिए पाठ्य-पुस्तकें बनती थीं।
प्रश्न जापान में मुद्रण प्रौद्योगिकी का कब और किसने सर्वप्रथम प्रचलन किया?
उत्तर- चीन के बौद्ध प्रचारकों ने 768-770 ई. में जापान में हाथ से मुद्रण की तकनीक का प्रचलन किया था।
प्रश्न जापान में छपी प्राचीनतम पुस्तक कौन-सी थी ?
उत्तर- 868 ई. में जापान की प्राचीनतम बौद्ध पुस्तक 'डायमंड सूत्र' छपी थी, जिसमें पाठ की छह शीटों के साथ-साथ काठ पर खुदे चित्र हैं।
प्रश्न त्रिपीटका कोरियाना क्या है?
उत्तर- त्रिपीटका कोरियाना 13वीं शताब्दी के मध्य में वुडब्लॉक्स मुद्रण के रूप में बौद्ध ग्रंथों का कोरियाई संग्रह है। इन ग्रंथों को लगभग 80000 वुडब्लॉक्स पर उकेरा गया था। इन्हें सन् -2007 में यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में अंकित किया गया था।
प्रश्न- इंग्लैंड में सस्ती किताबों को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर- इंग्लैंड में सस्ती किताबों को पेनी चैपबुक्स या एकपसिया कहा जाता था। इन सस्ती किताबों को गरीब लोग भी पढ़ सकते थे।
प्रश्न- ब्रिब्लियोथीक ब्ल्यू क्या थी?
उत्तर- ये फ्रांस में छपी कम कीमत वाली छोटी किताबें थीं। ये सस्ते कागज़ पर छपी और नीली जिल्द में बंधी होती थीं। नए पाठकों में रुचि बढ़ाने के लिए सस्ती कीमतों पर किताबें उपलब्ध करायी गई थीं।
प्रश्न 19वीं शताब्दी में यूरोप की महिलाओं के लिए प्रकाशित होने वाली पत्रिका की क्या विशेषता थी?
उत्तर- पेनी मैगजींस या एक पैसिया पत्रिकाएँ ख़ास तौर पर महिलाओं के लिए होती थीं। इसमें महिलाओं की सही चाल-चलन और गृहस्थी सिखाने वाली निर्देशिकाएँ होती थीं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
ग्रश्न मार्को पोलो कौन था? मुद्रण संस्कृति में उसका क्या योगदान था?
उत्तर मार्को पोलो इटली का एक महान अन्वेषक था।
मुद्रण संस्कृति में योगदान -
(i) 1295 में मार्को पोलो चीन में कई वर्ष खोज करने के बाद स्वदेश इटली लौटा।
(ii) वह अपने साथ लकड़ी की ब्लॉक प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी का ज्ञान लेकर आया।
(iii) इसके बाद इटली में ब्लॉक प्रिंटिंग द्वारा पुस्तकों की छपाई शुरू हुई और शीघ्र ही यह प्रौद्योगिकी यूरोप के अन्य भागों में फैल गई।
प्रश्न- शुरूआत के समय छपी किताबें कैसी होती थी?
उत्तर - (i) शुरू में छपी किताबें रंग-रूप और साज-सज्जा में अपनी हस्तलिखित पांडुलिपिये जैसी दिखती थीं।
(ii) धातुई अक्षर हाथ की सजावटी शैली का अनुकरण करते थे।
(iii) हाशिये पर फूल-पत्तियों की डिजाइन बनाई जाती थी और चित्र अकसर पेंट किए, जाते थे।
(iv) अमीरों के लिए बनाई किताबों में छपे पन्ने पर हाशिये की जगह बेल-बूटों के लिए खाली जगह छोड़ दी जाती थी।
(v) हर खरीदार अपनी रूचि के हिसाब से डिजाइन और पेंटर खुद तय करके उसे संवार सकता था।
प्रश्न - 'हाथ की छपाई की अपेक्षा मशीनी छपाई ने मुद्रण में क्रांति ला दी थी।' स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - 1450 से 1550 तक के 100 वर्षों में यूरोप के अधिकतर देशों में छापेखाने स्थापित हो चुके थे। काम की खोज तथा नए छापेखानों को शुरू करने में सहायता करने के लिए जर्मनी से प्रिंटरों ने दूसरे देशों में जाना शुरू कर दिया। जैसे ही अनेक प्रिंटिंग प्रेसें स्थापित हुईं, पुस्तकों के उत्पादन में भारी उछाल आ गया। 15वीं सदी के दूसरे हिस्से में यूरोप में 2 करोड़ छपी पुस्तकों की प्रतियों की बाढ़ आ चुकी थी। यह संख्या 16वीं सदी में लगभग 20 करोड़ प्रतियाँ हो गईं। इससे लोक चेतना बदली और चीज़ों को देखने का नजरिया बदला।
प्रश्न- मुद्रण क्रांति से आप क्या समझते हैं? •
उत्तर- मुद्रण क्रांति का तात्पर्य केवल कितावों का नया और विकसित होने से नहीं था बल्कि इसने छापाखाने में यूरोपीय लोगों की जिंदगियों को पूरी तरह से बदल दिया। छापेखाने का आविष्कार महज़ तकनीकी दृष्टि से नाटकीय बदलाव की शुरुआत नहीं थी। पुस्तक उत्पादन के नए तरीकों ने लोगों की जिंदगी बदल दी। इसके बाद सूचना और ज्ञान से, संस्थों और सत्ता से उनका रिश्ता ही बदल गया। इससे लोक चेतना बदली और चीजों को देखने का नजरिया बदल गया।
प्रश्न- भारत में मुद्रण युग से पहले की पांडुलिपियों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- (i) वे ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थीं।
(ii) पन्नों पर बेहतरीन तस्वीरें वाई जाती थीं।
(iii) उम्र बढ़ाने के ख्याल से उन्हें तख्तियों की जिल्द में या सिलकर बाँध दिया जाता था।
(iv) पांडुलिपियाँ क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध थीं।
(v) वे काफी महँगी तथा नाजुक होती थीं।
(vi) लिपियों को अलग-अलग तरीके से लिखे जाने के चलते उन्हें पढ़ना भी आसान नहीं था।
प्रश्न - हस्तलिखित पांडुलिपियों की कमियों का उल्लेख कीजिए। "
अथवा
नई मुद्रण तकनीक की खोज के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारकों का उल्लेख कीजिए
उत्तर- (i) हस्तलिखित पांडुलिपियों से बढ़ती हुई पुस्तकों की माँग कभी भी पूरी नहीं हो सकती थी।
(ii) नकल उतारना बहुत खर्चीला, श्रमसाध्य तथा समय लेने वाला व्यवसाय था।
(iii) पांडुलिपियाँ प्रायः नाजुक होती थीं और उनके लाने-ले जाने, रख-रखाव में बहुत सी कठिनाइयाँ थीं।
प्रश्न- भारत में छपाई कब शुरू हुई और मुद्रण युग पहले यहाँ सूचना और विचार कैसे लिखे जाते थे?
उत्तर भारत में छपाई की शुरूआत सोलहवीं सदी में हुई। भारत में इससे पहले सूचना और विचार लिखने के लिए संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्त लिखित पांडुलिपियों की पुरानी और समृद्ध परंपरा थी। पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थीं, उन्नीसवीं सदी के अंत तक, छपाई के आने के बाद भी पांडुलिपियाँ छापी जाती रही थीं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न- चीन में प्रिंटिंग के इतिहास का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई। यह छपाई हाथ से होती थी। तकरीबन 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख़्ती पर कागज़ को रगड़कर किताबें छापी जाने लगी थीं। एक लंबे अरसे (समय) तक मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक चीनी राजतंत्र था। सिविल सेवा परीक्षा से नियुक्त चीन की नौकरशाही भी विशालकाय थी, तो चीनी राजतंत्र इन परीक्षाओं के लिए बड़ी तादाद में किताबें छपवाता था। सत्रहवीं सदी तक आते-आते चीन में शहरी संस्कृति के फलने-फूलने से छपाई के इस्तेमाल में भी विविधता आई। अब मुद्रित सामग्री के उपभोक्ता सिर्फ विद्वान और अधिकारी नहीं रहे। व्यापारी अपने रोज़मर्रा के कारोबार की जानकारी लेने के लिए मुद्रित सामग्री का इस्तेमाल करने लगे। पढ़ना एक मनोविनोद भी बन गया।
पढ़ने की यह नयी संस्कृति एक नयी तकनीक के साथ आई। उन्नीसवीं सदी के अंत में पश्चिमी शक्तियों द्वारा अपनी चौकियाँ स्थापित करने के साथ ही पश्चिमी मुद्रण तकनीक और मशीनी प्रेस का आयात भी हुआ। पश्चिमी शैली के स्कूलों की जरूरतों को पूरा करने वाला शंचाई प्रिंट-संस्कृति का नया केन्द्र बन गया। हाथ की छपाई की जगह अब धीरे-धीरे मशीनी या यांत्रिक छपाई ने ले ली।
प्रश्न - जापान की मुद्रण संस्कृति की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताएँ ।
उत्तर- जापान की मुद्रण संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं
(i) बौद्ध प्रचारक द्वारा आरंभ 768-770 ई. में चीन के बौद्ध प्रचारकों ने जापान में हस्त मुद्रण प्रौद्योगिकी की स्थापना की थी।
(ii) प्राचीनतम पुस्तक - जापान की प्राचीनतम 868 ई. में छपी पुस्तक 'डायमंड सूत्र' है, जिसमें पाठ की छह शीटों के साथ-साथ काठ पर खुदे चित्र भी हैं।
(iii) सामग्री - चित्रों की छपाई के लिए ताश के पत्ते, कपड़े तथा कागज के नोटों को प्रयुक्त किया जाता था।
(iv) सस्ती पुस्तक - मध्यकालीन जापान में कवियों और गद्यकारों की रचनाएँ भी नियमित रूप से प्रकाशित होती थीं। पुस्तकें सस्ती और सुलभ थीं।
(v) एदो (टोकियो) में प्रिंट- 18वीं सदी के अंत में एदो (बाद में जिसे टोकियो के नाम से जाना गया) के शहरी क्षेत्र की चित्रकारी में शालीन संस्कृति का पता मिलता है जिसमें हम चायघर के मजमों, कलाकारों और तवायफ़ों को देख सकते हैं।
प्रश्न- यूरोप में मुद्रण के इतिहास का क्रमवार वर्णन कीजिए।
अथवा
यूरोप में मुद्रण संस्कृति का कैसे विकास हुआ ?
उत्तर- (i) चीन से कागज़ - 11वीं सदी में चीन से रेशम मार्ग के रास्ते कागज यूरोप पहुँचा था। इसके साथ ही लिपिकों द्वारा पांडुलिपियों के उत्पादन का कार्य एक सामान्य कारोबार बन गया।
(ii) यात्रियों तथा खोजियों की भूमिका 1295 में मार्को पोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में कई साल तक खोज करने के बाद इटली लौटा तो अपने साथ वुडब्लॉक मुद्रण की तकनीक भी लेकर आया। अब इटली के लोगों ने वुडब्लॉक मुद्रण द्वारा पुस्तकें छापना शुरू कर दिया। यह तकनीक यूरोप के अन्य भागों में भी प्रचलित हो गईं।
(iii) वुडब्लॉक प्रिंटिंग - 15वीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में कपड़ा छापने तथा सादा व संक्षिप्त टिप्पणी के साथ धार्मिक चित्र छापने के लिए वुडब्लॉक मुद्रण का प्रयोग व्यापक रूप में होने लगा ।
(iv) पहली प्रिंटिंग प्रेस - जोहान गुटेन्बर्ग द्वारा मुद्रण तकनीक में एक भारी क्रांति लाई गई। 1430 के दशक में स्ट्रैसबर्ग के जोहान गुटेन्बर्ग ने पहली प्रसिद्ध प्रिंटिंग विकसित की। उसने बाइबिल का पहला मुद्रण निकाला।
(v) मुद्रण प्रेस का विस्तार - अगले सौ वर्षों में, अर्थात् 1450 से 1550 के बीच, यूरोप के अधिकतर सब देशों में मुद्रण प्रेस स्थापित हो गई।
प्रश्न- उन नवाचारों (आविष्कारों) की चर्चा कीजिए जिनके बाद मुद्रण प्रौद्योगिकी में सुधार हुआ था।
अथवा
किन्हीं चार नवाचारों का उल्लेख कीजिए जिनसे उन्नीसवीं सदी के बाद, मुद्रण प्रौद्योगिकी में सुधार हुए हों
उत्तर- (i) धातु की प्रेस 19वीं सदी में मुद्रण प्रौद्योगिकी में कई प्रकार के आविष्कार - किए गए थे। अब प्रेस धातु की बनाई गई थी।
(ii) बेलनाकार प्रेस रिचर्ड एम. हो. जो एक अमरीकी अन्वेषक था, ने एक परिष्कृत प्रेस का प्रारूप बनाया उसने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस बनाई जो प्रति घंटे में 8,000 शीट छाप सकती थी।
(iii) ऑफ़सेट प्रेस 19वीं सदी के अंत में ऑफसेट प्रेस आ गया जिससे एक साथ छह रंग की छपाई संभव भी (iv) विद्युत चालित प्रिंटिंग प्रेस बीसवीं सदी के आगमन पर विद्युत चालित प्रिंटिंग प्रेस ने मुद्रण कार्य में तेजी ला दी।
(v) अन्य सुधार कई प्रकार के और विकास होते गए। कागज़ डालने की विधि में सुधार हुआ, प्लेटों की गुणवत्ता बेहतर हुई, स्वचालित पेपर रील और रंगों के लिए फोटो- विद्युतीय नियंत्रण भी काम में आने लगे।
इस तरह कई छोटी-छोटी मशीनी इकाइयों में कुल सुधार के कारण छपे पृष्ठों का रंग-रूप ही बदल गया।
प्रश्न- प्रकाशन के नए रूप ने किन-किन क्षेत्रों को प्रभावित किया?
उत्तर - प्रकाशन के नए रूप ने निम्न क्षेत्रों को प्रभावित किया
(i) मुद्रण ने एक विशेष प्रकार की भारतीय शैली और स्वरूप ले लिया था। अपने पाठकों को इसने अनुभव का नया संसार और मानव जीवन की विविधता का बोध प्रदान किया।
(ii) गीत, कहानियाँ, सामाजिक, राजनीतिक पर लेख पाठकों की दुनिया का हिस्सा बन गए। प्रकाशन के अलग-अलग तेवरों में इन्होंने इन्सानी सिंदगी और अंतरंग भावनाओं पर बल दिया जिनसे इनका स्वरूप तय होता था।
(iii) 19वीं सदी के अंत तक एक नयी दृश्य-संस्कृति आकार लेने लगी। छापाखानों की बढ़ती संख्या के साथ छवियों की कई नक़लें या प्रतियाँ आसानी से बनाई जा सकती थीं।
(iv) राजा रवि वर्मा जैसे चित्रकारों ने आम खपत के लिए तस्वीरें बनाईं। काठ की तख़्ती पर चित्र उकेरने वाले गरीब दस्तकारों ने लैटर प्रेस छापखाने के पास अपनी दुकानें लगाई और मुद्रकों से काम पाने लगे।
(v) सुलभ सस्ती तस्वीरें और कैलेंडर खरीदकर गरीब भी अपने घरों को सजाने लगे। इन तस्वीरों ने आधुनिकता और परंपरा, धर्म और राजनीति तथा समाज और संस्कृति के लोकप्रिय विचारों को उजागर करने लगे।
(vi) 1870 के दशक तक पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करते हुए कैरिकेचर और कार्टून छापने लगे थे। पश्चिमी पोशाकों और पश्चिमी अभिरुचियों का भी मज़ाक उड़ाया गया। कुछ चित्रों में सामाजिक परिवर्तन के डर को दिखाया गया।
प्रश्न- महिलाओं पर मुद्रण संस्कृति के प्रभाव की चर्चा कीजिए।
अथवा
व्याख्या कीजिए कि किस प्रकार प्रिंट संस्कृति ने भारत में, 19वीं सदी के अंत में महिलाओं के जीवन में बदलाव ला दिया?
उत्तर - 19वीं सदी के अंत में महिलाओं के जीवन पर मुद्रण संस्कृति का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इन प्रभावों को हम निम्न बिन्दुओं से जान सकते हैं -
(i) नारी शिक्षा लेखकों ने महिलाओं के जीवन व भावनाओं को लेकर लिखना प्रारंभ किया जिससे महिला पाठकों की संख्या बढ़ने लगी। वे शिक्षा में रुचि लेने लगीं और उनके लिएकई स्कूल व कॉलेज अलग से खोले गए। कई पत्रिकाओं ने भी नारी शिक्षा के महत्त्व की चर्चा
करनी शुरू कर दी।
(ii) महिला लेखिकाएँ - रससुंदरी देवी, कैलाशवाशिनी देवी, ताराबाई शिंदे, पंडिता रमाबाई कुछ प्रमुख महिला लेखिकाएँ थीं। इन्होंने महिलाओं के जीवन के बारे में गहराई से लिखा।
(iii) हिन्दी लेखन और महिलाएँ- उर्दू, तमिल, बंगला और मराठी मुद्रण संस्कृति तो पहले ही आ चुकी थी परन्तु हिन्दी मुद्रण 1870 के दशक में गंभीरतापूर्वक प्रारंभ हुआ। शीघ्र ही इसका एक बड़ा भाग नारी शिक्षा के प्रति समर्पित होने लगा।
(iv) नई पत्रिकाएँ - 20वीं सदी के आरंभ में, महिलाओं द्वारा लिखी गई पत्रिकाएँ बहुत लोकप्रिय हो गई, जिनमें महिलाओं की शिक्षा, विधवा जीवन, विधवा विवाह आदि पर चर्चा होती थी। कुछ में महिलाओं के लिए साज-सज्जा के लिए भी लिखा होता था।
(v) महिलाओं के लिए शिक्षा राम चड्ढा ने औरतों को आज्ञाकारी बीवियाँ बनने को सीख देने के उद्देश्य से 'स्त्री धर्म विचार' पुस्तक लिखी। खालसा ट्रस्ट सोसायटी ने इसी तरह के संदेश देते हुए सस्ती पुस्तिकाएँ छापीं। अच्छी औरत बनने के उपदेश को कई बार संवाद के रूप में पेश किया गया।
प्रश्न- अंग्रेजों की दमन नीति पर भारतीय मुद्रण के क्षेत्र में किस प्रकार की प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर- कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय ने 1820 के दशक तक प्रेस की आजादी को नियंत्रित करने वाले कुछ कानून पास किए। 1835 में गवर्नर जनरल बेंटिक प्रेस कानून की पुनर्समीक्ष करने के लिए राजी हो गया। 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू किया गया। अखबारों को सेंसर
के द्वारा गुजरना पड़ता था। इससे भारत वर्ष में बड़ी प्रतिक्रिया हुई
(i) दमन की नीति के बावजूद राष्ट्रवादी अखबार देश के हर कोने में बढ़ने और फैलने लगे। -
(ii) इन अखबारों ने औपनिवेशिक कुशासन की रिपोर्टिंग और राष्ट्रवादी ताक़तों की हौसला अफजाई जारी रखी।
(ii) राष्ट्रवादी आलोचना को खामोश करने की तमाम कोशिशों का उग्र विरोध हुआ।
(iv) सरकार के खिलाफ छापने पर भाषाई अखबारों को पहले से ही चेतावनी दी जाती थी और अगर चेतावनी की अनसुनी होती तो अखबार को जब्त कर लिया जाता और छपाई की मशीनें भी छीन ली जाती थीं। सरकार के ऐसा करने से राष्ट्रवाद की भावना को बल मिलता था। जैसे - जब पंजाब के क्रांतिकारियों को 1907 में कालापानी भेजा गया तो बाल गंगाधर तिलक ने अपने केसरी में उनके प्रति गहरी हमदर्दी जताई। परिणामस्वरूप तिलक को उनकी तीव्र लेखनी के कारण 1908 में कैद कर लिया गया जिसका पूरे भारत में व्यापक विरोध हुआ।
