kaksha dasvin adhyay 6 rajnitik dal mp board / राजनीतिक दल Class 10 questions answers / लोकतांत्रिक राजनीति कक्षा 10 अध्याय 6 question answer
अध्याय 6
राजनीतिक दल
★महत्वपूर्ण बिंदु-
● राजनीतिक दल लोगों का एक समूह होता है, जो चुनाव लड़ने और सरकार में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है।
● राजनीतिक दल के तीन प्रमुख हिस्से हैं; नेता, सक्रिय सदस्य और अनुयायी या समर्थक।
● राजनीतिक दल कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
● कई देशों में केवल एक ही दल को सरकार बनाने और चलाने को अनुमति होती है, उसे एक दलीय व्यवस्था कहते हैं।
● दो दलीय व्यवस्था वह है जिस देश में केवल दो दल हों।
● जब अनेक दल सत्ता के लिए होड़ में हों और दो दलों से ज्यादा के लिए अपने दम पर या दूसरों से गठबंधन करके सत्ता में आने का ठीक-ठीक अवसर हो तो इसे बहुदलीय व्यवस्था कहते हैं।
● जब किसी बहुदलीय व्यवस्था में अनेक राजनीतिक दल चुनाव लड़ने और सत्ता में आने के लिए आपस में हाथ मिला लेते हैं, तो इसे गठबंधन या मोर्चा कहते हैं।
● वह दल जिसका आधार व्यापक हो तथा लोकसभा के चुनाव अथवा चार राज्यों के विधानसभा के चुनाव में पड़े कुल मतों का कम से कम छः फीसदी उसने हासिल किया हो, राष्ट्रीय दल कहलाता है।
● शासक दल वह राजनीतिक दल होता है जो चुनाव जीतकर आता है और जिसकी सरकार होती है।
● चुनाव में किसी दल विशेष के टिकट पर चुने जाने के पश्चात् उस राजनीतिक दल को छोड़कर किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल हो जाना दल-बदल कहलाता है।
● शपथ पत्र एक लिखित दस्तावेज है जो किसी अधिकारी को सौंपा गया हो और जिसमें कोई व्यक्ति अपने बारे में निजी सूचना देता है और उनके बारे में शपथ उठाता है। इस पर सूचना देने वाले के हस्ताक्षर होते हैं।
● क्षेत्रीय राजनीतिक दल वे दल हैं जिनका आविर्भाव किसी विशेष क्षेत्र अथवा राज्य में होता है तथा वे उस क्षेत्र तथा वहाँ के लोगों के लिए कार्य करते हैं।
★पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोतर★
प्रश्न 1. लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाओं की चर्चा करें।
अथवा
"लोकतंत्र में राजनैतिक दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।" इस कथन कीजिए।
उत्तर - एक लोकतंत्रीय राज्य में राजनीतिक दल अनेक प्रकार की भूमिकाएँ निभाते हैं; जैसे
1. चुनाव लड़ना - प्रत्येक राजनीतिक दल चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े करता है उनको सफल बनाने के लिए जनता से अपील करता है। चुनाव में प्रचार के विभिन्न माध्यमों दूर दल अपनी नीति को जनता तक पहुँचाते हैं और अपने पक्ष में मतदान करने के लिए अपील करते हैं।
2. नीतियाँ व कार्यक्रम जनता के सामने रखना दल अलग-अलग नीतियों औ कार्यक्रमों को मतदाताओं के सामने रखते हैं और मतदाता अपनी पसंद की नीतियाँ और कार्यक्र चुनते हैं। लोकतंत्र में समान या मिलते-जुलते विचारों को एकसाथ लाना होता है ताकि सरका की नीतियों को एक दिशा दी जा सके। दल तरह-तरह के विचारों को बुनियादी राय तक समेट लाता है। सरकार प्रायः शासक दल की राय के अनुसार नीतियाँ तय करती है।
3. कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका राजनीतिक दल देश के कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कानूनों पर औपचारिक बहस होती है और उन्हें विधायिका में पास करवाना पड़ता है लेकिन विधायिका के सदस्य किसी न किसी दल के सदस्य होते हैं। इस कारण वे अपने दल के नेता के निर्देश पर फैसला करते हैं।
4. सरकार का निर्माण- चुनाव में जिस राजनीतिक दल को विधानमंडल में बहुमत प्राप्त हो जाता है, वह दल सरकार का गठन करता है और देश का शासन चलाता है।
5. विरोधी दल की स्थापना जो दल चुनाव हार जाते हैं, उनका कार्य विरोधी दल की स्थापना करना होता है। विरोधी दल सरकार की आलोचना करता रहता है और उसे निरंकुश बनने से रोकता है।
6. जनमत का निर्माण करना राजनीतिक दल देश की समस्याओं को स्पष्ट करते जनता के सामने रखते हैं जिससे जनमत के निर्माण में सहायता मिलती है।
7. कल्याणकारी कार्यक्रमों को जनता तक पहुँचाना दल ही सरकारी मशीनरी और सरकार द्वारा चलाए गए कल्याण कार्यक्रमों तक लोगों की पहुँच बनाते हैं। एक साधारण नागरिक के लिए किसी सरकारी अधिकारी की तुलना में किसी राजनीतिक कार्यकर्ता से जान-पहचान बनाना, उससे सम्पर्क साधना आसान होता है। इसी कारण लोग दलों को अपने करीब मानते हैं। दलों को भी लोगों की माँगों को ध्यान में रखना होता है। वरना जनता अगले चुनावों में उन्हें हरा सकती है।
प्रश्न 2. राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? -
उत्तर - लोकतंत्र में राजनीतिक दल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं किन्तु उन्हें कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो निम्नलिखित है
1. आंतरिक लोकतंत्र का अभाव- भारतीय लोकतांत्रिक राष्ट्र में राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का पूर्ण अभाव है। समस्त सत्ता हाई कमान तथा दल के सर्वोच्च नेता के हाथ में सिमटकर रह गई है। विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री का चुनाव केवल दिखावा मात्र है। वास्तव में विधायक हाई कमान के निर्देशों का ही पालन करते हैं। अनुशासनहीनता को परिभाषित करने का एकमात्र अधिकार दल में सर्वोच्च नेता को ही प्राप्त है। किसी दलीय नीति के सिद्धांतों के आधार पर आलोचना करना भी अनुशासनहीनता माना जाता है। दल के अध्यक्ष को कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा पत्र लिखना भी अनुशासनहीनता माना जा सकता है।
2. वंशवाद की चुनौती - दलों के जो नेता होते हैं वे अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकी लोगों और यहाँ तक कि अपने ही परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते हैं। अनेक दलों में शीर्ष पद पर हमेशा एक ही परिवार के लोग आते हैं। यह दल के अन्य सदस्यों के साथ अन्याय है। यह बात लोकतंत्र के लिए भी अच्छी नहीं है क्योंकि इससे अनुभवहीन और बिना जनाधार वाले लोग ताकत वाले उच्च पदों पर पहुँच जाते हैं।
3. धन और अपराधी तत्वों की बढ़ती घुसपैठ- सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतना चाहते हैं। इसके लिए वे कोई भी जायज नाजायज तरीका अपनाने से परहेज नहीं करते। वे ऐसे उम्मीदवार को उतारते हैं जिसके पास काफी पैसा हो या जो पैसे जुटा सके। कई बार राजनीतिक दल चुनाव जीत सकने वाले अपराधियों का समर्थन करते हैं या उनकी मदद लेते हैं। लोकतांत्रिक राजनीति में अमीर लोग और बड़ी कम्पनियों की बढ़ती भूमिका चिंताजनक है।
4. विकल्पहीनता की स्थिति- सार्थक विकल्प का अर्थ होता है कि विभिन्न पार्टियों की नीतियों और कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण अंतर हो, हाल ही के वर्षों में दलों के बीच वैचारिक अंतर कम होता गया है। यह प्रवृत्ति दुनियाभर में देखने को मिलती है। भारत की सभी बड़ी पार्टियों के बीच आर्थिक मसलों पर बड़ा कम अंतर रह गया है, जो लोग इससे अलग नीतियाँ चाहते हैं; उनके लिए कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है।
प्रश्न 3. राजनीतिक दल अपना कामकाज बेहतर ढंग से करें, इसके लिए उन्हें मजबूत बनाने के कुछ सुझाव दें।
उत्तर भारत में राजनीतिक दलों और उसके नेताओं को सुधारने के लिए हाल में जो प्रयास किये गए हैं या जो सुझाव दिए गए हैं; वे निम्नलिखित हैं-
1. विधायकों और सांसदों को दल-बदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। निर्वाचित प्रतिनिधियों के मंत्रियों द्वारा पद या पैसे के लोभ में दल-बदल करने में आई तेजी को देखते हुए ऐसा किया गया है। नए कानून के अनुसार अपना दल बदलने वाले सांसद व विधायक को अपनी सीट भी गंवानी होगी। इस नये कानून से दल-बदल में कमी आई है।
2. उच्चतम न्यायालय ने पैसे और अपराधियों का प्रभाव कम करने के लिए एक आदर जारी किया है, इस आदेश के द्वारा चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार को अपनी संपत्ति का अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का ब्यौरा एक शपथ पत्र के माध्यम से देश अनिवार्य कर दिया गया है। इस नयी व्यवस्था से लोगों को अपने उम्मीदवारों के बारे में बहुत से पक्की सूचनाएँ उपलब्ध होने लगी हैं।
3. चुनाव आयोग ने एक आदेश के जरिए सभी दलों के लिए संगठित चुनाव करना और आयकर रिटर्न का भरना जरूरी बना दिया है। दलों ने ऐसा करना शुरू भी कर दिया है, पर कई बार ऐसा सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए होता है। कुछ अन्य कदम जो राजनीतिक दलों में सुधार के लिए आवश्यक हैं.
1. राजनीतिक दलों के आंतरिक कामकाज को व्यवस्थित करने के लिए कानून बनाय जाना चाहिए। सभी दल अपने सदस्यों की सूची रखें, अपने संविधान का पालन करें, उच्च पदों के लिए खुले चुनाव करा
2. राजनीतिक दल महिलाओं को एक खास न्यूनतम अनुपात में (करीब एक तिहाई) जरूर टिकट दें। इसी प्रकार दल के प्रमुख पदों पर भी औरतों के लिए आरक्षण होना चाहिए।
3. चुनाव का खर्च सरकार उठाये; दलों को चुनाव लड़ने के लिए धन दे।
4. राजनीतिक दलों पर लोगों द्वारा दबाव बनाया जाए। यह काम पत्र लिखने, प्रचार करने और आन्दोलन के जरिए किया जा सकता है; यदि दलों को लगे कि सुधार न करने से उनका जनाधार गिरने लगेगा तो इसे लेकर वे गंभीर होने लगेंगे।
5. सुधार की इच्छा रखने वालों को खुद राजनीतिक दलों में शामिल होना चाहिए।
प्रश्न 4. राजनीतिक दल का क्या अर्थ होता है?
उत्तर- राजनीतिक दल को लोगों के एक ऐसे संगठित समूह के रूप में समझा जा सकत है जो चुनाव लड़ने और सरकार में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है।
प्रश्न 5. किसी भी राजनीतिक दल के क्या गुण होते हैं? उत्तर- एक राजनीतिक दल के मुख्य गुण (विशेषताएँ) निम्नलिखित होते हैं
1. राजनीतिक दल समाज के सामूहिक हितों को ध्यान में रखकर कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम बनाते हैं।
2. दल लोगों का समर्थन पाकर चुनाव जीतने के बाद उन नीतियों को लागू करने का प्रयास करते हैं।
3. दल किसी समाज के बुनियादी राजनीतिक विभाजन को भी दर्शाते हैं।
4. दल समाज के किसी एक हिस्से से सम्बन्धित होता है, इसलिए इसका नजरिया समाज
के उस वर्ग विशेष की तरफ झुका होता है।
5. किसी दल की पहचान उसकी नीतियों और उसके सामाजिक आधार से तय होती है।
6. राजनीतिक दल के तीन मुख्य हिस्से हैं नेता, सक्रिय सदस्य, अनुयायी या समर्थक।
★ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न ★
■★◆ अति लघु उत्तरीय प्रश्न ◆★■
प्रश्न- शासक दल किस दल को कहते हैं ?
उत्तर - जिस दल का शासन हो अर्थात् जिसकी सरकार बनी हो, शासक दल कहलाता है।
प्रश्न विरोधी दल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - चुनाव हारने वाले दल विरोधी दल कहलाते हैं जो शासक दल के विरोधी पक्ष की भूमिका निभाते हैं तथा सरकार की गलत नीतियों और असफलताओं की आलोचना करने के साथ वह अपनी अलग राय भी रखते हैं।
प्रश्न एक दलीय व्यवस्था किसे कहते हैं
उत्तर- एक दलीय व्यवस्था उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें देश में केवल एक हो राजनैतिक दल को राजनीति में भाग लेने का अधिकार होता है। चीन में एकदलीय व्यवस्था है।
प्रश्न द्विदलीय प्रणाली किसे कहते हैं?
उत्तर- जब किसी देश में दो राजनैतिक दल ही राजनीति में सक्रिय होते हैं, उसे द्विदलीय प्रणाली कहते हैं। इंग्लैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में यह प्रणाली मौजूद है।
प्रश्न - बहुदलीय प्रणाली से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- बहुदलीय प्रणाली उस व्यवस्था को कहते हैं जब देश में दो से अधिक राजनैतिक दल सक्रिय रूप से देश की राजनीति में भाग ले रहे हों। भारत तथा फ्रांस में बहुदलीय प्रणाली मौजूद है।
प्रश्न- गठबंधन अथवा मोर्चा क्या है?
उत्तर- जब किसी बहुदलीय व्यवस्था में अनेक पार्टियाँ चुनाव लड़ने और सत्ता में आने के लिए आपस में हाथ मिला लेती हैं तो इसे गठबंधन या मोर्चा कहा जाता है।
प्रश्न मिली-जुली सरकार किसे कहते हैं?
उत्तर- जब विधानमंडल में किसी एक राजनैतिक दल को पूर्ण बहुमत या समर्थन प्राप्त नहीं होता और कई दल मिलकर सरकार का गठन करते हैं तो उसे मिली-जुली सरकार कहा जाता है। केन्द्र में सरदार मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 2004 में बनी सरकार मिली-जुली सरकार का उदाहरण है।
प्रश्न शपथ-पत्र क्या होता है?
उत्तर- किसी अधिकारी को सौंपा गया एक दस्तावेज जिसमें कोई व्यक्ति अपने बारे में निजी सूचनाएं देता है और उसके सही होने के बारे में शपथ उठाता है, शपथ-पत्र कहलाता है। इस पर सूचना देने वाले के हस्ताक्षर होते हैं।
प्रश्न- भारत में राष्ट्रीय दल कितने हैं? इनके नाम बताइए।
उत्तर - वर्तमान में भारत में राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सात दल हैं। इनके नाम निम्न प्रकार हैं 1. इंडियन नेशनल कांग्रेस, 2. भारतीय जनता पार्टी, 3. बहुजन समाज पार्टी, 4. कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ इण्डिया मार्क्स सिस्ट (सीपीआई-एम), 5. कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ 7 इंडिया (सीपीआई), 6. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, 7. ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ।
◆ लघु उत्तरीय प्रश्न ◆
प्रश्न दलीय व्यवस्था कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर- दलीय व्यवस्था तीन प्रकार की होती है -
1. एक दलीय प्रणाली एक दलीय प्रणाली वह व्यवस्था है जहाँ देश में केवल एक ही राजनीतिक दल का गठन किया गया हो या वहाँ केवल एक ही राजनीतिक दल को देश की राजनीति में भाग लेने का अधिकार होता है। द्वितीय महायुद्ध से पूर्व जर्मनी में नाजी दल तथा इटली का फासिस्ट दल इसी के उदाहरण हैं। वर्तमान काल में चीन एक दलीय प्रणाली का उदाहरण है।
2. द्वि-दलीय प्रणाली द्विदलीय प्रणाली वह व्यवस्था है जिस देश में दो राजनीतिक दल ही देश की राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेते हों। यहाँ पर या तो अन्य राजनीतिक दल होते ही नहीं और यदि होते भी हैं तो वे देश की राजनीति पर कोई विशेष प्रभाव डालने की स्थिति में नहीं होते। इंग्लैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका द्वि-दलीय प्रणाली के उदाहरण हैं।
3. बहुदलीय प्रणाली बहुदलीय प्रणाली उस व्यवस्था को कहते हैं जब देश में कई (दो से अधिक) राजनीतिक दलों का गठन किया जाता है और अनेक दल देश की राजनीति को प्रभावित करने की स्थिति में होते हैं। भारत तथा फ्रांस में बहुदलीय प्रणाली मौजूद है।
प्रश्न राजनीतिक दलों के गठन के कोई तीन आधार बताइये।
उत्तर- राजनीतिक दलों का गठन मुख्यतः निम्नलिखित आधार पर किया जाता है
1. राजनीतिक आधार प्रत्येक देश में राजनीतिक मामलों पर लोगों के अलग-अलग विचार होते हैं। शासन के संगठन, लोगों के अधिकार, विदेश नीति तथा युद्ध एवं शांति आदि मामलों पर लोगों के मत में विभिन्नता होने के कारण अलग-अलग राजनीतिक दल संगठित हो जाते हैं।
2. आर्थिक आधार - देश की अर्थव्यवस्था और आर्थिक मामलों के बारे में लोगों के अलग-अलग विचार होते हैं। कुछ लोग व्यक्तिगत सम्पत्ति और पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का समर्थन करते हैं तो कुछ समाजवाद के समर्थक होते हैं। इस प्रकार आर्थिक विचारों में मतभेद के कारण अलग-अलग राजनीतिक दल संगठित हो जाते हैं।
3. जाति अथवा क्षेत्र के आधार पर जाति तथा क्षेत्रीयवाद भी कई बार राजनीति दलों के गठन के आधार बन जाते हैं, एक ही जाति से सम्बन्ध रखने वाले लोग अपने को एक राजनीतिक दल के रूप में गठित कर लेते हैं ताकि जाति के हितों को सुरक्षित रखा जा सके और उन्हें बढ़ावा दिया जा सके।
क्षेत्रीय आधार पर राजनीतिक दलों का गठन किया जाता है। असम गणपरिषद्, तेलुगु देशम, डी.एम.के. तथा नेशनल कांफ्रेंस आदि ऐसे ही राजनीतिक दल हैं।
प्रश्न भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन कब हुआ ? इसके प्रमुख सिद्धांतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन स्वाधीनता से पहले अर्थात् 1885 में हुआ। इस प्रकार यह भारत में सबसे पुराने दलों में से एक है। सिद्धांत
1. अपने वैचारिक रुझान में यह एक मध्यमार्गी (न वामपंथी न दक्षिणपंथी) पार्टी है।
2. यह पार्टी नए आर्थिक सुधारों का समर्थन करती है।
3. इस पार्टी का धर्म-निरपेक्षता पर पूरा विश्वास है।
4. कमजोर वर्गों तथा अल्पसंख्यक समुदायों के हितों को इसने अपना मुख्य अजेंडा बनाया है।
प्रश्न- भारतीय जनता पार्टी का गठन कब हुआ ? इसके प्रमुख सिद्धांत क्या हैं?
उत्तर पुराने भारतीय जनसंघ को पुनर्जीवित करके 1980 में यह पार्टी बनी।
सिद्धांत
1. यह पार्टी भारत की प्राचीन संस्कृति और मूल्यों से प्रेरणा लेकर मजबूत और आधुनिक भारत बनाना चाहती है।
2. भारतीय राष्ट्रवाद और राजनीति की अवधारणा में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद या हिंदु एक प्रमुख तत्व है।
3. यह पार्टी जम्मू और कश्मीर को क्षेत्रीय और राजनीतिक स्तर पर विशेष दर्जा देने के खिलाफ है।
4. यह देश में रहने वाले सभी धर्म के लोगों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने और धर्मांतरण पर रोक लगाने के पक्ष में है।
प्रश्न बहुजन समाज पार्टी का गठन कब हुआ ? इसके प्रमुख सिद्धांतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- स्व. कांशीराम के नेतृत्व में 1984 में इस पार्टी का गठन हुआ।
सिद्धांत - 1. यह पार्टी बहुजन समाज के लिए राजनीतिक सत्ता पाने का प्रयास तथा उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है, जिसमें शामिल हैं- दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियाँ और धार्मिक अल्पसंख्यक ।
2. पार्टी साहू महाराज, महात्मा फुले, पेरियार रामास्वामी नायकर और बाबा साहब अम्बेडकर के विचारों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेती है।
3. यह पार्टी दलितों और कमजोर वर्ग के लोगों के कल्याण और उनके हितों की रक्षा के मुद्दों पर सबसे अधिक सक्रिय है।
प्रश्न" भारत में बहुदलीय व्यवस्था ने लोकतंत्र को मजबूत बनाया।" कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर- 1. भारत के लिए आदर्श बहुदलीय व्यवस्था भारत के लिए सामाजिक तथा भौगोलिक विविधता के कारण आदर्श है।
2. व्यापक आधार बहुदलीय व्यवस्था ने लोकतंत्र के आधार को मजबूत बनाया है। इस प्रणाली में विभिन्न हितों और विचारों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल जाता है।
3. मजबूत विरोधी दल बहुदलीय प्रणाली मजबूत विरोधी दल प्रदान करती है जो सरकार की गतिविधियों पर नियंत्रण रख सकती है।
प्रश्न प्रांतीय दल या क्षेत्रीय दल क्या है?
उत्तर- प्रांतीय दल या क्षेत्रीय दल वे दल हैं जिनका कामकाज क्षेत्रीय स्तर पर होता है। इन्हें पिछले आम चुनावों में कम-से-कम तीन राज्यों में 69% या इससे अधिक वोट हासिल होने चाहिए। एक प्रांतीय पार्टी का क्षेत्रीय दृष्टिकोण होता है, यह क्षेत्रीय मामलों, क्षेत्र के लोगों की विशेष समस्याओं को महत्व देती है तथा इसका प्रभाव केवल क्षेत्र के लोगों पर ही होता है। एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहचान पर महत्व देती है, जिसका यह संरक्षण करना तथा बढ़ावा देना चाहती है। यह अधिक से अधिक स्वशासन चाहती है। क्षेत्रीय पहचान के नाम पर ये विभिन्नताओं पर जोर देती हैं। क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी को दिए गए चुनाव चिह्न केवल एक विशेष राज्य अथवा केन्द्र शासित प्रदेश के लिए ही दिए जाते हैं।
★ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ★
प्रश्न- भारत में वंशवाद राजनीतिक दलों के लिए किस प्रकार प्रमुख चुनौती है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"वंशवाद राजनीतिक दलों के लिए एक प्रमुख चुनौती है।" व्याख्या कीजिए।
उत्तर- 1. चूँकि अधिकांश दल अपना कामकाज पारदर्शी तरीके से नहीं करते, इसलिए सामान्य कार्यकर्ता के नेता बनने और ऊपर आने की गुंजाइश काफी कम होती है।
2. जो लोग नेता होते हैं, वे अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकी लोगों और यहाँ तक कि अपने ही परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते हैं। अनेक दलों में शीर्ष पद पर हमेशा एक ही परिवार के लोग आते हैं।
3. वंशवाद के कारण निचले स्तर के कार्यकर्ता शीर्ष पद पर नहीं पहुँच पाते। यदि संसद में सभी संसद के सदस्यों के आधारभूत आँकड़ों को देखा जाए, तो पता चलता है कि 50% से भी कम संसद के सदस्य निचले स्तर से राजनीति में आए हैं जबकि अधिकतर संसद महिलाएँ अपने पारिवारिक सम्बन्धों के कारण ही राजनीति में आती हैं।
4. राजनीतिक दल में आंतरिक लोकतंत्र की कमी के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक वंशवाद है। आंतरिक लोकतंत्र की कमी के कारण, कुछ नेता पार्टी के नाम पर निर्णय लेने का अधिकार हथिया लेते हैं।
5. वंशवाद के कारण अनेक पार्टियाँ शीर्ष नेता के लिए नियमित चुनाव कराने में भी असमर्थ रहती है।
प्रश्न लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका (कार्यों) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर लोकतंत्रीय शासन प्रणाली चुनावों पर आधारित होती है। चुनावों में जिस दल को.बहुमत प्राप्त हो जाता है, वह सरकार की स्थापना करता है और अन्य दल विरोधी दल कहलाते हैं। लोकतंत्र में विरोधी दलों का भी उतना ही महत्व होता है जितना कि सत्तारूढ़ दल का लोकतंत्र में विरोधी दल निम्नलिखित भूमिका निभाते हैं -
1. सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाना- लोकतंत्र में सरकार का निर्माण बहुसंख्यक दल के द्वारा किया जाता है। बहुमत के समर्थन के कारण सरकार कई बार मनमाने कानून व नीतियाँ लागू करने का प्रयत्न करती हैं और जनता पर अत्याचार करती हैं। विरोधी दल सरकार का विरोध करके उसकी निरंकुशता पर रोक लगाता है और उसे मनमानी करने से रोकता है।
2. जनमत की अभिव्यक्ति करना विरोधी दल सरकार व साधारण जनता के बीच कड़ी का काम करते हैं। विभिन्न विषयों पर जनता की भावनाओं, इच्छाओं व प्रतिक्रियाओं को सत्तारूढ़ दल संसद तक पहुंचाते हैं। विरोधी दल विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रश्नों पर जनमत जागृत करके अपने मत को प्रस्तुत करता है जिससे जनमत के निर्माण में भी सहायता मिलती है।
3. बैकल्पिक सरकार प्रस्तुत करना - विरोधी दल वैकल्पिक सरकार प्रस्तुत करते हैं। यदि किसी समय सरकार अचानक त्याग-पत्र दे दे या उसे हटा दिया जाए, तो विरोधी दल तुरंत सरकार का गठन करके शासन की बागडोर संभाल लेते हैं।
4. राजनैतिक चेतना उत्पन्न करना लोकतंत्रीय शासन प्रणाली की सफलता के लिए जनता में राजनैतिक चेतना का जागृत होना आवश्यक है। इसके बिना चुनावों के द्वारा सरकार में परिवर्तन लाना कठिन होता है विरोधी दल सरकार की त्रुटियों को जनता तक पहुँचाते हैं और देश तथा सरकार के बारे में जनता को जानकारी देते हैं। इस प्रकार वे जनता में राजनैतिक जागृति उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न- भारत की चुनाव व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए कुछ उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- 1. चुनाव का खर्च सरकार द्वारा उठाए जाने का प्रावधान बहुत से लोगों का विचार है कि धन सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के उद्देश्य से चुनावों का खर्च सरकार को वहन करना चाहिए। पूर्व गृहमंत्री तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता श्री इन्द्रजीत गुप्ता की अध्यक्षता में स्थापित संसदीय कमेटी ने भी यही परामर्श दिया है।
2. राजनीतिक दलों के आंतरिक कामकाज को व्यवस्थित करना राजनीतिक दलों के आंतरिक कामकाज को व्यवस्थित करने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए। सभी दल अपने सदस्यों की सूची रखें, अपने संविधान का पालन करें, पार्टी में विवाद की स्थिति में एक स्वतंत्र अधिकारी को पंच बनाएँ, सबसे बड़े पदों के लिए खुला चुनाव कराएँ।
3. प्रत्याशियों की संख्या में कमी करने का प्रावधान यह आमतौर पर देखा गया है। कि बड़ी संख्या में प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं तथा कभी-कभी इनकी संख्या सैंकड़ों को भी पार कर जाती है, जो कि चुनाव अधिकारी के लिए एक समस्या बन जाती है। इसलिए गैर-संजीदा प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए हतोत्साहित करना चाहिए।
4. मत सूची पर पुनर्विचार मत सूची पर नियमित अंतराल के बाद पुनर्विचार होना चाहिए तथा मृत अथवा फर्जी मतदाताओं के नाम सूची से निकाल देने चाहिए तथा योग्य मतदाताओं के नाम सूची में शामिल होने चाहिए।
5. लोगों की भूमिका आम नागरिक, दबाव समूह, आन्दोलन और मीडिया इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अगर दलों को लगे कि सुधार न करने से उनका जनाधार गिरने लगेगा या उनकी छवि खराब होगी तो इसे लेकर वे गंभीर होने लगेंगे। लोकतंत्र की गुणवत्ता लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी से तय होती है। अगर आम नागरिक खुद राजनीति में हिस्सा न लें और बाहर से ही बातें करते रहें तो सुधार मुश्किल है। खराब राजनीति का समाधान है ज्यादा से ज्यादा राजनीति और बेहतर राजनीति।
