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Sachin ahirwar
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लोकतांत्रिक राजनीति कक्षा 10 अध्याय 4 question Answer / लोकतांत्रिक राजनीति कक्षा 10 अध्याय 4 question Answer / kaksha dasvin adhyay 4 Jati Dharm aur laingik masale mp board



अध्याय 4


जाति, धर्म और लैंगिक मसले


महत्वपूर्ण बिंदु



●सामाजिक विभाजन और भेदभाव वाली तीन सामाजिक असमानताएँ लिंग, धर्म और जाति पर आधारित हैं।


● लैंगिक असमानता सामाजिक असमानता का एक रूप है जो हर जगह नजर आता है। 

● लड़के और लड़कियों के मन में शुरू से यह बात बैठा दी जाती है कि औरतों की मुख्य जिम्मेवारी गृहस्थी चलाने और बच्चों का पालन-पोषण करने की है।


● पहले सिर्फ पुरुषों को ही सार्वजनिक मामलों में भागीदारी करने, वोट देने या सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने की अनुमति थी। 

● राजनीति में लैंगिक मुद्दे उभरे, औरतों ने अपने संगठन बनाए और बराबरी के अधिकार हासिल करने के लिए आंदोलन किये। इन आंदोलनों को नारीवादी आंदोलन कहा जाता है।


● दुनिया के कुछ हिस्सों, जैसे स्वीडन, नार्वे और फिनलैंड जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर काफी ऊंचा है।


● हमारा समाज अभी भी पितृ प्रधान है।


● हमारे देश में महिलाओं में साक्षरता की दर अब भी मात्र 54 फीसदी है जबकि पुरुषों में 76 फीसदी है। 

● समान मजदूरी से संबंधित अधिनियम में कहा गया है कि समान काम के लिए समान मजदूरी दी जाएगी लेकिन काम के हर क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम

मजदूरी मिलती है।


● हमारे देश का लिंग अनुपात (प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या) गिरकर 919 रह गया है।


● भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है।


● स्थानीय सरकारों में एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। 

● भारत समेत अनेक देशों में अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं।


● जब राज्य अपनी सत्ता का इस्तेमाल किसी एक धर्म के पक्ष में करने लगता है तो राजनीति से धर्म को इस तरह जोड़ना ही सांप्रदायिकता है।


● एक धर्म के लोगों के हित और उनकी आकांक्षाएँ हर मामले में एक जैसी नहीं होती हैं।


● श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैण्ड में ईसाई धर्म का जो दर्जाक है उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।


● धर्मनिरपेक्षता कुछ पार्टियों या व्यक्तियों की एक विचारधारा भर नहीं है। यह विचार हमारे संविधान की बुनियाद है। 

● लिंग और धर्म पर आधारित विभाजन तो दुनिया भर में हैं पर जाति पर आधारित विभाजन सिर्फ भारतीय समाज में है।


● 1961 के बाद से हिंदू, जैन और ईसाई समुदाय का हिस्सा मामूली रूप से घटा है जबकि मुसलमान, सिख और बौद्ध का हिस्सा मामूली रूप से बढ़ा है। 

● अनुसूचित जातियों को हम आम तौर पर दलित कहते हैं इसमें सामान्यतः वे हिन्दू जातियाँ आती हैं जिन्हें हिन्दू सामाजिक व्यवस्था में अछूत माना जाता था। 

● अनुसूचित जनजातियों में आमतौर पर आदिवासी आते हैं।


● सामाजिक आर्थिक बदलावों के चलते आधुनिक भारत में जाति की संरचना और व्यवस्था आदि में भारी बदलाव आया है।


● जब लोग किसी जाति विशेष को या उसात के ज्यादातर लोग उसी पार्टी को वोट देते हैं। तो उन्हें किसी एक पार्टी का 'वोट बैंक' कहते हैं।


● जातिवाद तनाव, टकराव और हिंसा को भी बढ़ावा देता है।


● एक जाति अपने दम पर सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकती इसलिए वह ज्यादा राजनीतिक ताकत पाने के लिए दूसरी जातियों या समुदायों को भी साथ लेने की कोशिश करती है तो इससे उनके बीच संवाद और मोल तोल होता है।


पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोतर


प्रश्न 1. जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का चिक करें जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमजोर स्थिति में होती हैं। उत्तर- निम्नलिखित पहलू यह दर्शाते हैं कि भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे

कमजोर स्थिति में होती हैं


1. भारत के अनेक भागों में माँ-बाप को केवल लड़के को ही चाह होती है और कई बार लड़की के जन्म लेते हो उसकी हत्या कर दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप भारत में लिंग अनुपात प्रति एक हजार लड़कों के मुकाबले 919 लड़कियाँ रह गया है। कई राज्यों में तो यह अनुपात और अधिक गिरकर 350 और उससे भी नीचे चला गया है।

2. लड़कियों तथा लड़कों के पालन-पोषण के दौरान ही उनके मन में यह विचार बैठा दिया जाता है कि महिलाओं की मुख्य जिम्मेवारी संतान उत्पन्न करना, बच्चों का पालन-पोषण करना तथा घर की अन्य जिम्मेवारियाँ सँभालना है। औरतें घर के अन्दर का सारा काम-काज जैसे घर की सफाई करना, खाना बनाना, कपड़े धोना तथा बच्चों की देखभाल करना आदि कार्य करती हैं जबकि पुरुष घर के बाहर का काम करते हैं।


3. यद्यपि स्त्रियों को भी पुरुषों के समान राजनैतिक अधिकार दिए गए हैं परन्तु राजनीति में उनकी भागीदारी बहुत कम दिखाई देती है। इस बात का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि आज तक किसी भी लोकसभा में महिलाओं की संख्या कुल सदस्य संख्या 14.36 फीसदी तक पहुंची है।


4. कई परिवारों के बच्चों के पालन-पोषण में लड़के तथा लड़की के खाने-पीने तथा शिक्षा के बारे में भी भेदभाव किया जाता है।


5. भारत में आज भी ऊँचा वेतन पाने वाली तथा ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले बहुत कम है।


16. यद्यपि समान काम के लिए समान वेतन सम्बन्धी कानून पास कर दिया गया है, परन्तु अब भी कई क्षेत्रों में महिलाओं को समान कार्य के लिए पुरुषों के समान वेतन नहीं मिलता।


प्रश्न 2. विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सबके साथ एक एक उदाहरण भी दें।


उत्तर- यद्यपि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और धर्म के आधार पर संविधान किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता, फिर भी साम्प्रदायिकता राजनीति में अनेक रूप धारण किए हुए है। यह बात निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट है


1. साम्प्रदायिक राजनैतिक दलों का गठन भारत में अनेक राजनैतिक दलों का गठन - साम्प्रदायिक आधार पर किया जाता है। मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा तथा अकाली दल धर्म पर आधारित राजनैतिक दल हैं।


2. धर्म के आधार पर चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन सभी राजनैतिक दल - चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार का चुनाव करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि उस चुनाव क्षेत्र में किस धर्म को मानने वाले लोग बहुसंख्या में हैं और प्रायः धार्मिक समुदाय सदस्य को ही अपना टिकट देते हैं।


3. धर्म के आधार पर मतदान चुनावों में ऐसे मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक होती है जो अपने धर्म से सम्बन्ध रखने वाले उम्मीदवार के पक्ष में ही मतदान करते हैं।


4. मंत्रिमंडल के निर्माण के समय मंत्रिमंडल के निर्माण के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि प्रत्येक धार्मिक समुदाय के व्यक्ति को कुछ न कुछ स्थान दिए जाएँ। प्रत्येक राज्य में उस धार्मिक समुदाय को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाता है, जो उस राज्य में अच्छी संख्या में मौजूद होता है।


प्रश्न 3. बताइए कि भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं? 


उत्तर - यद्यपि भारतीय संविधान द्वारा जाति के आधार पर नागरिकों के बीच भेदभाव को समाप्त कर दिया गया है परन्तु आज भी अनेक क्षेत्रों में जातीय असमानताएँ देखने को मिलती हैं, छुआछूत, जो जातिवाद का सबसे घिनौना रूप है, को संविधान द्वारा समाप्त कर दिया गया है और किसी भी रूप में इसका प्रयोग दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया है परन्तु कई स्थानों पर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, यह आज भी जारी है। आज भी अधिकतर लोग अपनी जाति के बाहर विवाह नहीं करते हैं, न ही एकसाथ बैठकर भोजन या अन्य मेल-मिलाप करते हैं। जिन जातियों को पहले शिक्षा से वंचित रखा गया उनके सदस्य आज भी संवैधानिक तौर पर पिछड़े हुए हैं। आज भी जाति आर्थिक हैसियत के निर्धारण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः कहा जा सकता है कि भारत में अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं।


प्रश्न 4. दो कारण बताएं कि क्यों सिर्फ़ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते। 


उत्तर- 1. देश में किसी भी संसदीय चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का पूर्ण बहुमत नहीं है। चुनाव जीतने के लिए प्रत्येक उम्मीदवार के लिए अपनी जाति के मतदाताओं के अतिरिक्त अन्य जातियों और समुदायों के लोगों का भरोसा हासिल करना पड़ता है।


2. एक ही जाति या समुदाय के भीतर भी अमीर और गरीब लोगों के हित अलग-अलग होते हैं। एक ही समुदाय के अमीर और गरीब लोग अक्सर अलग-अलग पार्टियों को वोट देते हैं। सरकार के कामकाज के बारे में लोगों की राय और नेताओं की लोकप्रियता का चुनावों पर अक्सर निर्णायक असर होता है।


प्रश्न 5. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?


उत्तर - भारतीय लोकतंत्र तीन स्तरों पर कार्यरत है और तीनों स्तरों पर अलग-अलग विधायिकाएँ हैं। केन्द्रीय स्तर पर संसद है जिसमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व सदा से ही बहुत कम रहा है। आज तक किसी भी लोकसभा में महिला प्रतिनिधियों की संख्या सदन की कुल संख्या का 1/10 भाग नहीं पहुंच पाई। लोकसभा में इनकी संख्या पहली बार 2019 में ही 14.36 फीसदी तक पहुँच सकी है। राज्यों की विधानसभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 5 प्रतिशत से भी कम है। भारत इस मामले में अफ्रीका और लातिन अमेरिका के कई विकासशील देशों से पीछे है। मंत्रिमंडल में भी महिलाओं की संख्या बहुत ही कम रहती है, चाहे प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री के पद पर कोई महिला हो विराजमान क्यों न हो।

संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों के लागू होने के पश्चात्, ग्रामीण तथा शहरी स्थानीय संस्थाओं में एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित करने की व्यवस्था कर दी गई है। संसद तथा राज्य विधानसभाओं में भी इस प्रकार के आरक्षण हेतु एक विधेयक पेश भी किया गया था पर दस वर्षों से ज्यादा अवधि से वह लटका पड़ा है। विभिन्न राजनैतिक दलों के बीच मतभेद होने के कारण यह पास नहीं हो सका है। 


प्रश्न 6. किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं।


उत्तर- 1. भारतीय संविधान ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में अंगीकार नहीं किया है; जैसे- श्रीलंका में बौद्ध धर्म तथा पाकिस्तान में इस्लाम को स्वीकार किया गया है।


2. भारत के प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने तथा उसका प्रचार करने का अधिकार दिया गया है। राज्य का कोई धर्म नहीं है और धर्म के आधार पर राज्य द्वारा नागरिकों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता।


अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


वस्तुनिष्ठ प्रश्न


प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए


• वह समाज, जो महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व या ज्यादा शक्ति दे


(क) नारीवादी समाज


(ग) पितृ-प्रधान समाज


(ख) विजातीय समाज


(घ) साम्यवादी समाज


उत्तर (ग) पितृ-प्रधान समाज


'नारीवादी आन्दोलन' का लक्ष्य होता है -


(क) स्वतंत्रता


(ख) समानता


(ग) कार्य से मुक्ति


(घ) सत्ता

 उत्तर- (ख) समानता


• किन देशों में महिलाओं की भागीदारी का स्तर काफी ऊंचा है


(क) अमेरिकी देश


(ख) दक्षिणी एशियाई देश


(ग) स्कैंडिनेवियाई देश (घ) लातिन अमरीकी देश


उत्तर- (ग) स्कैंडिनेवियाई देश


• धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है


(क) इंग्लैण्ड (ग) पाकिस्तान


(ख) भारत


(घ) श्रीलंका


उत्तर- (ख) भारत


• अनुसूचित जनजातियों में आमतौर पर कौन शामिल होता है -


(क) दलित हिन्दू (ग) विदेशी


(ख) अगड़ी जाति


(घ) आदिवासी उत्तर (घ) आदिवासी


प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए -


1. भारत में महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में .............है

 2. महिला आन्दोलनों की माँग है कि सभी धर्मों के.........कानून, जो महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं, को बदल देना चाहिए। 

3. भारतीय राज्य में कोई……… धर्म नहीं है।


4. साम्प्रदायिक राजनीति इस सोच पर आधारित होती है कि……… ही सामाजिक समुदाय का निर्माण करता है।

5. ज्योतिबा फुले, महात्मा गाँधी, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और पेरियार ने एक ऐसे समाज को स्थापित करने और उसके लिए काम करने का निर्णय लिया, जिसमें…………. भेदभाव न हो।


उत्तर- 1. कम, 2. पारिवारिक, 3. राजकीय, 4. धर्म, 5. जातिगत ।


प्रश्न 3. एक शब्द / वाक्य में उत्तर दीजिए


 ● औरत और मर्द के समान अधिकारों और अवसरों में विश्वास करने वाली महिला या पुरुष । 

उत्तर- नारीवादी।


• विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से सम्बन्धित कानून।


उत्तर- पारिवारिक कानून ।




● " धर्म को राजनीति से कभी भी अलग नहीं किया जा सकता।" ये शब्द किसने कहे थे ?

उत्तर- महात्मा गाँधी ।


धर्म और राजनीति का सम्बन्ध कब समस्या उत्पन्न करता है?

उत्तर- जब धर्म को राष्ट्र के आधार के रूप में देखा जाता है। 


• हमारे संविधान निर्माताओं ने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का मॉडल क्यों चुना? 

उत्तर - क्योंकि साम्प्रदायिकता देश के लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती रही है।


अति लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न- श्रम के लैंगिक विभाजन से आप क्या समझते हैं


उत्तर- श्रम के बँटवारे का वह तरीका जिसमें घर के अन्दर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं या अपनी देख-रेख में घरेलू नौकरों/ नौकरानियों से करवाती हैं, श्रम का लैंगिक विभाजन कहलाता है।


प्रश्न- 'पितृसत्तात्मक समाज' का क्या अर्थ है?


उत्तर- एक ऐसा समाज जिसमें पिता अथवा पुरुष को महिलाओं की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता है, पितृसत्तात्मक समाज कहलाता है।


प्रश्न - समान मजदूरी अधिनियम क्या है?


उत्तर- समान मजदूरी अधिनियम के अंतर्गत समान काम के लिए समान मजदूरी दी जाएगी, यह लैंगिक भेदभाव को नहीं मानता है।


प्रश्न- पारिवारिक कानून क्या हैं?


उत्तर- विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से सम्बन्धित कानून पारिवारिक कानून हैं। हमारे देश में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग पारिवारिक कानून हैं।


प्रश्न- धर्मनिरपेक्ष राज्य क्या है?


उत्तर- धर्मनिरपेक्ष राज्य वह राज्य है जिसमें नागरिकों को कोई भी धर्म अपनाने की स्वतंत्रता होती है तथा किसी भी धर्म को कोई विशेष दर्जा नहीं दिया जाता है। 


प्रश्न- किन्हीं चार समाज सुधारकों के नाम बताएँ, जिन्होंने जातिगत भेदभाव से मुक्त समाज व्यवस्था बनाने की बात की और उसके लिए काम किया।


उत्तर ज्योतिबा फुले, महात्मा गाँधी, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर तथा पेरियार रामास्वामी - नायकर' ने जातिगत भेदभाव से मुक्त समाज व्यवस्था बनाने की बात की और उसके लिए काम किया।


लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न वे कौन-कौन सी सामाजिक बुराइयाँ थीं जिनसे नारी समाज पीड़ित था ? उनमें से किन्हीं तीन का वर्णन कीजिए।


अथवा


महिलाओं के बारे में पाई जाने वाली कोई तीन कुप्रथाएँ असमानताएँ बताओ।


उत्तर- भारतीय महिलाएँ अनेक सामाजिक बुराइयों (कुप्रथाओं/ असमानताओं से पीड़ि थीं। इनमें से कुछ मुख्य निम्नलिखित हैं


1. सती प्रथा - विधवा स्त्री को पति की मृत्यु के समय उनके साथ जला दिया जाता था।


2. दहेज प्रथा - लड़की की शादी में बहुत अधिक दहेज देना पड़ता था। 

3. विधवापन - विधवा महिलाओं को पुनः विवाह नहीं करने दिया जाता था। यदि कोई स्त्री ऐसा करती तो उसके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था और उसे अपने पति को सम्पत्ति में से कोई भाग नहीं दिया जाता था।


प्रश्न नारीवादी आन्दोलन क्या हैं? उनकी मुख्य माँगें क्या थीं?


अथवा


नारीवादी आन्दोलन क्या है? भारत में नारीवादी आन्दोलन की मुख्य राजनीतिक माँगों का वर्णन कीजिए।


उत्तर - नारीवादी वे आन्दोलन हैं जिनका गठन विभिन्न महिला संगठनों ने औरतों के व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में बराबरी की माँग उठाने के लिए किया था। 

इनकी मुख्य माँगें निम्न थीं


1. इन आन्दोलनों ने जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए बराबर अधिकारों की माँग रखी।


2. विभिन्न देशों में महिलाओं को वोट का अधिकार प्रदान करने की माँग की।


3. इन आन्दोलनों ने महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने की माँग की।


4. इन आन्दोलनों ने महिलाओं के लिए शिक्षा तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने की माँग भी को।


प्रश्न साम्प्रदायिक राजनीति का विचार बुनियादी रूप से गलत क्यों है?


उत्तर- साम्प्रदायिक राजनीति की अधिकांश मान्यताएँ सही नहीं हैं। एक धर्म के लोगों के हित और उनकी आकांक्षाएँ हर मामले में एक जैसी हों, यह सम्भव नहीं है। हर व्यक्ति कई तरह की भूमिका निभाता है। उसको हैसियत और पहचान अलग-अलग होती है। हर समुदाय में तरह तरह के विचारों के लोग होते हैं। इन सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है इसलिए एक धर्म से जुड़े सभी लोगों को एक ही मानकर देखना या उस समुदाय को विभिन्न आवाजों को दबाना गलत है।


प्रश्न- चुनावी राजनीति में 'सम्प्रदाय एवं धार्मिक विचारों के आधार पर मतदान' पर टिप्पणी लिखिए।


उत्तर- 1. सम्प्रदाय के आधार पर मतदान राजनीतिक नेता मतदाताओं को अपनी साम्प्रदायिक सम्बद्धता के आधार पर मतदान के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे मतदाताओं को उनके धर्म विशेष का होने के कारण वोट देने की अपील करते हैं जो कि गलत बात है।


2. धार्मिक विचारों के आधार पर मतदान धार्मिकता के आधार पर मतदान भी साम्प्रदायिकता का एक अन्य आम रूप है। इसमें धार्मिक चिन्हों, धार्मिक नेताओं, भावनात्मक अपीलों और भय को दिखाया जाता है ताकि एक ही धर्म के अनुयायी एक ही राजनीतिक अखाड़े में आ सकें। चुनावी राजनीति में इसमें प्रायः विशेष अपील की जाती है जिसमें एक विशेष धर्म के मतदाताओं की रुचियों व भावनाओं को किसी अन्य की तुलना में महत्व देने की बात कही जाती है।


प्रश्न- अस्पृश्यता या छुआछूत पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए


उत्तर अस्पृश्यता का शाब्दिक अर्थ है न छूना। इसे सामान्य भाषा में छुआछूत की समस्या भी कहते हैं। भारत में जाति पर आधारित समाज में उच्च जातियों के लोगों ने निम्न जातियों के लोगों को अछूत मानना शुरू कर दिया जिससे छुआछूत की प्रथा का आरम्भ हुआ। अछूतों के साथ बड़ा ही अमानवीय व्यवहार किया जाता था। उन्हें मंदिरों में नहीं जाने दिया जाता था और गाँवों में तो उन्हें उस कुएँ से पानी भरने की भी इजाजत नहीं थी, जहाँ से सवर्ण अर्थात् उच्च जातियों के लोग पानी भरते थे। उनके साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया जाता था यद्यपि भारतीय संविधान द्वारा अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया है और इसका प्रयोग कानूनी अपराध बना दिया गया है, परन्तु देश के कई क्षेत्रों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह प्रथा मौजूद है।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न- जीवन के विभिन्न पक्षों का वर्णन करें जिनमें भारत की महिलाओं के प्रति भेदभाव किया जाता है।


उत्तर- 1. उपेक्षित व्यवहार लड़कियों की एक सीमित संख्या ही उच्च शिक्षा की ओर - कदम बढ़ा पाती है क्योंकि माँ-बाप अपने संसाधनों को लड़के-लड़की दोनों पर बराबर खर्च करने की जगह लड़कों पर ज्यादा खर्च करना पसंद करते हैं। इसी कारण महिलाओं में साक्षरता दर मात्र 54 प्रतिशत है जबकि पुरुषों में 76 प्रतिशत।


2. काम के लिए कम आय ऊँची तनख्वाह तथा ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं का औसत बहुत कम है। भारत में औसतन एक स्त्री एक पुरुष की तुलना में रोजाना एक घंटा ज्यादा काम करती है पर उसको अधिक काम के लिए पैसे नहीं मिलते इसलिए उसके काम को मूल्यवान नहीं माना जाता। है। लड़की को जन्म लेने से पहले ही खत्म कर देने के तरीके इसी मानसिकता से पनपते हैं। इससे 


3. लैंगिक अनुपात - भारत के अनेक हिस्सों में माँ-बाप को सिर्फ लड़के की चाह होती देश का लिंग अनुपात (प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या) गिरकर 919 रह गया है।


4. घरेलू हिंसा - महिलाओं को रोज उत्पीड़न, शोषण और हिंसा का सामना करना पड़त है। शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्र महिलाओं के लिए असुरक्षित हो गए हैं। वे अपने घरों में 19 सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि वहाँ भी उन्हें मारपीट तथा अनेक तरह की घरेलू हिंसा झेलनी पड़ती है। 


प्रश्न - साम्प्रदायिक राजनीति पर लेख लिखिए। साम्प्रदायिकता की समस्या विकराल कब बन जाती है?


उत्तर - सांप्रदायिक राजनीति इस सोच पर आधारित होती है कि धर्म ही सामाजिक समुदाय का निर्माण करता है। एक खास धर्म में आस्था रखने वाले लोग एक ही समुदाय के होते हैं, उनके मौलिक हित एक जैसे होते हैं तथा समुदाय के लोगों के आपसी मतभेद सामुदायिक जीवन में कोई अहमियत नहीं रखते। किसी अलग धर्म को मानने वाले लोग दूसरे सामाजिक समुदाय का हिस्सा नहीं हो सकते, अगर विभिन्न धर्मों के लोगों की सोच में कोई समानता दिखती है तो यह ऊपरी दिखावा और बेमानी होती है।


सांप्रदायिकता की समस्या विकराल तब हो जाती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है, और जब राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय की विशिष्टता के दावे और पक्षपोषण का रूप लेने लगती है तथा इसके अनुयायी दूसरे धर्मावलंबियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं। ऐसा तब होता है जब एक धर्म के विचारों को दूसरे से श्रेष्ठ माना जाने लगता है और कोई एक धार्मिक समूह अपनी माँगों को दूसरे समूह के विरोध में खड़ा करने लगता है। कई बार सांप्रदायिकता संप्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार कराती है।


प्रश्न- साम्प्रदायिकता को समाप्त करने अथवा कम करने के लिए आप कौन-कौन से उपाए करेंगे?


उत्तर- निम्नलिखित उपायों के द्वारा साम्प्रदायिकता को समाप्त किया जा सकता है 1. धर्म को राजनीति से अलग रखा जाए और धर्म पर आधारित राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। धार्मिक स्थलों पर राजनीतिक गतिविधियाँ चलाने की मनाही की जानी चाहिए।


2. पाठ्य पुस्तकों द्वारा बच्चों को इसके दुष्परिणामों से परिचित कराया जाना चाहिए तथा गैर सरकारी व अनौपचारिक सामाजिक संगठनों को इसके विरुद्ध प्रचार करने के लिए प्रेरित करके साम्प्रदायिकता के विरुद्ध जनमत तैयार किया जाए तो यह इसकी समाप्ति का सबसे प्रभावकारी हथियार होगा।


3. धर्म निरपेक्षता को मजबूती से लागू किया जाए। इसके साथ ही विवादास्पद धार्मिक स्थलों को राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाए। 


4. धार्मिक स्थलों को साम्प्रदायिक स्वार्थी की पूर्ति के अड्डे नहीं बनने दिया जाए।.

5. उन कर्मचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए जो साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने के कार्य करते हैं। 


6. टी. वी., रेडियो और समाचार-पत्रों पर ऐसे समाचार प्रसारित करने और छापने पर पाबंदी लगाई जाए जो सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं।


प्रश्न भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका या रूप का उल्लेख कीजिए तथा बताइए कि सार्वभौम वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति एक वोट की व्यवस्था के सिद्धांत ने जातिवाद से निबटने में किस प्रकार मदद की ? जातिवाद को इससे किस प्रकार कम कर सकते हैं?


उत्तर भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका या रूप निम्न हैं 


1. उम्मीदवारों का चयन करते समय जब पार्टियाँ चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करती हैं तो चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखती हैं ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट मिल जाएँ।


2. सरकार का गठन करते समय जब सरकार का गठन किया जाता है तो राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसमें विभिन्न जातियों और कबीलों के लोगों को उचित जगह दी जाए।


3. प्रचार करते समय राजनीतिक पार्टियाँ और उम्मीदवार समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाते हैं। कुछ दलों को कुछ जातियों के मददगार तथा प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।


4. मतदाताओं द्वारा जाति के आधार पर समर्थन अनेकों बार यह देखा गया है कि मतदाता भी अपने जाति का उम्मीदवार देखकर मत देते हैं जबकि भले ही अन्य जाति का उम्मीदवार अच्छा ही क्यों न हो। इसलिए राजनीतिक दल भी मतदाताओं की जाति को आधार बनाकर उम्मीदवारों का चयन करते हैं। यह एक गलत बात है जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक होती है।


सार्वभौम वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति एक वोट की व्यवस्था ने जातिवाद को कम करने में मदद की है क्योंकि इन व्यवस्थाओं ने राजनीतिक दलों को विवश किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने और लोगों को गोलबंद करने के लिए सक्रिय हों। इससे उन जातियों के लोगों में नई चेतना पैदा हुई, जिन्हें अभी तक छोटा और नीच माना जाता था। इससे सभी व्यक्तियों का मत समान हो गया। इससे राजनीति में किसी विशेष धर्म, लिंग या जाति का महत्व भी समाप्त हो गया क्योंकि अब सभी का मत एकसमान ही होता है।




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