भूमंडलीकृत विश्व का बनना प्रश्न उत्तर PDF, भूमंडलीकृत विश्व का बनना पार्ट 3, the making of a global world class 10 ncert full solution
खंड 2 जीविका अर्थव्यवस्था एवं समाज
अध्याय 3
भूमंडलीकृत विश्व का बनना
● भूमंडलीकृत विश्व के बनने की प्रक्रिया में व्यापार का, काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते लोगों का, पूँजी व बहुत सारी चीजों की वैश्विक आवाजाही का एक लम्बा इतिहास रहा है।
● आधुनिक काल से पहले के युग में दुनिया के दूर-दूर स्थित भागों के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संपर्कों का सबसे जीवंत उदाहरण सिल्क मार्गों के रूप में दिखाई देता है।
● सिल्क मार्ग से भारत व दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले दुनिया के दूसरे भागों मैं पहुँचते थे। वापसी में सोने-चाँदी जैसी कीमती धातुएँ यूरोप से एशिया पहुंचती थीं।
● आलू, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकंद और ऐसे ही बहुत सारे दूसरे खाद्य पदार्थ यूरोप और एशिया में तब पहुंचे जब क्रिस्टोफर कोलंबस गलती से उन अज्ञात महाद्वीपों में पहुँच गया था जिन्हें बाद में अमेरिका के नाम से जाना जाने लगा।
● सोलहवीं सदी से पहले की कई सदियों से हिंद महासागर के पानी में फलता-फूलता व्यापार, तरह-तरह के सामान, लोग, ज्ञान और परम्पराएं एक जगह से दूसरी जगह आ-जा रही थीं। भारतीय उपमहाद्वीप इन प्रवाहों के रास्ते में एक अहम बिन्दु था। पूर नेटवर्क में इस इलाके का भारी महत्व था।
● अपनी 'खोज' से पहले लाखों साल से अमेरिका का दुनिया से कोई संपर्क नहीं था। लेकिन सोलहवीं सदी से उसकी विशाल भूमि और बेहिसाब फसलें व खनिज पदार्थ हर दिशा में जीवन का रूप-रंग बदलने लगे।
● आज के पेरू और मैक्सिको में मौजूद खानों से निकलने वाली कोमती धातुओं, खासतौर से चाँदी ने भी यूरोप की संपदा को बढ़ाया और पश्चिम एशिया के साथ होने वाले उसके व्यापार को गति प्रदान की।
● यूरोपीय सेनाएँ केवल अपनी सैनिक ताकत के दम पर नहीं जीतती थीं। इन सेनाओं के साथ चेचक जैसी बीमारियों के कीटाणु अमेरिका सहित अन्य महाद्वीपों पर पहुँचे जिसके कारण वहाँ की जनसंख्या का विनाश हो गया।
● उन्नीसवीं सदी तक यूरोप में गरीबी और भूख का ही साम्राज्य था। शहरों में बेहिसाब भीड़ थी और बीमारियों का बोलबाला था।
● अठारहवीं शताब्दी का काफी समय बीत जाने के बाद भी चीन और भारत को दुनिया के सबसे धनी देशों में गिना जाता था। एशियाई व्यापार में भी उन्हीं का दबदबा था।
● उन्नीसवीं सदी में अर्थशास्त्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की गतियों या 'प्रवाहों' का उल्लेख किया है। इनमें पहला प्रवाह वस्तुओं के व्यापार का दूसरा श्रम का एवं तीसरा पूँजी का प्रवाह होता है।
● उन्नीसवीं सदी में यूरोप के लगभग पाँच करोड़ लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जाकर बस गए। माना जाता है कि इसी समय परी दुनिया में लगभग पन्द्रह करोड़ लोग बेहतर भविष्य की चाह में अपने घर बार छोड़कर दूर-दूर के देशों में जाकर काम करने लगे थे।
● 1890 तक एक वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था सामने आ चुकी थी। 1890 के दशक के आखिरी वर्षो में संयुक्त राज्य अमेरिका भी औपनिवेशिक ताकत बन गया।
● खाद्य पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए रेलवे का इस्तेमाल किया जाता था। पानी के जहाजों में इन्हें दूसरे देशों में पहुंचाया जाता था।
● रेलवे, भाप के जहान, टेलिग्राफ, ये सब तकनीकी बदलाव बहुत महत्वपूर्ण रहे। उनके बिना उन्नीसवीं सदी में आए परिवर्तनों को कल्पना नहीं की जा सकती थी।
● उन्नीसवीं सदी के आखिर में यूरोपीय ताकतें अफ्रीका के विशाल भूक्षेत्र और खनिज भंडारों को देखकर इस महाद्वीप की ओर आकर्षित हुई थीं।
● उन्नीसवीं सदी में भारत और चीन के लाखों मजदूरों को बागानों खदानों और सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में काम करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था।
● ब्रिटेन की सरकार भारत में अफीम को खेती करवाती थी और उसे चीन को नियत कर देती थी। अफीम के निर्यात में जो पैसा मिलता था उसके बदले चीन से ही चाय और दूसरे पदार्थों का आयात किया जाता था।
● पहला महायुद्ध मुख्य रूप से यूरोप में ही लड़ा गया लेकिन उसके प्रभाव सारी दुनिया में महसूस किए गए।
● पहला विश्वयुद्ध दो खेमों के बीच लड़ा गया था एक पाले में मित्र राष्ट्र यानी ब्रिटेन, फ्रांस और रूस थे तो दूसरे पाले में केन्द्रीय शक्तियाँ यानी जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी और ऑटोमन तुर्की थे।
● इस युद्ध में 90 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 2 करोड़ घायल हुए।
● इस युद्ध से पहले ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। युद्ध के बाद सबसे लंबा संकट उसे ही झेलना पड़ा।
● 1920 के दशक की अमेरिकी अर्थव्यवस्था की एक बड़ी खासियत थी बृहत उत्पादन (Mass Production) का चलन
● आर्थिक महामंदी की शुरूआत 1929 से हुई और यह संकट तीस के दशक के मध्य तक बना रहा। इस दौरान दुनिया के ज्यादातर हिस्सों के उत्पादन, रोजगार, आय और व्यापार में भयानक गिरावट दर्ज की गई।
● आर्थिक मंदी की सबसे बुरी मार उन काश्तकारों पर पड़ी जो विश्व बाजार के लिए उपज पैदा करते थे।
● आर्थिक मंदी के इन्हीं सालों में भारत कीमती धातुओं, खासतौर से सोने का निर्यात करने लगा प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कोन्स का मानना था कि भारतीय सोने के निर्यात से भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में काफी मदद मिली।
● 1931 में मंदी अपने चरम पर थी और ग्रामीण भारत असंतोष व उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। उसी समय महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा (सिविल नाफरमानी) आंदोलन शुरू किया।
● पहला विश्व युद्ध खत्म होने के केवल दो दशक बाद दूसरा विश्व युद्ध भी दो बड़े खेमों के बीच था। एक गुट में धुरी शक्तियाँ (मुख्य रूप से नात्सी जर्मनी, जापान और इटली) थीं तो दूसरा खेमा मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, सोवियत संघ, फ्रांस और अमेरिका) के नाम से जाना जाता था।
● जिस समय पूँजीवादी दुनिया महामंदी से जुझ रही थी उसी दौरान सोवियत संघ के लोगों ने अपने देश को एक पिछड़े खेतिहर देश की जगह एक विश्व शक्ति की हैसियत में ला खड़ा किया।
● युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए पैसे का इंतजाम करने के वास्ते अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (जिसे आम बोलचाल में विश्व बैंक कहा जाता है) का गठन किया गया।
● सन् 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन हुआ।
● विश्व बैंक और आई. एम.एफ. ने 1947 में औपचारिक रूप से काम करना शुरू किया।
● अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था राष्ट्रीय मुद्राओं और मौद्रिक व्यवस्थाओं को एक-दूसरे से जोड़ने वाली व्यवस्था है।
●दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद भी दुनिया का एक बहुत बड़ा भाग यूरोपीय औपनिवेशिक शासन के अधीन था।
● आयात शुल्क किसी दूसरे देश से आने वाली चीजों पर वसूल किया जाने वाला शुल्क हैं, यह कर या शुल्क उस जगह जहाँ से वह चीज देश में आती है, जैसे सीमा, बंदरगाह, हवाई अड्डे पर वसूला जाता है।
● चीन जैसे देशों में वेतन तुलनात्मक रूप से कम थे। फलस्वरूप विश्व बाजारों पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिये प्रतिस्पर्धा कर रही विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने वहाँ जमकर निवेश करना शुरू कर दिया।
● अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक की स्थापना 1944 ई. में ब्रेटन वुड्स व्यवस्था के तहत की गई।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोतर
संक्षेप में लिखें
प्रश्न 1. सत्रहवीं सदी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिका महाद्वीपों के बारे में चुनें।
उत्तर- एशिया और अमेरिका में होने वाले आदान-प्रदान एशिया से उदाहरण चीन ने वस्त्र, अन्य वस्तुओं और मसालों के बदले में भारत और दक्षिणपूर्व एशिया में मिट्टी के बर्तन और रेशम का निर्यात किया। अमेरिका से उदाहरण अमेरिका से प्रचुर मात्रा में फसलें, खनिज और सोने-चाँदी जैसी कीमती धातुएँ यूरोप से एशिया पहुँचती थीं।
प्रश्न 2. बताएँ कि पूर्व आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी
भूभागों के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद दी।
उत्तर- यूरोप के कुछ उपनिवेशवादी देश अपने साथ संक्रामक बीमारियों के कीटाणु लेकर आए। अमेरिका लाखों वर्षों से दुनिया से अलग-थलग रहा था, इसी कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से आने वाली बीमारियों से बचने की रोग-प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी। सोलहवीं सदी। के मध्य में चेचक जैसे कीटाणु थे जो स्पेनिश सैनिकों तथा अधिकारीगणों के साथ वहाँ पहुँचे थे। अतः अमेरिका में उपनिवेश की स्थापना के समय स्पेन के सैनिकों का दमन चक्र चल रहा था। इसी समय महामारी की विनाश लीला ने नया मोर्चा खोल दिया। अमेरिका के स्थानीय लोग यह मानते थे कि चेचक स्पेनियों द्वारा चलाई गई अदृश्य गोलियाँ थीं। इसके बाद बिना किसी चुनौती के दो बड़े साम्राज्यों को जीतकर अमेरिका में उपनिवेशों की स्थापना हुई।
प्रश्न 3. निम्नलिखित के प्रभावों की व्याख्या करते हुए संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें:
(क) कॉर्न लॉ के समाप्त करने के बारे में ब्रिटिश सरकार का फ़ैसला ।
उत्तर कॉर्न लॉ के समाप्त होने के बाद बहुत कम कीमत पर खाद्य पदार्थों का आयात किया जाने लगा। आयातित खाद्य पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से भी कम थी। इसके फलस्वरूप ब्रिटिश किसानों की हालत बिगडने लगी क्योंकि वे आयातित मान की कीमत का मुकाबला नहीं कर सकते थे। विशाल भूभागों पर खेती बंद हो गई। हजारों लोग बेरोजगार हो गए। गाँवों को छोड़कर वे या तो शहरों में या दूसरे देशों में जाने लगे।
(ख) अफ्रीका में रिंडरपेस्ट का आना।
उत्तर- मवेशी प्लेग या रिंडरपेस्ट की बीमारी एशियाई मवेशियों से अफ्रीकी मवेशियों में फैली थी, जिन्हें ब्रिटिश आधिपत्य वाले एशियाई देशों से यूरोपीय उपनिवेशक यहाँ लाये थे। बीमारी बड़ी तेजी से अफ्रीकी मवेशियों में फैली और देखते ही देखते हजारों मवेशी खत्म हो गए। इसने अफ्रीकी आर्थिक व्यवस्था को बर्बाद कर दिया जो मवेशियों और जमीन पर आधारित थी। बेरोजगार अफ्रीकी लोगों को यूरोपीय बागानों और खानों में काम करने के लिए बाध्य किया गया। इस प्रकार अफ्रीका को उपनिवेश बना लिया गया।
(ग) विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में कामकाजी उम्र के पुरुषों की मौत।
उत्तर- पहला विश्वयुद्ध अत्यन्त भीषण युद्ध था। यह पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था। इस युद्ध के लिए पूरी दुनिया से असंख्य सैनिकों को भर्ती किया गया था। उन सैनिकों को जलपोतों और रेलगाड़ियों में भरकर युद्ध के मोर्चे पर लाया गया था। युद्ध में 90 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 2 करोड़ घायल हुए। मृतकों और घायलों में से ज्यादातर कामकाजी उम्र के लोग थे। इस महाविनाश के कारण यूरोप में कामकाज के लायक लोगों की संख्या बहुत कम हो गई। परिवार के सदस्य घट जाने से युद्ध के बाद परिवारों की आय भी गिर गई। इस युद्ध ने पूरे समाज पर गहरा प्रभाव डाला। पुरुषों की मौत के कारण घर की औरतों को काम के लिए बाहर निकलना पड़ा एवं वे कार्य करने पड़े जिन्हें पहले केवल मर्दों का ही काम माना जाता था।
(घ) भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामंदी का प्रभाव
उत्तर- (i) व्यापार पर प्रभाव - इस समय तक भारत कृषि वस्तुओं का निर्यातक और तैयार माल का आयातक बन चुका था। महामंदी ने भारतीय व्यापार को प्रभावित किया। 1928 से 1934 के बीच भारत में गेहूं की कीमत 50 प्रतिशत गिर गई।
(ii) काश्तकारों की स्थिति पर प्रभाव - आर्थिक मंदी से काश्तकारों को भारी नुकसान हुआ सबसे अधिक बुरा प्रभाव उन काश्तकारों पर पड़ा जो विश्व बाजार के लिए उपज पैदा करते थे। जिन काश्तकारों ने उपज को बढ़ाने के लिए कर्ज लिया था उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई क्योंकि उन्हें उपज का उचित मोल नहीं मिला। पूरे देश में काश्तकार पहले से ज्यादा कर्ज में डूब गए।
(iii) शहरों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव - आर्थिक महामंदी का काल शहरी भारत के लिए बहुत दुखदायी नहीं था। कीमतों में गिरावट के बावजूद शहरों में रहने वाले लोगों की स्थिति सामान्य रही क्योंकि बहुत से लोगों की आय निश्चित थी।
(iv) ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव - आर्थिक मंदी का किसानों पर बुरा प्रभाव पड़ा। कृषि उत्पादों की कीमतों में तेजी से गिरावट आई। सरकार ने लगान वसूली में छूट देने से साफ इन्कार कर दिया।
(v) वैश्विक अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित - आर्थिक मंदी के समय भारत कीमती धातुओं, विशेष रूप से सोने का निर्यात करने लगा। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कीन्स का मानना था कि भारतीय सोने के निर्यात से भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में सहायता मिली।
(ङ) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपने उत्पादन को एशियाई देशों में स्थानान्तरित करने का फ़ैसला।
उत्तर- सत्तर के दशक के बीच में बेरोजगारी बढ़ने लगी। इस समय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने एशियाई देशों में उत्पादन केन्द्रित किया क्योंकि यहाँ वेतन अपेक्षाकृत कम दिया जाता था। चीन में वेतन अन्य देशों की तुलना में कम था। विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने यहाँ खूब निवेश किया। इनमें से अधिकांश एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में कम लागत की व्यवस्था थी तथा अधिकांश देशों में विशाल बाजार भी थे।
प्रश्न 4. खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दें।
उत्तर-
(i) तेरा चलने वाली रेलगाड़ियाँ बन, बोगियों का भार कम किया गया एवं जलपोतों का आकार बढ़ाया गया जिससे किसी भी उत्पाद को खेतों से दूर-दूर के बाजारों में कम लागत पर ज्यादा आसानी से पहुँचाया जा सका।
(ii) पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित होने से खाने-पीने की चीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने में आसानी हो गई। जल्दी खराब होने वाली चीजों को भी रेफ्रिजेटर्स और कनटेनर आदि द्वारा लम्बी यात्राओं पर ले जाया जाने लगा, जैसे अंडा, मक्खन, मौस आदि। आलू, ब्रेड,
प्रश्न 5. ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है? •
"उत्तर ब्रेटन वुड्स समझौता एक फ्रेम वर्क है जिसे औद्योगिक देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय भागीदारी के तहत आम सहमति से तैयार किया। इसमें युद्धोत्तर आर्थिक भरपाई और रकम का संचय कैसे स्थिर रहे इस विषय पर रणनीति बनाई गई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में आर्थिक स्थिरता को बनाए रखना था। ब्रेटन वुड्स समझौता इस सीख के बाद सामने आया कि किसी देश की आर्थिक स्थिरता अन्य देशों को भी प्रभावित करती है क्योंकि आज देश परस्पर निर्भर है।
चर्चा करें
प्रश्न 6. कल्पना कीजिए कि आप कैरीबियाई क्षेत्र में काम करने वाले गिरमिटिया मजदूर हैं। इस अध्याय में दिए गए विवरणों के आधार पर अपने हालात और अपनी भावनाओं का वर्णन करते हुए अपने परिवार के नाम एक पत्र लिखें।
उत्तर- मैं, रामचरण भारत से जाने वाला गिरमिटिया मजदूर था। मुझे बीसवीं सदी की शुरुआत में त्रिनिदाद में दस सालों तक काम करना पड़ा था। मैंने अपने माता-पिता को वहाँ से पत्र लिखा था
आदरणीय माताजी एवं पिताजी,
चरण स्पर्श,
मैं यहाँ राजी-खुशी हूँ और आपसे भी ऐसी आशा रखता हूँ। जैसा कि मुझे एजेंट ने भारत में कहा था उससे यहाँ स्थिति बिलकुल विपरीत है वहाँ जो वादे किए गए थे, यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है। आने-जाने का खाने का सोने का या दवाओं का यहाँ कोई इंतजाम नहीं है। मुझे खेत में ही रहना पड़ता है। यहाँ मुझसे मेरी क्षमता से अधिक काम करवाया जाता है। जिस दिन तय कामपूरा न हो, कोई गलती हो जाए या समय पर न हो, उस दिन जुर्माना वसूला जाता है और कभी-कभी कड़ी सजा दी जाती है। यहाँ मेरा जोवन बड़ा दयनीय हो गया है। मैं अपने घर पर ही ठीक था। अनुबंध समाप्त होते ही मैं घर लौटने को उत्सुक हूँ।
शेष मिलने पर
आपका पुत्र
रामचरण
प्रश्न 7. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर - अर्थशास्त्रियों ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या की है- (i) पहला प्रवाह व्यापार का होता है जो 19वीं सदी में मुख्य रूप से कपड़ा, गेहूँ आदि के व्यापार तक ही सीमित था। (ii) दूसरा, श्रम का प्रवाह होता है। इसमें लोग काम या रोजगार की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। (iii) तीसरा प्रवाह पूँजी का होता है जिसे अल्प या दीर्घ अवधि के लिए दूर-दराज के इलाकों में निवेश कर दिया जाता है।
तीनों प्रकार की गतियों के भारत तथा भारतीयों से सम्बन्धित उदाहरण निम्नलिखित हैं
(i) वस्तुओं के व्यापार का प्रवाह- भारत से गेहूँ, कपड़े (सूती, ऊनी, रेशमी) इंग्लैंड भेजे जाते थे। प्रारम्भ में भारतीय कपड़ों की माँग यूरोप के अन्य देशों में भी थी। 1812 से 1871 के बीच कच्चे कपास का निर्यात 5 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत हो गया था कपड़ों की रँगाई के लिए नील का भी बड़े पैमाने पर निर्यात होता था। भारतीय निर्यात में कुछ समय तक अफ़ीम ही सबसे ज्यादा रहा था। ब्रिटेन की सरकार भारत में अफीम की खेती करवाती थी और उसे चीन को निर्यात किया जाता था। इस प्रकार भारतीय लोगों ने गेहूँ, कपास, ऊन, पटसन, रेशम, चाय, कॉफी आदि का उत्पादन बढ़ाने के लिए देशी और विदेशी व्यापार पर जोर दिया।
(ii) श्रम का प्रवाह - 19वीं सदी में भारत के मजदूरों को बागानों, खदानों, सड़कों तथा रेलवे परियोजनाओं में काम करने के लिए दूर-दूर ले जाया गया। भारतीय अनुबंधित श्रमिकों (गिरमिटिया) को अनुबंध के आधार पर बाहर ले जाया जाता था। इन अनुबंधों में यह शर्त रखी जाती थी कि पाँच साल तक बागानों में काम कर लेने के बाद वे स्वदेश लौट सकते थे। भारत के अनुबंधित श्रमिक मुख्यतः कैरीबियाई द्वीप के गुयाना, त्रिनिदाद, सुरीनाम, मॉरिशस, फिजी, सीलोन, मलाया आदि जगह पर काम करने जाते थे।
(iii) पूँजी का प्रवाह भारतीय साहूकार और महाजन लोगों में शिकारी पूरी श्रॉफ और नट्ट कोट्टई चेट्टियारों का नाम उल्लेखनीय है। ये उन बँकरों और व्यापारियों में से थे जो मध्य और दक्षिण पूर्व एशिया में निर्यातोन्मुखी खेती के लिए कर्ज देते थे। इसके लिए या तो वे अपने पास से पैसा लगाते थे या यूरोपीय बैंकों से कर्ज लेते थे ।
अफ्रीका में यूरोपीय उपनिवेशकारों के पीछे-पीछे भारतीय व्यापारी और महाजन भी जा पहुँचे। हैदराबादी सिंधी व्यापारी काफी आगे निकल गए थे। 1860 के दशक से उन्होंने दुनिया के सभी बंदरगाहों पर बड़े-बड़े एंपोरियम खोल दिए। इस प्रकार विश्व में पूँजी का प्रवाह बढ़ गया। भारत में दूसरे देशों को भी पूँजी निवेश करने के लिए आमंत्रित किया गया था।
इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाह की प्रक्रिया चलती रही।
प्रश्न 8. महामंदी के कारणों की व्याख्या करें।
उत्तर- महामंदी 1929 से शुरू होकर तीस के दशक के मध्य तक रही। महामंदी के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित थे।
1. कृषि उत्पादों की गिरती कीमतें - महामंदी का प्रमुख कारण कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन की समस्या थी। कृषि उत्पादों की कीमतें गिर रही थीं जिसके कारण किसान उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करने लगे जिससे कि किसानों की आय स्तर वही बना रहे जो पहले था। इसके कारण बाजार में कृषि उत्पादों की आमद (आवक) और बढ़ गयी एवं कीमतें और कम हो गयीं तथा खरीदारों के अभाव में कृषि उपज पड़ी पड़ी सड़ने लगी।
2. आर्थिक संकट 1920 के दशक के मध्य में बहुत सारे देशों ने अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी निवेश संबंधी जरूरतों को पूरा किया था जब परिस्थितियाँ अनुकूल थीं तब तो अमेरिका आसानी से ऋण दे रहा था परन्तु आर्थिक संकट का संकेत मिलते ही अमेरिका ने ऋण देना रोक दिया। इस कारण जो देश अमेरिको ऋण पर सबसे ज्यादा निर्भर थे उनके सामने गहरा संकट खड़ा हो गया था।
3. पूँजी प्रवाह का लौटना अमेरिकी पूँजी के लौट जाने से पूरी दुनिया प्रभावित हुई। यूरोप के कई बड़े बैंक धराशायी हो गए। कई देशों की मुद्रा की कीमत बुरी तरह से गिर गई। इस झटके से ब्रिटिश पाउंड जैसी दमदार मुद्रा भी नहीं बची लैटिन अमेरिका और अन्य स्थानों पर कृषि एवं कच्चे माल की कीमतें तेजी से गिरने लगीं। अमेरिकी सरकार ने इस महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए आयातित पदार्थों पर दो गुना सीमा शुल्क वसूला परन्तु इससे मंदी और बढ़ गयी।
4. प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव युद्ध के दौरान महँगाई अपने चरम पर थी, युद्ध के बाद कुछ दिन तेजी बनी रही जिससे आर्थिक मंदी बड़ी प्रथम विश्व युद्ध आर्थिक दृष्टि से अत्यंत विनाशकारी था, अतः इसके बाद प्रबल आर्थिक संकट आना स्वाभाविक था।
5. स्वचालित मशीनों का प्रयोग मशीनीकरण बढ़ जाने से बेरोजगारी बढ़ना स्वाभाविक थी। उत्पादन और कृषि में जहाँ लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही थी वहीं बेरोजगार व्यक्ति की क्रय-शक्ति में ह्रास आने लगा था। अतः खरीददारों का अभाव बढ़ता गया। इससे भी आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ। पर ब्रेटन
प्रश्न 9. जी-77 देशों से आप क्या समझते हैं। जी-77 को किस आधार वुड्स की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है। व्याख्या करें।
उत्तर- जी- 77 विकासशील देशों का एक समूह है जो एक नयी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली (New International Economic Order-NIEO) को प्राप्त करने के लिए सामूहिक रूप से काम करता है। आई.एम.एफ. और विश्व बैंक (ब्रेटन वुड्स के दोहरे समझौते को असंतोषजनक सेवाओं के कारण नए आजाद हुए मुल्कों ने जी-77 का गठन किया।
जी-77 का गठन ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया थी। इससे विकासशील देश विकसित औद्योगिक देशों के बराबर पहुँचने की जी तोड़ कोशिश करने लगे थे। अतः एन.आई.ई.ओ. एक ऐसी व्यवस्था थी जिसमें विकासशील देश अपने संसाधनों पर सही नियंत्रण रख सकें। जिसके अनुसार उन्हें विकास के लिए अधिक सहायता मिले, कच्चे माल का उचित दाम मिले और अपने तैयार माल को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए बेहतर स्थान मिले।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न भूमंडलीकरण क्या है?
उत्तर- व्यापार या काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते लोगों का या पूंजी का या बहुत सारी चीजों की वैश्विक आवाजाही को भूमंडलीकरण कहते हैं।
प्रश्न- रेशम मार्ग क्या थे?
उत्तर- ये ऐसे मार्ग थे जो एशिया के विशाल भागों को परस्पर जोड़ने के साथ ही यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका से जा मिले थे। ऐसे मार्ग से ईसा पूर्व के समय से लोग आ रहे थे और लगभग पंद्रहवीं सदी तक आवागमन होता था। इस मार्ग से अधिकतर रेशम का व्यापार होता था, इसलिए
इन्हें रेशम मार्ग कहा जाता था।
प्रश्न- गिरमिटिया मजदूर कौन थे?
उत्तर- वे अनुबंधित बंधुआ मजदूर, जिन्हें मालिक एक खास अवधि के लिए काम करने की शर्त पर किसी भी नए देश या घर पर नियुक्त करता था, गिरमिटिया मजदूर कहलाते थे।
प्रश्न-'कॉर्न लॉ' का क्या अर्थ है ?
उत्तर 18वीं शताब्दी के आखिरी दशक में ब्रिटेन की आबादी तेजी से बढ़ने लगी। देश में भोजन की माँग बढ़ने लगी और कृषि उत्पाद महँगे होने लगे। सरकार ने बड़े भूस्वामियों के दबाव में मक्के के आयात पर पाबंदी लगा दी थी। जिन कानूनों के द्वारा सरकार ने पाबंदी लगाई थी उसे ही 'कॉर्न लॉ' कहा जाता था।
प्रश्न- आलू का अकाल कब पड़ा था? इसका क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर- 1845 से 1849 के बीच भयानक आयरिश आलू अकाल के दौरान आयरलैंड के लगभग 10,00,000 लोग भुखमरी के कारण मारे गए थे। इससे दुगने लोग काम की तलाश में घर बार छोड़कर दूसरे इलाकों में चल गए थे।
प्रश्न- वैश्वीकरण के लिए उत्तरदायी तीन मुख्य कारक कौन-कौन से थे?
उत्तर वैश्वीकरण के लिए उत्तरदायी तीन मुख्य कारक निम्नलिखित थे (i) व्यापार का प्रवाह, (ii) श्रम का प्रवाह, (iii) पूँजी का प्रवाह
प्रश्न- भर्ती करने वाले एजेंटों द्वारा अनुबंधित मजदूरों का शोषण किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर - भर्ती करने वाले एजेंटों द्वारा अनुबंधित मजदूरों के शोषण के अन्तर्गत उन्हें कहाँ जाना है, यात्रा के साधन क्या होंगे, क्या काम करना है और नयी जगह पर काम व जीवन के हालात कैसे होंगे, इस बारे में उन्हें सही जानकारी नहीं दी जाती थी। कभी-कभी तो एजेंट जाने के लिए राजी न होने वाले श्रमिकों का अपहरण तक कर लेते थे।
प्रश्न- 'विदेशियों के आने से पहले अधिकतर अफ्रीका के निवासियों को वेतन के लिए काम करने की जरूरत नहीं थी।' कारण दीजिए।
उत्तर- (i) विदेशियों के आने से पहले, अफ्रीका में समीन की कोई कमी नहीं थी और आबादी बहुत कम थी। लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशु पालन था। अधिकतर गाँव और परिवार आत्मनिर्भर थे।
(ii) अफ्रीका में, ऐसे उपभोक्ता सामान बहुत कम थे, जिन्हें वेतन के पैसे से खरीदा जा सकता था।
प्रश्न 'प्रथम विश्वयुद्ध जैसा युद्ध पहले नहीं हुआ था।' पुष्टि कीजिए।
उत्तर- इस युद्ध में विश्व के प्रमुख औद्योगिक राष्ट्र शामिल थे, जिनके पास बेहिसाब आधुनिक औद्योगिक शक्ति इकट्ठी हो चुकी थी।
प्रश्न आयात शुल्क को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- अपने देश में किसी दूसरे देश से आने वाली चीजों पर वसूल किया जाने वाला शुल्क आयात शुल्क या आयात कर कहलाता है। यह शुल्क या कर उस जगह लिया जाता है। जहाँ से वह चीज देश में आती है जैसे- सीमा पर, बंदरगाह पर या हवाई अड्डे पर।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न ब्रिटेन में औद्योगीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव का विश्लेषण
कीजिए ।
उत्तर- (i) औद्योगीकरण के कारण ब्रिटेन में कपास का अत्यधिक उत्पादन होने लगा और उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह कपास के आयात पर रोक लगाए और स्थानीय उद्योगों की रक्षा करें। ब्रिटेन में आयातित कपड़ों पर सीमा शुल्क थोप दिए गए। फलतः वहाँ महीन भारतीय कपास का आयात कम होने लगा।
(ii) 19वीं सदी के प्रारंभ से ही ब्रिटिश कपड़ा उत्पादक अन्य देशों में भी अपने कपड़े के लिए नए-नए बाज़ार ढूँढने लगे थे।
(iii) ब्रिटिश मशीनों द्वारा बने कपड़े ने भारतीय कपड़ा उद्योगों को अपने ही घर में भारी प्रतिस्पर्धा में डाल दिया।
अतः सूती कपड़े के निर्यात में लगातार गिरावट आने लगी। सन् 1800 के आसपास निर्यात में सूती कपड़े का प्रतिशत 30 था, जो 1815 में घटकर 15% और 1870 तकं केवल 3% रह गया था।
प्रश्न भारत ने 19वीं सदी की विश्व अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका किस प्रकार निभाई थी?
उत्तर- (i) व्यापार अधिशेष ब्रिटेन का भारत के साथ व्यापार अधिशेष रहता था अर्थात् एक ऐसी स्थिति जिसके अंतर्गत निर्यात की बाजार कीमत आयात से अधिक होती थी। ब्रिटेन इस लाभ के सहारे दूसरे देशों के साथ होने वाले व्यापारिक घाटे की भरपाई करता था।
(ii) देशी खर्चे ब्रिटेन के व्यापार से जो अधिशेष प्राप्त होता था, उससे तथाकथित 'देशी खर्चे' (home charges) का निपटारा होता था, जिसके तहत ब्रिटिश अफसरों और व्यापारियों द्वारा अपने घर भेजी गई निजी रकम, भारतीय बाहरी ऋण पर ब्याज और भारत में काम कर चुके ब्रिटिश अफसरों की पेंशन शामिल थी।
(iii) कपास का प्रमुख आपूर्ति करने वाला भारतीय ब्रिटेन को कच्चे कपास की आपूर्ति करने वाले प्रमुख लोग थे ताकि ब्रिटिश कपड़ा मिलों की माँग को पूरा किया
प्रश्न कृषि अर्थव्यवस्था पर प्रथम विश्वयुद्ध का क्या प्रभाव पड़ा? जा सके।
उत्तर प्रथम विश्वयुद्ध का कृषि अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। युद्ध से पूर्व पूर्वी यूरोप, विश्व बाजार में गेहूँ की आपूर्ति करने वाला एक बड़ा केन्द्र था। युद्ध काल में आपूर्ति अस्त-व्यस्त हुई तो कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से गेहूँ की आवक बढ़ने लगी। जैसे ही युद्ध खत्म हुआ, पूर्वी यूरोप में गेहूँ की उपज सुधरने लगी और विश्व बाजार में गेहूँ की अति की स्थिति पैदा हो गई। अनाज के दाम गिर गए, ग्रामीणों की आय कम हो गई और किसान गहरे कर्ज में डूब गए।
प्रश्न- पहला विश्वयुद्ध आधुनिक औद्योगिक युद्ध था।' व्याख्या कीजिए।
अथवा
प्रथम विश्वयुद्ध एक भयानक युद्ध क्यों था, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था? व्याख्या
कीजिए
उत्तर- (i) इस युद्ध में मशीनगनों, टैंकों, और रासायनिक हथियारों का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।
(ii) ये सभी चीजें आधुनिक विशाल उद्योगों की देन थीं। युद्ध के लिए दुनिया भर से असंख्य सिपाहियों की भर्ती की जानी थी और उन्हें विशाल जलपोतों व रेलगाड़ियों में भर कर युद्ध के मोचों पर ले जाया जाना था।
(iii) इस युद्ध ने मौत और विनाश जैसी विभीषिका रची। उसकी औद्योगिक युग से पहले और औद्योगिक शक्ति के बिना कल्पना नहीं की जा सकती थी। युद्ध में 90 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 2 करोड़ घायल हुए।
प्रश्न 19वीं सदी में विश्व अर्थव्यवस्था के उदय से भारत में क्या परिवर्तन आया? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर- 19वीं सदी में विश्व अर्थव्यवस्था के उदय से भारत में छोटे पैमाने पर ही सही परन्तु परिवर्तन आया। पंजाब में ब्रिटिश भारतीय सरकार ने अर्द्ध-रेगिस्तानी परती जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया जिससे निर्यात के लिए गेहूं और कपास की खेती को जा सके। नई नहरों की सिंचाई वाले इलाकों में पंजाब के अन्य स्थानों के लोगों को बसाया गया।
प्रश्न युद्धोत्तर (प्रथम विश्वयुद्ध) सुधारों के लिए अमेरिका द्वारा अपनाए गए - उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- (i) अमेरिका ने बृहत् उत्पादन पद्धति अपनाई जिससे उत्पादन की लागत में कमी आई।
(ii) उत्पादन की लागत में कमी के कारण उत्पादकों ने मजदूरों को अधिक वेतन देने आरंभ किए।
(iii) प्रथम विश्वयुद्ध में अमेरिका ने अपने आप को युद्ध से दूर रखा जिसके कारण अमेरिका में तेजी से पूँजी निर्माण होने लगा और 1923 में, अमेरिका शेष विश्व को पूँजी का निर्यात दोबारा करने लगा और वह दुनिया में सबसे बड़ा कर्जदाता देश बन गया।
प्रश्न- अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था क्या है?
उत्तर- अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था राष्ट्रीय मुद्राओं और मौद्रिक व्यवस्थाओं को एक-दूसरे से जोड़ने वाली व्यवस्था है। ब्रेटन वुड्स व्यवस्था निश्चित विनिमय दरों पर आधारित होती थी। इसमें राष्ट्रीय मुद्राएँ जैसे रुपया, डॉलर आदि के साथ एक निश्चित विनिमय दर से बँधा हुआ था। एक डॉलर के बदले में कितने रुपये देने होंगे ये स्थिर रहता था। उस समय डॉलर का मूल्य भी सोने से बँधा था और एक डॉलर की कीमत 35 औंस सोने के बराबर थी।
प्रश्न- वैश्वीकरण के लाभ का वर्णन कीजिए।
उत्तर- वैश्वीकरण के कई लाभ हैं
(i) पूरे विश्व के लोगों को उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुएँ कम कीमतों पर मिल जाती हैं।
(ii) पूरे विश्व में कोई भी उत्पादक अपने उत्पाद को बेच सकते हैं। इससे उत्पादक को विस्तृत बाजार से लाभ मिलता है।
(iii) विश्व का कोई भी देश अपने उत्पादन में विशेषता को प्राप्त कर लेता है जिसे कम लागत पर निर्माण कर सकता है।
(iv) कम लागत पर बनी वस्तुएँ पूरे विश्व में कम कीमतों पर उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवायी जाती हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न- यूरोपीय मालिकों को अफ्रीकी मजदूरों को तैयार करना कठिन क्यों हो रहा था? उन तीन तरीकों का वर्णन कीजिए जिनके द्वारा वे मज़दूरों को प्रशिक्षित करते और रोकते थे।
अथवा
अफ्रीकी मजदूरों को प्रशिक्षित करने तथा कब्जे में रखने के लिए यूरोपीय मालिक क्या ढंग अपनाते थे?
उत्तर- यूरोपीय मालिकों को अफ्रीका में लोगों को मजदूरी के लिए प्रशिक्षित करना कठिन हो रहा था क्योंकि अधिकतर अफ्रीकी लोगों के पास भरपूर भूमि और उसकी तुलना में जनसंख्या बहुत कम थी। सदियों से उनका जीवन भूमि और पशुधन से चलता आ रहा था और उन्हें मजदूरी करने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ी थी।
मजदूरों को कब्जे में रखने और प्रशिक्षित करने के उपाय
(i) भारी टैक्स उपनिवेशी सरकार द्वारा भारी कर लगाए जाते जिन्हें चुकाने के लिए बागानों तथा खानों में वेतन के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी।
(ii) नवीन उत्तराधिकार कानून किसानों को उनकी समीन से हटाने के लिए उत्तराधिक कानून भी बदल दिए गए। अब परिवार के केवल एक सदस्य को पैतृक संपत्ति मिलेगी और अन्य लोगों को श्रम बाज़ार में धकेला जाता था।
(iii) गतिविधियों पर प्रतिबंध खानकर्मियों को बाड़ों में बंद कर दिया जाता और उनके स्वतंत्र घूमने-फिरने पर पाबंदी लगा दी गई।
प्रश्न- उन्नीसवीं शताब्दी में विश्व में परिवर्तन लाने में प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका थी? उदाहरण देकर समझाएँ।
उत्तर- (i) विश्व अर्थव्यवस्था का रूपांतरण - रेलवे, भाप के जहाज, टेलीग्राफ़ आदि महत्वपूर्ण आविष्कार थे जिनके कारण उन्नीसवीं शताब्दी में विश्व अर्थव्यवस्था का तेजी से प्रसार हुआ।
(ii) बाज़ारों का परस्पर जुड़ाव परिवहन में नए निवेश व सुधारों से तीव्रगामी रेलगाड़ियाँ, हल्की बोगियाँ और विशालकाय जलपोतों को कम खर्च पर उत्पादों को खेतों से दूर-दूर के बाजारों में सुगमता से पहुँचाने में सहायता की।
(iii) माँस के व्यापार पर प्रभाव 1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को माँस का निर्यात नहीं किया जाता था अपितु शिंदा जानवर भेजे जाते जिन्हें यूरोप ले जाकर काटा जाता था। जीवित जानवर जलपोतों में अधिक जगह घेरते थे। समुद्री यात्रा में कई पशु मर जाते, बीमार हो जाते, भार कम हो जाता या फिर अखाद्य बन जाते। अतः माँस के दाम बहुत ऊँचे और निर्धन यूरोपियों की पहुँच से परे थे। उच्च कीमतों के कारण माँग तथा उत्पादन बहुत कम था। परन्तु रेफ्रिजरेशन युक्त जलपोतों ने माँस को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक परिवहन करना सुगम बना दिया।
(iv) सामाजिक शांति और साम्राज्यवाद रेफ्रिजरेशन की तकनीक के कारण न केवल समुद्री यात्रा में आने वाला खर्चा कम हो गया बल्कि यूरोप में माँस के दाम भी गिर गए। यूरोप के गरीबों को स्यादा विविधतापूर्ण खुराक मिलने लगी। जीवन स्थिति सुधरी तो देश में शांति स्थापित होने लगी और दूसरे देशों में साम्राज्यवादी मंसूबों को समर्थन मिलने लगा।
(v) उपनिवेशवाद विश्व बाजारों को आपस में जोड़ने में तकनीक में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके फलस्वरूप उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला।
प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए किस प्रकार के आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा?
उत्तर- महायुद्ध के बाद आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए प्रयास शुरू हुआ। महायुद्ध से पहले ब्रिटेन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। युद्ध के बाद सबसे लंबा संकट उसे ही झेलना पड़ा था। उसी समय भारत और जापान में औद्योगिक विकास होने लगे थे। अतः युद्ध के बाद भारतीय बाज़ार में ब्रिटेन के लिए पहले की स्थिति प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो गया था। ब्रिटेन को अब जापान से भी मुकाबला करना था। युद्ध के खर्चे की भरपाई करने के लिए ब्रिटेन ने अमेरिका से जमकर कर्ज लिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि युद्ध की समाप्त तक ब्रिटेन कर्मों से दब चुका था। आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया यहीं से प्रारंभ हुई
(i) महायुद्ध के कारण आर्थिक उछाल का माहौल पैदा हो गया था क्योंकि माँग, उत्पादन और रोजगारों में भारी इजाफा हुआ था। लेकिन जब आर्थिक उछाल शांत होने लगा तब उत्पादन गिरने लगा और बेरोजगारी की समस्या बढ़ने लगी।
(ii) दूसरी ओर सरकार ने भारी-भरकम युद्ध संबंधी व्यय में भी कटौती शुरू शांतिकालीन करों के सहारे ही उनकी भरपाई की जा सके।
(iii) इन प्रयासों से रोजगार भारी तादाद में खत्म हुए। 1921 में हर पाँच में से एक ब्रिटिश मजदूर के पास काम नहीं था। रोजगार संबंधी बेचैनी और अनिश्चितता युद्धोत्तर वातावरण का अंग बन गई थी।
(iv) कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में भी संकट की स्थिति थी। बुद्ध से पहले पूर्वी यूरोप विश्व बाजार में गेहूँ की आपूर्ति करने वाला एक बड़ा केन्द्र था। युद्ध के दौरान यह आपूर्ति अस्त-व्यस्त हो गई थी तो कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में गेहूं की पैदावार अचानक बढ़ने लगी।
(v) युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप में गेहूं की पैदावार सुधारने लगी और विश्व बाजारों में गेहूँ की आपूर्ति जरूरत से ज्यादा बढ़ गई। इससे अनाज की कीमतें गिर गईं, ग्रामीण आय कम हो गई। और किसान गहरे कर्ज संकट में फँस गए।
प्रश्न- आर्थिक महामंदी के प्रभावों (परिणामों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर- आर्थिक महामंदी के प्रभाव (परिणाम) निम्न हैं
(i) औद्योगिक देशों में आर्थिक मंदी का सबसे बुरा प्रभाव अमेरिका को ही झेलना पड़ा था। कीमतों में कमी और मंदी की आशंका को देखते हुए अमेरिकी बैंकों ने घरेलू कर्ज देना बंद कर दिया। जो कर्ज दिए जा चुके थे उनकी वसूली तेज कर दी गई।
(ii) किसान उपज नहीं बेच पा रहे थे। उनके परिवार तबाह हो गए और कारोबार ठप पड़ गए।
(iii) आमदनी में गिरावट आने पर अमेरिका के बहुत सारे परिवार कर्जा चुकाने में नाकामयाब हो गए जिसके कारण उनके मकान, कार और सारी जरूरी चीजें कुर्क कर ली गई। (iv) बीस के दशक में जो उपभोक्तावादी संपन्नता दिखाई दे रही थी, वह अचानक गायब हो गई। कई देशों की मुद्रा की कीमत बुरी तरह गिर गई।
(v) बेरोजगारी बढ़ने लगी जिसके कारण लोग काम की तलाश में दूर-दूर तक जाने लगे।
(vi) अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था धराशायी हो गई। निवेश से अपेक्षित लाभ नहीं मिलने के कारण, कर्जे की वसूली नहीं होने और जमाकर्ताओं की जमा पूँजी नहीं लौटा पाने के कारण हजारों बैंक दिवालिया हो गये और बैंक बंद कर दिए गए। एक आँकड़े के अनुसार 1933 तक 4,000 से ज़्यादा बैंक बंद हो चुके थे और 1929 से 1932 के बीच तकरीबन 1,10,000 कंपनियाँ चौपट हो चुकी थीं।
(vii) अमेरिकी सरकार इस महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए आयातित पदार्थों पर दोगुना सीमा शुल्क वसूल करने लगी। इस फैसले से विश्व व्यापार की कमर टूट गई।
प्रश्न- दो महायुद्धों के बीच जो आर्थिक परिस्थितियाँ पैदा हुई, उनसे अर्थशास्त्रियां और राजनेताओं ने क्या सबक सीखा?
उत्तर- दो महायुद्धों के बीच मिले आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने दो अहम्
(1) वृहत उत्पादन पर आधारित किसी औद्योगिक समाज का व्यापक उपभोग के बिन कायम नहीं रखा जा सकता। लेकिन व्यापक उपभोग को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक प कि आमदनी काफी ज्यादा और स्थिर हो। यदि रोजगार अस्थिर होंगे तो आय स्थिर नहीं हो सकती थी। स्थिर आय के लिए पूर्ण रोजगार भी जरूरी था लेकिन बाजार पूर्ण रोजगार की गारंटी नहीं दे सकता। कोमत उपज और रोजगार में आने वाले उतार-चढ़ावों को नियंत्रित करने के लिए। सरकार का दखल जरूरी था। आर्थिक स्थिरता केवल सरकारी हस्तक्षेप के जरिये ही सुनिश्चित की जा सकती थी।
(ii) दूसरा सबक बाहरी दुनिया के साथ आर्थिक सम्बन्धों के बारे में था। पूर्ण रोजगार का लक्ष्य केवल तभी हासिल हो सकता है जब सरकार के पास वस्तुओं, पूँजी और श्रम के आवागमन को नियंत्रित करने की ताकत उपलब्ध हो।
प्रश्न- ब्रेटन वुड्स (Bretton Woods) प्रणाली के समाप्त होने के लिए उत्तरदायी घटकों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- (1) अमेरिकी मुद्रा में गिरावट 1960 के बाद अमेरिका का आर्थिक शक्ति के रूप में पैसा वर्चस्व नहीं रहा जैसा दो से भी अधिक दशक पूर्व रहा था। अमेरिकी डॉलर अब दुनिया को प्रधान मुद्रा के रूप में पहले जितना सम्मानित और निर्विवाद नहीं रह गया था। सोने की तुलना में डॉलर की कीमत गिरने लगी थी।
(ii) पश्चिमी व्यावसायिक बैंकों का उदय 1970 के दशक के मध्य से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में भी भारी बदलाव आ चुके थे। पहले विकासशील देश ऋण और विकास संबंधी सहायता के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की शरण ले सकते थे लेकिन अब उन्हें पश्चिम के व्यावसायिक बैंकों और निजी ऋणदाता संस्थानों से ऋण न लेने के लिए विवश किया जाने लगा। विकासशील विश्व में समय-समय पर ऋण संकट पैदा होने लगा जिससे आय में कमी आती थी और ग़रीबी बढ़ने लगती थी, विशेषतः अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में।
(iii) चीन और सोवियत संघ का उत्थान चीन 1949 की क्रांति के बाद विश्व अर्थव्यवस्था से अलग-थलग ही था परन्तु चीन में नई आर्थिक नीतियों और सोवियत गुट के बिखराव तथा पूर्वी यूरोप में सोवियत शैली की व्यवस्था समाप्त हो जाने के पश्चात् बहुत से देश पुनः विश्व अर्थव्यवस्था का अंग बन गए।
(iv) बेरोजगारी की समस्या औद्योगिक विश्व भी बेरोजगारी को समस्या से ग्रस्त होने लगा था। सत्तर के दशक के मध्य से बेरोजगारी बढ़ने लगी। नब्बे के दशक के प्रारंभिक वर्षों तक वहाँ काफी बेरोजगारी रही। सत्तर के दशक के अंतिम वर्षों से बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी एशिया के ऐसे देशों में उत्पादन केन्द्रित करने लगीं, जहाँ वेतन कम थे।
