Ba 1st year Hindi Literature notes pdf download

Sachin ahirwar
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इकाई 2

प्रश्न- 1. कम्प्यूटर किसे कहते हैं? कम्प्यूटर का परिचय देते हुये उसके महत्व पर प्रकाश डालिये।

अथवा

 कम्प्यूटर का संक्षिप्त परिचय दीजिये

उत्तर- सन् 1800 के पश्चात् मानव जीवन में इतने क्रान्तिकारी परिवर्तन हुये जो कि सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर सन् 1800 तक भी नहीं हुये थे। इन परिवर्तनों के मूल कारण मनुष्य द्वारा अपने जीवन को सरल और सुचारू बनाने के लिये किये गये नये-नये आविष्कार थे। इन्हीं आविष्कारों के दौरान बिजली की खोज और बिजली के खोज के बाद उस पर आधारित यंत्रों की खोज का अनवरत सिलसिला चला। इसी तारतम्य में कम्प्यूटर के आविष्कार की नींव चार्ल्स बैबेज द्वारा रखी गई, लेकिन इसका उत्थान द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही हुआ, और इसका प्रयोग सेना से सम्बन्धित गणनाओं में बखूबी किया जाने लगा। यहीं से मनुष्य को कम्प्यूटर की शक्ति का आभास हुआ तथा इसकी शक्ति को बढ़ाने के लिये इस पर सैकड़ों रिसर्च प्रारम्भ हो गयीं।

 

जहाँ तक कम्प्यूटर की आवश्यकता और महत्व का प्रश्न है, हम जानते हैं कि मनुष्य का एक महत्वाकांक्षी सपना था कि वह एक ऐसी मशीन का निर्माण करे जिसकी कार्य-प्रणाली एकदम उसी की तरह हो । कम्प्यूटर के रूप में उसका यह सपना साकार हुआ। जिस प्रकार हम अपनी आँखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं और त्वचा से स्पर्श का अनुभव करते हैं, ठीक उसी प्रकार कम्प्यूटर की इनपुट डिवाइसिस के द्वारा सूचनायें कम्प्यूटर के अंदर पहुँचती हैं। इसके पश्चात् जिस प्रकार हमारा दिमाग सोचता है और हमारे अंगों द्वारा एकत्रित सूचनाओं का विश्लेषण करता है, ठीक उसी प्रकार कम्प्यूटर का सीपीयू भी इनपुट डिवाइसिस के द्वारा भेजी हुई सूचनाओं का विश्लेषण करता है मानव शरीर में मुँह और हाथ विभाग द्वारा सोचे हुये परिणाम को सामने लाते हैं और कम्प्यूटर में यह कार्य मॉनीटर, प्रिंटर और स्पीकरों द्वारा सम्पादित होता है। मनुष्य और कम्प्यूटर की कार्य प्रणाली में अन्तर सिर्फ इतना है कि मनुष्य का दिमाग तथ्यों से परे भी जा सकता है लेकिन कम्प्यूटर तथ्यों से परे नहीं जा सकता है।

 

जब हम कम्प्यूटर को परिभाषित करते हैं, तो कहते हैं, 'आधुनिक कम्प्यूटर एक ऐसी इलैक्ट्रॉनिक डिवाइस है जिसके द्वारा हम बेटा स्टोर करके उसे क्रमबद्ध रूप में प्रोसेस करके अर्थपूर्ण डेटा में परिवर्तित करते हैं। वर्तमान समय में इसकी आवश्यकता का यही प्रमुख कारण है।'

 

कम्प्यूटर में सूचनाओं को तीव्र गति से प्रोसेस करने की क्षमता मनुष्य से कई गुना ज्यादा है जिन गणनाओं को हमें परिणाम तक पहुँचाने में घण्टों लग जाते हैं, कम्प्यूटर द्वारा यह कार्य सेकेण्डों में सम्पन्न हो जाता है। इसी तरह यदि हमें एक ही पत्र दस व्यक्तियों को लिखना है तो कम्प्यूटर में इसे एक बार लिखेंगे और दस प्रिंट निकालकर दे देंगे, जबकि हाथ से हमें दस बार लिखना पड़ेगा।vनिष्कर्ष कम्प्यूटर मानव मस्तिष्क की भाँति चिन्तन-मनन नहीं करता इसे जैसा निर्देश दिया जाता है, यह वैसा ही कार्य करता है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में कम्प्यूटर हमारे विकास का प्रमुख घटक बन गया है।

 

प्रश्न . कम्प्यूटर की विशेषताएँ लिखिये।

उत्तर- कम्प्यूटर की विशेषताएँ- कम्प्यूटर के परिचय एवं रूपरेखा के साथ ही उसकी सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

 (1) अधिकतम स्मृति क्षमता कम्प्यूटर में स्टोरेज कैपेसिटी अर्थात् स्मृति क्षमता अधिकतम होने के कारण अधिकतम जानकारी एक छोटी-सी कॉम्पेक्ट डिस्क या लेजर डिस्क में टाइप किये हुए अक्षरों द्वारा हजारों पेजों के बराबर जानकारी स्टोर की जा सकती है।

 

(2) उच्च गति - माइक्रो कम्प्यूटर में एक सेकेण्ड में अनुदेशों का पालन होता है। यदि 630 मेगा क्लैप की क्षमता वाला सुपर कम्प्यूटर है तो इसकी स्पीड इतनी तीव्र होती है कि यह अरबों की गणना सेकेण्डों में कर लेता है।

(3) विश्वसनीयता- इसमें अशुद्धियाँ नहीं होतीं। डिजीटल कम्प्यूटर के परिणाम शत-प्रतिशत विश्वसनीय होते हैं।

 (4) स्वचालन - यह स्वचालित होता है।

(5) निर्णय क्षमता- कृत्रिम बुद्धि के कारण कम्प्यूटर में हाई लेवल भाषाओं के उपयोग द्वारा प्रोग्राम डालकर अनेक जटिल कार्य सम्पन्न हो जाते हैं। अन्य विशेषताएँ- त्रुटिरहित कार्यक्षमता, विशाल भंडारण क्षमता, भंडारित क्षमता को . तीव्रगति से प्राप्त करना, विविधता, पुनरावृत्ति, स्फूर्ति, कार्य की एकरूपता, गोपनीयता के साथ ही कम्प्यूटर के सही प्रयोग से कागज की खपत में भी कमी की जा सकती है जिससे पर्यावरण संरक्षण में भी यह सहायक होता है।

 

प्रश्न- 3. कम्प्यूटर में हिन्दी के अनुप्रयोग को समझाइये ।

अमवा

कम्प्यूटर की हिन्दी कार्यविधि पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।

अथवा

हिन्दी भाषा में कम्प्यूटर कैसे कार्य करता है? समझाकर लिखिये

 

अथवा

कम्प्यूटर में हिन्दी का प्रयोग कैसे होता है? संक्षेप में लिखिये।

उत्तर आधुनिक युग कम्प्यूटर का युग है। कम्प्यूटर बिजली से चलने वाली एक अनोखी मशीन है, जिसमें गणना करने की अद्भुत् क्षमता है। आज के वैज्ञानिक युग में यह मशीन हमारी जीवनचर्या का एक अविभाज्य और अनिवार्य अंग बन गयी है। आधुनिक कम्प्यूटर इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर हैं, जो गणना करने के साथ-साथ सवाल-जवाब करते हैं, अंतरिक्ष यानों को सही रास्ते पर रखने में सहायता पहुँचाते हैं, अन्य मशीनों को नियन्त्रित करना, सामान की जाँच करना, डिजाइनिंग करना, आरक्षण करना, शरीर के भीतरी अंगों की जाँच करना और सभी प्रकार के रिकार्डों को सुरक्षित रखना आदि अनेक कार्यों को ये बड़ी सरलता से कम समय में सम्पन्न कर लेते हैं।

 

आधुनिक कम्प्यूटर अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ हिन्दी और अन्य भाषाओं में भी कार्य करते हैं। यद्यपि सिद्धान्ततः कम्प्यूटर हमारी भाषाओं, लिपियों और दशम पद्धति पर आधारित संख्याओं को मूलरूप में नहीं समझ पाता है इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर की केन्द्रीय संसाधक इकाई (सी. पी. यू.) में कोई गतिशील पुर्जा नहीं होता है, उसमें केवल विद्युत के आवेश (पल्सेज) गतिशील रहते हैं। इन गतिशील आवेशों की केवल दो स्थितियाँ रहती हैं, एक 'चालू' और दूसरी 'बन्द' अर्थात् ऑन और ऑफ इनके दो अंक संकेत 0 और 1 होते हैं। इसलिये भाषा को सबसे पहले इन्हीं दो संकेतों की योजनाओं में बदलना होता है। कम्प्यूटर की यह मशीनी भाषा जटिल होती है। सुगमता के लिये कम्प्यूटर के भीतर एक नये साधन की व्यवस्था की गयी है, जिसे संग्राहक (कम्पाइलर ) कहा जाता है। कम्पाइलर भाषाई सूचनाओं को मशीनी भाषा की सूचनाओं में बदल देता है। सबसे पहले सन् 1954 में अमेरिका की कम्पनी 'आई.वी.एम.' के जोन वाक्कस ने कम्प्यूटर प्रोग्राम के लिये 'फोरट्रान' नामक भाषा तैयार की थी। इसके बाद वैज्ञानिक प्रोग्रामों के लिये 'अलगोल' तथा आर्थिक और व्यापारिक समस्याओं के समाधान के लिये सन् 1959 में कोबोल नामक भाषा बनाई गयी। विद्यार्थियों को कम्प्यूटर की शिक्षा देने के उद्देश्य से अमेरिका में 'बेसिक' नाम से एक नई सरल भाषा का विकास किया गया। इन भाषाओं के अतिरिक्त कुछ और भी भाषायें है, जैसे- पास्कल, लोगो आदि । भारतवर्ष में जब इस आवश्यकता का अनुभव किया गया कि द्विभाषी कम्प्यूटर बनाये जायें तो यह निर्णय लिया गया कि एक भाषा अंग्रेजी हो तथा दूसरी भाषा हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला, कन्नड़, तमिल या अन्य कोई । हिन्दी, मराठी, संस्कृत और नेपाली भाषायें तो देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं जबकि अन्य भाषाओं की अलग-अलग अपनी लिपियाँ हैं।

 

लेकिन संयुक्ताक्षरों और मात्राओं की आवश्यकता सभी में हैं। अतः इस आवश्यकता की पूर्ति के लिये एक नयी मानक संकेत प्रणाली बनाई गयी है, जो आठ बिटों से परिचालित है। इन आठ बिटों को मिलाकर एक बाइट बनता है। इससे 256 संकेत व्यक्त किये जा सकते हैं। आई. आई. टी. कानपुर के द्वारा 8 बिट प्रणाली वाला देवनागरी कम्प्यूटर विकसित किया गया है। इस का मुख्य उपयोग मूल पाठ को तैयार करने में होता है। मूल पाठ तैयार करने के लिये सबसे पहले कागज के आकार का चुनाव किया जाता है। यद्यपि पर्दे पर एक समय में अधिक से अधिक 12 या 13 पंक्तियाँ आ सकती हैं, लेकिन कागज के आकार की कोई सीमा नहीं है। स्क्रीन एक खिड़की का काम करता है, जिसमें एक बड़े आकार का कागज भी देखा जा सकता है। पूरे कागज को दिखा देने की व्यवस्था को 'जूम' कहा जाता है। इसमें कागज को बढ़ाकर या घटाकर स्क्रीन के आकार का करके प्रस्तुत किया जाता है। इससे पूरी रिपोर्ट या पत्रिका या पुस्तक की भली-भांति जाँच की जा सकती है।

 

शब्द-संसाधक (वर्ड प्रोसेसर) की सहायता से मूल पाठ को स्क्रीन के नियत पृष्ठ-स्थान पर अंकित किया जाता है। यह एक सरकने वाला संकेतक है, जो सदैव यह संकेत करता है कि पाठ किस स्थान पर अंकित होगा ? इससे कई काम लिये जाते हैं इसे टंकित किये गये मूल पाठ के गलत अक्षर या शब्द के ऊपर ले जाकर सही शब्द टाइप कर दिया जाता है। किसी भी पैराग्राफ या पंक्ति में से अक्षर या शब्दों को निकाला जा सकता है, अक्षर, शब्द, पूरा वाक्य या वाक्यांश जोड़ा जा सकता है। इस प्रकार पटाने बढ़ाने का काम कम्प्यूटर अपने • आप करता चलता है। तैयार किये गये सभी मूल पाठ फाइलों में भण्डारित करके रखे जा सकते हैं, उनमें संशोधन किया जा सकता है या मुद्रित किया जा सकता है। मूल पाठ को तैयार करने की सारी प्रक्रिया में कागज की जरूरत नहीं पड़ती है। सब कुछ कम्प्यूटर की स्मृति (मेमोरी) में रहता है और उसे पर्दे (स्क्रीन पर देखा जा सकता है। इस प्रकार से तैयार की गई प्रति को मूल पाठ की 'कोमल प्रति' (सॉफ्ट कॉपी) कहा जाता है। सॉफ्ट कॉपी की शुद्धता की जाँच करने के बाद उसे 'हाई कॉपी' अर्थात् 'कठोर प्रति' तैयार की जाती है। यह प्रति बिन्दुओं वाले साँचे (डॉट-मैट्रिक्स) पर बनती और मुद्रित होती है। यह मुद्रण बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसा स्क्रीन पर दिखाई देता है, बल्कि उससे भी अधिक साफ और सुन्दर होता है।

 

प्रत्येक कम्प्यूटर प्रणाली या शब्द-संसाधक (वर्ड प्रोसेसर) की अपनी-अपनी विशेषतायें हैं, किन्तु उनके सिद्धान्त एक ही हैं। उनके मुख्य अवयव एक ही हैं और एक ही तरह से काम करते हैं। इनकी निर्माता कम्पनियाँ अपने शब्द-संसाधकों में विशेषतायें और सुविधायें विकसित करती हैं, कार्यक्रम बनाती हैं। इसलिये उन पर कार्य करने की पद्धति में कुछ अन्तर आ जाता है। सिस्टम की पुस्तिका (मेनुअल) में दी गई विशेषताओं और प्रकार्य कुजियों की जानकारी के अनुसार हमें कम्प्यूटर पर काम करना चाहिये हिन्दी ट्रान (मुम्बई) द्वारा 'आलेख' नामक द्विभाषी कम्प्यूटर प्रणाली विकसित की गयी है। इसके कुंजी फलक की विशेषतायें निम्नानुसार हैं-

 

(1) इसमें व्यंजन बायीं ओर तथा स्वर कुंजी फलक के दायीं ओर रखे गये हैं। इससे टेक्स्ट की एन्ट्री करते समय सन्तुलन बना रहता है।

(2) इसके कुंजी फलक को 'विविधा' के नाम से जाना जाता है। यह एक विशुद्ध ध्वन्यात्मक कुंजीफल है, जो सभी भारतीय लिपियों में मिलने वाली 'बारहखड़ी अवधारणा पर लागू होता है और शुद्ध व्यंजन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

(3) हिन्दी में विभिन्न स्वरों से शुद्ध व्यंजनों का संयोजन स्क्रीन पर इस तरह देखा जा सकता है यथा- अ आ- क् क का- - कं कः । आदि

(4) स्वरों और व्यंजनों को क्रमबद्ध व्यवस्थित करने के नियम सामान्य और एक जैसे हैं। स्वर से पहले कोई स्वर हो या एक स्वर व्यंजन के साथ आये, लेकिन व्यंजन पहले न आये तो हमेशा केवल स्वर-रूप में आयेगा।

जैसे- (i) अ + अ = अ (ii) अ + क् = अक्

 

(5) जहां कोई स्वर शुद्ध व्यंजन के बाद आये, वह मात्रा होगा। यथा-

 (i) क् + अ क

(ii) क् + ओ = को आदि। इसी प्रकार क् + उ = कु (कउ' नहीं होगा। क् + अ + उ = कउ (कु नहीं होगा) ।

 

(6) यदि कोई व्यंजन, शुद्ध व्यंजन से पूर्व आता है तो एक संयुक्त व्यंजन प्राप्त होता है। परम्परागत देवनागरी में इन संयुक्त व्यंजनों की ग्राफीय आकृतियाँ भी उन्हें ऊर्ध्वाधर या शीर्षस्थ रख कर प्राप्त की जा सकती हैं। यथा— क् + क् = क्क्, टू + ट्ट्ट आदि ग्राफीय कैरेक्टर कम्पोजीशन के कुछ = उदाहरण दृष्टव्य हैं-

 

(i) व् + इ + म् + इ + न् + न् + अ विभिन्न (ii) क् + र् + अ + म् + अ = क्रम

 

(7) ध्वन्यात्मक संकल्पना को पुनः स्पष्ट करने के लिये 'र' की चारग्राफिक फॉर्म केवल शुद्ध 'र' व्यंजन की कुंजी से इनपुट की जा सकती हैं- (i) र् + अ= र

(i) ट् + र् + अट्र (1) क्+र+अक्र

(iv) र + क् + अर्क

 

(8) Ac (कंन्ट्रोल C): किसी भी समय इस बनावट को तोड़ने के लिये प्रयुक्त होती है। इस प्रकार

 क् + र् + ई = क्री।

क्र + र् + Ac + ई क्रई।

(9) स्वर परिवर्तक निम्नलिखित हैं-

 (1) चन्द्रविन्दु (*),

(2) अनुस्वार ()

 (3) विसर्ग (:)। इन्हें स्वर के तुरन्त बाद टाइप किया जाता है।

 

(10) अन्य भारतीय लिपियों से नियों(फोनेटिक साउण्ड्स) को ग्रहण करने के लिये विविधानियाँ (बॉउल साउन्ड्स) उपलब्ध कराती है। यद्यपि ये बहुत अधिक प्रयोग में नहीं आते हैं, फिर भी ALT कुंजी से किसी कॉम्बीनेशन में प्रयोग किया जा सकता है। जैसे क्रू, लुड, चू. ञ्, इक्षु, - ए, इत्यादि ।

 

उक्त सभी विशेषतायें शब्द संसाधक (वर्ड प्रोसेसर) की पुस्तिका (मैनुअल) में दी होती हैं. इन विशेषताओं तथा नियमों को ध्यान में रखते हुये कम्प्यूटर में हिन्दी का अनुप्रयोग सरलतापूर्वक किया जा सकता है।

प्रश्न- 4. इनपुट डिवाइसेज कितने प्रकार की होती हैं व इनके क्या उपयोग होते हैं?

अथवा

 इनपुट डिवाइसेस क्या हैं? स्पष्ट कीजिये। यह कितने प्रकार की होती हैं ?

 

उत्तर- इनपुट डिवाइसेज-

 

(अ) की-बोर्ड - की-बोर्ड एक मुख्य और सुगम इनपुट डिवाइस होती है। यह एक टाइपराइटर के समान होता है। इसमें एल्फाबेट्स, डिजिटल, विशेष चिन्ह एवं कुछ कंट्रोल बटनें होती हैं। जब यूजर द्वारा कोई विशेष बटन दबाया जाता है, तो की-बोर्ड एनकोडर उस चटन के बाइनरी कोड (0 से 1) को सी.पी.यू. को भेजता है। सामान्यतः एक की-बोर्ड में 101 बटनें होती हैं।

कीबोर्ड के बटनों के प्रकार तथा इनके उपयोग- ये निम्नलिखित हैं- (1) एंटर बटन - इसके दबाने पर कर्सर अगली लाइन के शुरू में आ जाता है।

 

(2) होम बटन - लाइन के प्रारंभ में कर्सर लाने के लिए इस बटन का उपयोग किया जाता है।

 

(3) एंड बटन - लाइन के अन्त में कर्सर लाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

(4) Ctrl Key / Alt Key एक की (Key) का दूसरी के साथ उपयोग करने पर कमांड हेतु इसका उपयोग किया जाता है। इन्हें Combination बटन भी कहते हैं। इन्हें सॉफ्टवेयर के अनुसार उपयोग में लाया जाता है।

 (5) Back Space- कर्सर के बाई ओर के अक्षर को मिटाने के लिए इसे प्रयोग किया जाता है।

(6) Delete कर्सर के दाहिनी ओर के अक्षर को मिटाने हेतु इसे प्रयोग किया जाता है।

(7) Insert इस बटन दबाने के बाद ओवरराइट होगा और पुनः दबाने पर इन्सर्ट मोड में टाइप होगा।

( 8 ) Page Up / Page Down- एक पेज ऊपर एवं एक पेंज नीचे की जानकारी देखने हेतु इसका उपयोग करते हैं।

( 9 ) Print Screen स्क्रीन पर दिख रहे मैटर का प्रिंट निकालने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

 

(10) Ecs Key (एस्केप बटन) किसी दूसरे बटन के एक्शन को कैन्सिल करने एवं - डॉयलॉग बॉक्स को Close करने हेतु इसका उपयोग किया जाता है।

(11) Cursor Key - कर्सर बटनों का प्रयोग कर्सर को ऊपर नीचे, दाएँ, बाएँ लाने के लिए किया जाता है।

(12) Function Key- फंक्शन बटनों का प्रयोग F1 से F12 तक होता है। इनका उपयोग सॉफ्टवेयर पर निर्भर करता है।

(13) स्पेस बार- स्पेस खाली छोड़ने हेतु इस बटन का उपयोग करते हैं।

(14) देव बटन इसका उपयोग एक कॉलम से दूसरे कॉलम में जाने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त लगभग 8 स्पेस खाली छोड़ने में इनका उपयोग किया जाता है।

(15) Caps Lock- यह बटन अंग्रेजी के Capital अक्षर टाइप करने हेतु की-बोर्ड को सैट करता है।

(15) Num Lock नम्बर पेड को On या Off करने हेतु इस बटन का उपयोग किया जाता है।

(ब) माउस माउस एक ग्राफिक्स यूजर इन्टरफेस पॉइन्टिंग इनपुट डिवाइस है। स्क्रीन पर कर्सर को कंट्रोल करने हेतु इसका उपयोग किया जाता है। माउस मुख्यतः तीन प्रकार की होती है- (1) मैकेनिकल माउस, (2) ऑप्टोमैकेनिकल माउस, (3) ऑप्टीकल माउस ।

माउस के कार्य माउस के निम्न कार्य होते हैं- -

(1) क्लिक करना,

(2) ड्रैग (Drag) करना,

 (3) डबल क्लिक करना। स्क्रीन पर माउस पाइंटर निम्नलिखित अनेक आकार में दिखाई देते हैं-

स्टैंडर्ड पाइंटर विण्डो बार्डर पाईटर, टैक्स्ट और व्यस्त पाईटर कम्प्यूटर का प्रोग्राम किसी कार्य में व्यस्त होने पर Busy Pointer दिखाई देता है।

 

प्रश्न 5. आउटपुट डिवाइसेज कितने प्रकार की होती हैं व इनके क्या उपयोग होते हैं?

अथवा

आउटपुट डिवाइसेस क्या हैं? स्पष्ट कीजिये। यह कितने प्रकार की होती हैं ?

 

उत्तर- आउटपुट डिवाइसेस-

 

मॉनीटर (Monitor)- यह एक ऐसा संयंत्र है, जो टी.वी. स्क्रीन पर आउटपुट को प्रदर्शित करता है। स्क्रीन पर बनने वाला चित्र पिक्सेल से मिलकर बनता है रंगों के आधार पर मॉनीटर के निम्न तीन भाग होते हैं-

 

(1) मोनोक्रोम - मोनो अर्थात् एकल तथा (Crome) अर्थात् रंग से मिलकर बनने वाला। इस प्रकार के मॉनीटर आउटपुट को ब्लैक एण्ड वाइट रूप में प्रदर्शित करते हैं।

(2) ग्रे स्केल ग्रे शेड्स में आउटपुट प्रदर्शित करते हैं।

(3) रंगीन मॉनीटर - यह विकिरणों के आउटपुट को प्रदर्शित करता है। कम्प्यूटर मैमोरी की क्षमतानुसार ऐसा मॉनीटर 16 से लेकर 16 लाख तक के रंगों में प्रदर्शित करने की क्षमता रखता है। आउटपुट

(4) प्रिंटर - प्रिंटर एक On line आउटपुट डिवाइस है जो कि आउटपुट को कागज पर छापकर प्रस्तुत करता है। कागज पर आउटपुट की प्रतिलिपि हार्ड कॉपी कहलाती है। प्रिंटर में स्पीड, क्यालिटी, अक्षर समूह, इंटरफेस, बफर साइज एवं प्रिंटिंग की दिशा का महत्व होता है। कम्प्यूटर भाषाओं में लिखे हुए प्रोग्राम या आंकड़ों के संग्रह सॉफ्टवेयर कहलाते हैं। ये सिस्टम, एप्लीकेशन और यूटिलिटी सॉफ्टवेयर कहलाते हैं।

 

 प्रश्न 6. बर्ड प्रोसेसिंग (शब्द-संसाधन) प्रणाली को समझाइये।

अथवा

बर्ड प्रोसेसिंग पर प्रकाश डालिये।

अथवा

वर्ड प्रोसेसिंग से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में लिखिये।

उत्तर- कम्प्यूटर द्वारा शब्दों को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया शब्द-संसाधन कहलाती है। मूलतः शब्द संसाधक के रूप में कम्प्यूटर एक साधारण टाईप मशीन की तरह कार्य करता है परन्तु इससे सीधे कागज पर टाइप करने के स्थान पर इलैक्ट्रॉनिक मेमोरी (स्मृति कोष) में पहले संग्रहित कर लिया जाता है। शब्द संसाधक यह सब इसलिये कर सकता है क्योंकि वास्तव में शब्द संसाधक (वर्ड प्रोसेसर) इसी कार्य विशेष के लिये बनाया गया कम्प्यूटर का प्रोग्राम है जिसका मुख्य उद्देश्य टायपिंग सम्बन्धी कार्य को अधिक सरलतापूर्वक सम्पन्न करना है। वर्ड प्रोसेसर एक बहुत उपयोगी सॉफ्टवेयर पैकेज है। लैटर्स लिखना, रिपोर्ट और फाइलों को तैयार करना, नये डॉक्यूमेण्ट बनाना, सेव करना, फाइलों का प्रिंट आउट निकालना इत्यादि ऐसे कार्य हैं जिनकी हमें दैनिक जीवन में भी आवश्यकता होती है। इन कार्यों को हम वर्ड प्रोसेसर प्रोग्राम द्वारा मेनुअल वर्क की तुलना में आसानी से तीव्रगति से कर सकते हैं। आज मार्केट में कई वर्ड प्रोसेसर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जैसे- वर्ड पेड Word- pad, नोटपेड Note Pad, चर्ड स्टार Word Star, माइक्रोसोफ्ट वर्ड Microsoft word इत्यादि, जिसमें आज गई प्रोसेसिंग के लिये MS Word का उपयोग मुख्यतः होने लगा है। इसका विकास Microsoft Corprotion of USA द्वारा हुआ। वर्ड प्रोसेसिंग के निम्नलिखित लाभ हैं जिसके कारण आज इसका प्रयोग तेजी से होने लगा है-

 

(1) हम अपने लैटर को बिना किसी कठिनाई के आसानी से टाइप कर सकते हैं।

(2) शब्दों या वाक्यों को आसानी से इनसर्ट किया जा सकता है, उन्हें हटाया या बदला भी जा सकता है।

(3) पैराग्राफ को डोक्यूमेन्ट के अन्दर कहीं से भी मूव करा सकते हैं।

(4) पेज की लम्बाई के हिसाब से हम अपने Document को Adjust कर सकते हैं।

(5) विषय तथा Documents की Spelling आसानी से चैक कर सकते हैं।

(6) इसके अन्दर हमें Mail- Merge की Facility भी मिलती है, जिसके अन्तर्गत हम समान मैटर पर विभिन्न नामों और पतों पर Print out निकाल सकते हैं।

(7) हम Document के अन्दर किसी Particular word को Surch (ढूँढ़) कर सकते हैं तथा उसे किसी नये शब्द से Replace ( बदलना) कर सकते हैं।

(8) आवश्यकतानुसार अपने Document से Bold, Italic, Underline etc, Facts डाल सकते हैं।

(9) Document की आसानी से Editting कर सकते हैं।

(10) Document को आसानी से Save किया जा सकता है और उसे आसानी से Retrieve कर सकते हैं और जितनी चाहें उतनी प्रतियां Print out निकाल सकते हैं। इसके अतिरिक्त संसाधक और भी विभिन्न सुविधायें प्रदान करता है जैसे-

(i) किन्हीं दो अनुच्छेदों (Paragraphs) के बीच में एक नया अनुच्छेद या कुछ पंक्तियाँ जोड़ना।

(Ii) किसी भी शब्द विशेष को जिसमें जितने स्थानों पर उपयोग किया गया है, उनके स्थानों पर उसे नये शब्द से बदलना।

(11) दस्तावेज के किसी भी भाग को सम्पूर्ण दस्तावेज के अन्तर चाहे गये तरीके से विभिन्न स्थान पर रखना व हटाना।

(iv) दस्तावेज में किसी भी विशेष शब्द को ढूँढ़ना ।

(v) दांयें या बाँयें हाशिये को चाहे गये अनुसार समायोजित करना साथ ही इसके अनुसार सम्पूर्ण प्रलेख को समायोजित करना।

(vi) किसी विशेष वाक्य, शब्द अथवा दस्तावेज को स्थूलाक्ष Bold, रेखांकित Underline करना या आकार बड़ा करना। इस तरह हम देखते हैं कि इन समस्त कार्यों के लिये तो वर्ड प्रोसेसर एक वरदान साबित हुआ है।

 

प्रश्न 7. 'कम्प्यूटर और भाषा के बीच द्विपक्षीय और द्विभाषात्मक सम्बन्ध है। कैसे? स्पष्ट कीजिये।

अथवा

सिद्ध कीजिये कि कम्प्यूटर और भाषा के बीच अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है।

अथवा

कम्प्यूटर और भाषा के बीच कौन-से सम्बन्ध हैं? स्पष्ट कीजिये।

 उत्तर- कम्प्यूटर और भाषा के बीच द्विपक्षीय और द्विदिशात्मक सम्बन्ध हैं। कम्प्यूटर और भाषा के इन दोहरे रिश्तों को भली प्रकार समझ लेना चाहिये भाषा एक ओर जहां अपने कुछ प्रयोजनों के लिये कम्प्यूटर का उपयोग एक उपकरण के रूप में करती है, वहीं दूसरी ओर कम्प्यूटर भी कुछ अन्य प्रयोजनों के लिये भाषा का प्रयोग एक उपकरण के रूप में करता है। उदाहरण के लिये हम कई भाषा आधारित कार्यों को अधिक सक्षम ढंग से और बहुत ही कम समय में सम्पन्न करने के लिये कम्प्यूटर का उपयोग करते हैं, जैसे- मुद्रण- टंकण कोश निर्माण, भाषा शिक्षण, सूचना संचयन और सम्पादन आदि। इसके विपरीत कम्प्यूटर भी भाषा के व्याकरण और शब्द-कोश का प्रयोग कर अपने कई ज्ञानात्मक तथा कृत्रिम बुद्धि-आधारित कार्य सम्पन्न करता है, जैसे- मशीन अनुवाद, पाठ-बोधन, पाठ- प्रजनन (टेक्स्ट जेनेरेशन) प्रणाली, मानव-मशीन इंटरफेस, स्पीच-टु-टैक्स्ट सिस्टम आदि । इस प्रकार स्पष्ट है कि कम्प्यूटर जहां भाषिक नियमों और सूक्ष्म व्याकरणिक सूत्रों की विशेषज्ञ जानकारी के लिये भाषा पर आश्रित रहता है, वहां कम्प्यूटर भाषा का उपयोग एक उपकरण के रूप में करता है।

 

प्रश्न- 8. डाटा प्रोसेसिंग से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में लिखिये।

अथवा

डाटा प्रोसेसिंग (आँकड़ा संसाधन) क्या है?

अथवा

 डाटा प्रोसेसिंग पर प्रकाश डालिये।

 

उत्तर- मूलतः कम्प्यूटर सूचनायें प्राप्त करता है फिर निश्चित निर्देशों का पालन करते हुये सूचनाओं को आवश्यकतानुसार उपयोग में लाता है। अंत में तेजी से गणना करके परिणाम प्रस्तुत करता है। आँकड़ों को व्यवस्थित करने अथवा उनके आधार पर नये आँकड़ों को तैयार करने की प्रक्रिया को आंकड़ा संसाधन कहा जाता है। डेटा को सम्परिवर्तित, संगठित एवं दोहित कर वांछित स्वरूप में प्रस्तुत करने की संक्रिया को डेटा प्रोसेसिंग कहा जाता है। इसका उपयोग मेनफ्रेम तथा मिनी कम्प्यूटर के संदर्भ में किया जाता है। इस प्रक्रिया में ऐसे उपकरण जो कम्प्यूटर के अन्दर सूचनायें पहुँचाते हैं, इनपुट उपकरण कहलाते हैं। कम्प्यूटर के जिस हिस्से में सभी प्रकार की गणना की जाती है, उसे केन्द्रीय संगणन प्रभाग (सेन्ट्रल) प्रोसेसिंग यूनिट या CPU कहते हैं। जो सूचना कम्प्यूटर को दी जाती है उसे वह याददाश्त के रूप में रख लेता है, यह कम्प्यूटर की मेमोरी कहलाती है। कम्प्यूटर को दो तरह की सूचनायें दी जाती है एक तो प्रोग्राम की और दूसरी डाटा सम्बन्धी कम्प्यूटर मुख्यतः चार भागों में विभक्त रहता है-

 

(1) सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट ।

(3) इनपुट उपकरण।

(2) मेमोरी

(4) आउटपुट उपकरण । इसमें सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

(1) कन्ट्रोल यूनिट

(2) अंकगणितीय (अर्थमेटिक) एवं लॉजिक यूनिट केन्द्रीय संगणन प्रभाग कम्प्यूटर के भीतर सूचना या डाटा का संचय एवं अनन्तरण इलैक्ट्रिकल कम्पोनेंट्स द्वारा किया जाता है। इनमें प्रमुख हैं ट्रांजिस्टर, इंटेग्रेटेड सर्किट कैपेसिटर, ट्रांजिस्टर इत्यादि, जिन्हें इलैक्ट्रिकल परिपथ में उपयोग में लाया जाता है। ऑन और ऑफ के लिये ट्रांजिस्टर और इंटेग्रेटेड सर्किट स्विचिंग प्रक्रिया होती है। इनके आधार पर 2 अंक निश्चित किये जा सकते हैं। वोल्टेज की अनुपस्थिति को ON एवं अंक को एक मानेंगे। इन दो अंकों, शून्य और एक के आधार पर ही कम्प्यूटर सारी गणना करता है। यह बायनरी या द्विअंकीय प्रणाली कहलाती है। इसी प्रणाली द्वारा समस्त गणनायें की जाती है।

 

प्रश्न 9. मुद्राकृति या फॉन्ट प्रबन्धन क्या है? समझाइये।

अपवा

फॉन्ट प्रबन्धन किसे कहते हैं?

 

उत्तर- प्रकाशन में पाठ्य की प्रस्तुति के लिये उपयुक्त वर्णों की आकृति को फॉन्ट कहते हैं। फॉन्ट में वर्णमाला के सभी वर्णों व अन्य संकेतों के लिये, किसी विशिष्ट शैली का उपयोग किया जाता है। उपयोग की सुविधा के लिये प्रत्येक फॉन्ट को एक नाम दे दिया जाता है, किन्तु एक ही फॉन्ट अलग-अलग क्रमशयों में अलग-अलग नामों से जानी जा सकती है। जिस तरह से अलग-अलग अक्षरों को मिलाकर शब्द बनते हैं, उसी प्रकार बिट्स को मिलाकर कम्प्यूटर के शब्द बनाये जाते हैं। इन कम्प्यूटर बर्ड्स में बिट्स की संख्या अलग-अलग कम्प्यूटर में अलग-अलग होती हैं। कोई कम्प्यूटर आठ विट के शब्द लेता है तो कोई 16 बिट के और कोई 32 बिट के इस तरह अलग-अलग विट पैटर्न के अलग-अलग अंकों और अक्षरों के कोड्स तैयार किये जाते हैं। अक्षर का आकार कितना बड़ा होना चाहिये, यह हम फॉन्ट साइज में सेट कर सकते हैं। फॉन्ट साइज को प्वाइंट में नापा जाता है। एक इंच में 72 प्वाइंट होते हैं। इस आधार पर हम फॉन्ट की ऊँचाई सेट करते हैं। फारमेट टूल बार के ड्राप डाउन से Menu से साइज सिलेक्ट कर किसी टेक्स्ट के आकार को परिवर्तित किया जा सकता है। फारमेट टूल बार के ड्राप डाउन Menu में 8 से 72 तक प्वाइंट रहते हैं। सामान्यतः हम इसी का उपयोग करते हैं। जब कोई भी स्टाइल नहीं है, तब इसे रेग्युलर फॉन्ट कहा जाता है। बोल्ड स्टाइल सेट करने से वह वाक्य हाइलाइटेड दिखाई देगा। इटालिक सेट करने से वाक्य किंचित झुका हुआ रहेगा। यह कार्य फारमेटिंग टूल बार के माध्यम से भी हो सकता है।

 

 प्रश्न-10. यूनिकोड क्या है?

 

उत्तर-- कम्प्यूटर, मूल रूप से, नम्बरों से संबंध रखते हैं। ये प्रत्येक अक्षर और वर्ण के लिए एक नंबर निर्धारित करके अक्षर और वर्ण संग्रहित करते हैं। यूनिकोड का आविष्कार होने से पहले ऐसे नंबर देने के लिए सैकड़ों विभिन्न संकेत लिपि प्रणालियाँ थीं किसी एक संकेत लिपि में पर्याप्त अक्षर नहीं हो सकते हैं- उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ को अकेले ही, अपनी सभी भाषाओं को कवर करने के लिए अनेक विभिन्न संकेत लिपियों की आवश्यकता होती है अंग्रेजी जैसी भाषा के लिए भी, सभी असरों, विराम चिन्हों और सामान्य प्रयोग के तकनीकी प्रतीकों हेतु एक ही संकेत लिपि पर्याप्त नहीं थी ।

 

ये संकेत लिपि प्रणालियों परस्पर विरोधी भी हैं इसीलिए दो संकेत लिपियाँ दो विभिन्न अक्षरों के लिए, एक ही नम्बर प्रयोग कर सकती हैं, अथवा समान अक्षर के लिए विभिन्न नंबरों का प्रयोग कर सकती हैं। किसी भी कम्प्यूटर (विशेष रूप से सर्वर) को विभिन्न संकेत लिपियाँ सँभालनी पड़ती हैं। फिर भी जब दो विभिन्न संकेत लिपियों अथवा प्लेटफॉमों के बीच डाटा भेजा जाता है तो उस डाटा के हमेशा खराब होने का जोखिम रहता है।

 

यूनिकोड की विशेषताएँ- ये निम्नवत् हैं-

(1) यह विश्व की सभी लिपियों से सभी संकेतों के लिए एक अलग कोड-बिन्दु प्रदान करता है।

(2) यह वर्णों (कैरेक्टर्स) को एक कोड देता है, न कि ग्लिफ (glyph) को।

(3) जहाँ भी संभव यूनिकोड होता है, यह भाषाओं का एकीकरण करने का प्रयत्न करता है। इसी नीति के तहत सभी पश्चिम यूरोपीय भाषाओं को लैटिन के अन्तर्गत समाहित किया गया है। सभी स्लाविक भाषाओं को सिरिलिक के अन्तर्गत रखा गया है। हिन्दी संस्कृत, मराठी, नेपाली, सिंधी, कश्मीरी आदि के लिए देवनागरी नाम से एक ही ब्लॉक दिया गया है। चीनी, जापानी, कोरियाई, वियतनामी भाषाओं को युनिहान नाम से एक ब्लॉक में रखा गया है। अरबी, फारसी, उर्दू आदि को एक ही ब्लॉक में रखा गया है।

(4) बाएँ से दाएँ लिखी जाने वाली लिपियों के अतिरिक्त दाएँ से बाएँ लिखी जाने वाली लिपियाँ (अरबी, हिब्रू आदि) को भी इसमें शामिल किया गया है। ऊपर से नीचे की तरफ लिखी जाने वाली लिपियों का अभी अध्ययन किया जा रहा है।

(5) यह ध्यान रखना जरूरी है कि यूनिकोड केवल एक कोड-सारणी है। इन लिपियों को लिखने/पढ़ने के लिए इनपुट मेथड एडिटर ओर फॉण्ट फाइलें जरूरी हैं। यूनिकोड का महत्व और लाभ- ये निम्नवत् हैं-

(1) एक ही दस्तावेज में अनेकों भाषाओं के टेक्स्ट लिखे जा सकते हैं।

(2) टैक्स्ट को केवल एक निश्चित तरीके से संस्कारित करने की आवश्यकता पड़ती है। जिससे विकास खंड एवं अन्य व्यय कम हो जाते हैं।

(3) किसी सॉफ्टवेयर उत्पाद का एक ही संस्करण पूरे विश्व में चलाया जा सकता है। क्षेत्रीय बाजारों के लिए अलग से संस्करण निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती। (4) किसी भी भाषा का टेक्स्ट पूरे संसार में बिना भ्रष्ट हुए चल जाता है। पहले इस प्रकार की अनेक समस्याएँ आती थीं।

 

हानियाँ- यूनिकोड, आस्की तथा अन्य कैरेक्टर कोडों की अपेक्षा अधिक स्मृति (मेमोरी) लेता है। कितनी अधिक स्मृति लगेगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कौन सा यूनिकोड प्रयोग कर रहे हैं ? UTF7, UTF8, UTF16 या वास्तविक यूनिकोड - एक अक्षर अलग-अलग बाइट प्रयोग करते हैं।

 

देवनागरी यूनिकोड

 

मुख्य लेखः देवनागरी यूनिकोड खंड-

 

(1) देवनागरी यूनिकोड की परास (रेंज) 0900 से 097F तक है। (दोनों संख्याएँ षोडषाधारी हैं) (2) क्ष, त्र एवं ज्र के लिये अलग से कोड नहीं हैं। इन्हें संयुक्त वर्ण मानकर अन्यसंयुक्त वर्णों की भांति इनका अलग से कोड नहीं दिया गया है।

(3) इस रेंज में बहुत से ऐसे वर्णों के लिये भी कोड दिये गये हैं जो सामान्यतः हिन्दी में प्रयोग नहीं होते। किन्तु मराठी, सिन्धी, मलयालम आदि को देवनागरी में सम्यक ढंग से लिखने के लिये आवश्यक है।

(4) नुक्ता वाले वर्णों (जैसे ज़) के लिये यूनिकोड निर्धारित किया गया है। इसके अलावा नुक्ता के लिये भी अलग से एक यूनिकोड दे दिया गया है। अतः नुक्तायुक्त अक्षर यूनिकोड की दृष्टि से दो प्रकार से लिखे जा सकते हैं- एक बाइट यूनिकोड के रूप में या दो बाइट यूनिकोड के रूप में। उदाहरण के लिये ज को ज़ के बाद नुक्ता (०) टाइप करके भी लिखा जा सकता है।

 

यूनिकोड कन्सॉर्शियम- यूनिकोड कॉन्सॉर्शियम, एक लाभ न कमाने वाला एक संगठन है जिसकी स्थापना यूनिकोड स्टैंडर्ड, (जो कि आधुनिक सॉफ्टवेयर उत्पादों और मानकों में पाठ की प्रस्तुति को निर्दिष्ट करता है) के विकास, विस्तार और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इन कन्सोर्शियम का खर्च पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से किया

जाता है। यूनिकोड कन्सोर्शियम में सदस्यता, विश्व में कहीं भी स्थित उन संगठनों और व्यक्तियों के लिए खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके विस्तार और कार्यान्वयन में सहायता करना चाहते हैं।

 

प्रश्न-11. हिन्दी के आधुनिक सॉफ्टवेयर टूल्स पर प्रकाश डालिये। अथवा हिन्दी भाषा के लिये उपयुक्त सॉफ्टवेयर टूल्स के बारे में संक्षिप्त जानाकारी दीजिये।

उत्तर- हिन्दी भाषा में उपयोग किये जाने वाले सॉफ्टवेयर टूल्स निम्नांकित हैं-

 (1) यूनिकोड फॉर देवनागरी ISCII द्वारा प्रतिपादित यूनिकोड टूल मुख्यतः देवनागरी के लिए बनाया गया है जो कि window 98 के लिए सबसे सही है क्योंकि यह सबसे पुराना तथा साधारण प्रोग्राम है। इनमें एक अन्य सॉफ्टवेयर उपलब्ध है जो कि निम्नलिखित है-

 

सुगम 98 यह यूनीकोड को ओर भी सरल तथा उत्तम सॉफ्टवेयर है जिसके मुख्य तत्

(a) Akhil HE (b) अखिल (Akhil)

(c) I नागरी-98 (जिसे पहले ट्रान्सलिट-98 कहा जाता था)

(d) In टिकट-98

 

(2) लिंग को सॉफ्ट टॉकिंग डिक्शनरी-2010 यह इंग्लिश हिन्दी डिक्शनरी विंडोज हेतु बनाई गई है। यह अत्यन्त सुविधाजनक तथा सही परिणाम देने वाली हैं। इसका उपयोग हिन्दी में वार्तालाप, बोलने तथा अनुवाद हेतु किया जाता है जिसमें हम 1,000,000 एन्ट्रीज कर सकते हैं दो भाषा को सीखने तथा सिखाने वाले तथा अनुवाद करने वाले इस सॉफ्टवेयर से हम कहीं भी, कभी भी अंग्रेजी से हिन्दी तथा हिन्दी से अंग्रेजी सीख सकते हैं।

 

(3) लेखनी: सर्वप्रथम लेखनी 2.1 का वर्जन बाजार में उपलब्ध हुआ जिसे कि विंडोज 95 के लिए निर्मित किया गया था परन्तु अब इसका अत्याधुनिक वर्जन लेखनी 3.0 उपलब्ध है जो कि यूनीकोड पर आधारित एक बहुभाषायी सम्पादक (multilingual editor) है जिससे हम हिन्दी से अनेक भाषायें तथा अन्य भाषाओं से हिन्दी लिखनी, पढ़नी बोलनी तथा अनुवाद करनी सीख सकते हैं।

 

(4) लिपिकारः यह हिन्दी भाषा के सॉफ्टवेयर टूल्स का सबसे सुगम, समझने में सरल तथा उपयुक्त टूल है। इसमें हिन्दी को टाइप करना सीखने की आवश्यकता नहीं होती। जो भी शब्द हम सोचते हैं उसे अंग्रेजी में टाइप करते हैं। वह कुछ ही सेकण्ड में हिन्दी में टाइप किया जा सकता है।

 

यह सॉफ्टवेयर इंटरनेट, Windows-7, Vista, XP, MS Office, Windows desktop application के लिए अति उपयोगी है। हिन्दी भाषा के लिपिकार firefox से हम email, blog, scrape, कमेंट, chat तथा search जैसे कार्य आसानी से कर सकते हैं। लिपिकार 18 भाषाओं में उपलब्ध है- अरेवियन असमी, बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोकंणी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलगू, उर्दू ।

 

(5) इंग्लिश टू हिन्दी करेक्टर कनवंटर 9.0 : यह बहुत अच्छा हिन्दी सॉफ्टवेयर टूल है जो कि Windows-98, Me, 2000, XP, Vista, NT के लिए उपयोगी है।

 

(6) मल्टी आइकनः यह एक इंग्लिश टू हिन्दी करैक्टर कन्वर्टर सॉफ्टवेयर है। यह इस प्रकार कार्य करता है कि जैसे हम हिन्दी में बात करते हैं उसी प्रकार यह हिन्दी भाषा में टाइप करने हेतु काम आता है। इसे ऑफिस में तथा व्यक्तिगत कार्य करने के लिए उपयुक्त है। यदि आप हिन्दी में पत्र लिखने के इच्छुक हैं परन्तु हिन्दी की टाइपिंग नहीं जानते तो यह सॉफ्टवेयर आपका सहायक बन सकता है। इसमें Real time help, Keyboard help, MS Word सुविधाएँ भी मिलती हैं।

 

श्न 12. स्लाइड क्या है? समझाइये।

उत्तर- पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन स्लाइड्स की एक श्रृंखला से बना है। स्लाइड में वह जानकारी होती है जो हम अपने दर्शकों को पेश (प्रस्तुत करते हैं। इसमें टेक्स्ट, चित्र, टेवल और चार्ट शामिल हो सकते हैं। स्लाइड प्रजेंटेशन की एक स्क्रीन होती है, और प्रत्येक प्रजेंटेशन कई स्लाइडों से बना है। विषय-वस्तु के आधार पर, संदेश प्रस्तुत करने के लिए सर्वोत्तम प्रजेंटेशन में 10 से 12 स्लाइड्स हो सकती हैं, लेकिन जटिल विषयों के लिए अधिक आवश्यकता हो सकती है। स्लाइड के समूह को स्लाइड डेक के रूप में जाना जा सकता है। एक स्लाइड शो इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस या प्रोजेक्टर स्क्रीन में स्लाइड्स या इमेज की श्रृंखला को प्रदर्शित किया जाता है।

 

स्लाइड और स्लाइड लेआउट को समझना जब हम एक नई स्लाइड डालते हैं, तो आमतौर पर प्लेसहोल्डर्स होते हैं। प्लेसहोल्डर में टेक्स्ट और इमेजेज सहित विभिन्न प्रकार की सामग्री हो सकती है। कुछ प्लेसहोल्डर्स में प्लेसहोल्डर टेक्स्ट होता है, जिसे हम अपने टेक्स्ट से बदल सकते हैं अन्य में थंबनेल आइकन होते हैं जो हमें चित्र, चार्ट और वीडियो डालने की अनुमति देते हैं। हमारे द्वारा शामिल की जाने वाली जानकारी के प्रकार के आधार पर स्लाइड्स में प्लेसहोल्डर के लिए अलग-अलग लेआउट होते हैं। जब भी हम एक नई स्लाइड बनाते हैं, तो हमें अपनी सामग्री फिट करने वाला एक स्लाइड लेआउट चुनना होता है।

 

प्रश्न-13. PPT का फुल फॉर्म बताइये तथा इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर- PPT का फुल फॉर्म तथा हिन्दी में अर्थ- PPT का फुल फॉर्म होता है. है पॉवर पॉइन्ट प्रजेन्टेशन Presentation ये एक प्रसिद्ध कंपनी माइक्रोसॉफ्ट का सॉफ्टवेयर है। ऑफिस और कुछ अन्य क्षेत्रों के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने MS Office नाम का उपयुक्त Suite बनाया जिससे कई क्षेत्रों के कार्य आसान हो गये।

इसमें PPT के अलावा EXCEL और WORD आदि जैसे महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर भी शामिल हैं। PPT एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिसका उपयोग ऑफिस तथा शिक्षात्मक क्षेत्र और व्यापार क्षेत्र आदि में बनाये गये प्रोजेक्ट को present यानी प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है।

 

सरल भाषा में कहें तो इसका उपयोग विशेषतः प्रोजेक्ट प्रजेन्टेशन के लिए होता है। इसमें हम text के अलावा पिक्चर्स और वीडियो भी शामिल कर सकते हैं। इसकी मदद से हम एक उच्च स्तरीय प्रजेन्टेशन दे सकते हैं।

PPT की विशेषताएँ- ये निम्नवत् हैं-

(1) स्लाइड - Slide हमारे notebook के पन्नों की तरह होते हैं। जैसे हम एक पन्ने का काम होने पर दूसरे पन्ने पर काम शुरू करते हैं, slide का उपयोग भी कुछ हद तक ऐसा ही होता है।

(2) डिजाइन टेम्पलेट डिजाइन टेम्पलेट हमारे प्रजेन्टेशन को सुन्दर बनाता है। इसमें अनेक प्रकार के डिजाइन वाले टेम्पलेट उपलब्ध होते हैं।

(3) एनीमेशन एनीमेशन का प्रयोग कर हम अपने प्रजेन्टेशन को विशेष (यूनिक) बना सकते हैं। एनीमेशन का उपयोग हम text, image आदि, जैसे प्रत्येक घटकों पर सभी प्रकार के effect लगाकर कर सकते हैं।

(4)picture इसमें हम picture/Image पर्याय का प्रयोग करके हमारे प्रजेन्टेशन में Clip art और कम्प्यूटर/लैपटॉप या फोन में save किये गये pictures का उपयोग कर सकते हैं।

(5) वीडियो हम अपनी स्लाइड में presentation के हिसाब से कोई भी वीडियो जोड़ सकते हैं। (6) आकृतियाँ- हमें इसमें लगभग सारे shapes यानी आकृतियाँ उपलब्ध होती हैं । जिसमें grows, rectangle, triangle, & circle + आदि का समावेश होता है। -

(7) इंजीशन Transition का उपयोग स्लाइड्स को बेहतर और आकर्षक बनाने के लिए किया जाता है। एक स्लाइड से दूसरे स्लाइड में जाते समय जो effect दिया जाता है उसे transition कहते हैं। हम हर अलग-अलग स्लाइड्स को अलग- अलग effect दे सकते हैं लेकिन एक स्लाइड पर एक ही effect लगाने की सीमा होती है।

 

प्रश्न-14. पॉवर पॉइंट (PowerPoint) का क्या महत्व है? समझाइये।

उत्तर- हमें किसी कंपनी या अपने स्वयं के लिए कोई कम्प्यूटर के अन्दर कोई प्रजेंटेशन प्रोजेक्ट बनाना होता है तो यह कार्य PowerPoint के द्वारा सम्पन्न किया जाता है क्योंकि PowerPoint में किसी भी प्रकार की कोई भी प्रजेंटेशन को आसानी से बनाया जा सकता है। इसलिए प्रजेंटेशन प्रोजेक्ट बनाने के PowerPoint का अत्याधिक महत्व है। आज बड़ी से बड़ी कंपनी में बड़े से बड़े प्रोजेक्ट को लोगों या विश्व के सामने प्रजेंट करने के लिए PowerPoint का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। यही नहीं स्कूल से लेकर अन्य सभी विभागों में छोटे से लेकर बड़े प्रोजेक्ट को PowerPoint के माध्यम से बनाया जाता है।

 

PowerPoint के अन्दर ऐसे टूल और फंक्शन उपलब्ध हैं जिनका उपयोग करके यूजर बड़ी से बड़ी प्रजेंटेशन को आसानी से बना सकता है। इसलिए किसी भी कार्य क्षेत्र में जब प्रजेंटेशन प्रोजेक्ट की बात आती है तब-तब कम्प्यूटर में PowerPoint का उपयोग किया जाता है। विश्व के प्रत्येक कार्य क्षेत्र में PowerPoint का अत्याधिक महत्व है। कम्प्यूटर के अन्दर PowerPoint को अलग से इन्स्टॉल करने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि यह MS Office का एक हिस्सा है। यदि हमारे कम्प्यूटर में MS Office इन्स्टॉल है तो अनिवार्य रूप से हमारे कम्प्यूटर में PowerPoint इन्स्टॉल रहता है।

 

प्रश्न-15. हिन्दी शार्ट हैण्ड (आशुलिपि) के आशय तथा इसके विकासक्रम का वर्णन करते हुए इसके महत्व का विवेचन कीजिए।

अथवा

आशुलिपि क्या है? इसका अर्थ तथा महत्व का वर्णन कीजिए।

 उत्तर- हिन्दी] शार्ट हैण्ड आशुलिपि का अर्थ आशुलिपि दो शब्दों से मिलकर बना है-

 

आशु और लिपि आशु का अर्थ है- संक्षिप्त रूप में एवं लिपि का अर्थ है लिखना अतः आशुलिपि किसी भी भाषा को तीव्र गति से संक्षिप्त रूप में लिखने की एक कला है। ध्वनि के आधार पर तीव्र गति से बोली गई भाषा को रेखागणितीय आधार पर रेखाओं द्वारा लिखकर उसे पढ़ने एवं उसका पुनः उसी भाषा में लिप्यांतरण करने की कला को आशुलिपि कहा जाता है जिस प्रकार हिन्दी भाषा सीखने के लिए पहले उसकी व्यंजन रेखाओं जैसे- क, ख, ग, घ, आदि को सीखा जाता है, ठीक उसी प्रकार हिन्दी भाषा में आशुलिपि सीखने के लिए पहले उसकी व्यंजन रेखाओं के लिए रेखाक्षरों को बनाना सीखा जाता है। आशुलिपि का विकास- हिन्दी आशुलिपि का इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है। 19वीं शताब्दी के अन्त में भारत में ब्रिटिश शासन के विरूद्ध असंतोष व्यापक रूप धारण कर चुका था। उस समय देश में राष्ट्रीय नेता ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध हिन्दी में भाषण देते थे। राष्ट्रीय नेताओं की प्रेरणा पर काशी नागरिक प्रचारिणी सभा द्वारा पहली बार हिन्दी आशुलिपि की एक पुस्तक 1907 ईस्वी में प्रकाशित हुई। इसके उपरान्त धीरे-धीरे अन्य आशुलिपि की पुस्तकें भी लिखी गई। अंग्रेजी शासकों को भारतीय राजनीतिक विद्रोहियों की गतिविधियों की जानकारी लेने हेतु अपने गुप्तचरों को हिन्दी आशुलिपि का प्रशिक्षण देने की आवश्यकता महसूस हुई। इसलिए अंग्रेजी शासकों ने लखनऊ के क्रिश्चियन स्कूल ऑफ कॉमर्स में हिन्दी आशुलिपि सिखाने की व्यवस्था की। इस स्कूल में हिन्दी आशुलिपि सिंह प्रणाली पुस्तक के द्वारा सिखाई गई। इसी प्रकार इलाहाबाद के श्री ऋषि लाल अग्रवाल ने भी एक हिन्दी आशुलिपि पुस्तक लिखी जो ऋषि प्रणाली के नाम से जानी गई। तब से लेकर भारत के स्वतंत्र होने तक यही दो प्रणालियों चलती रहीं शासन में हिन्दी आशुलिपि की उपयोगिता न होने से इसे बढ़ावा नहीं मिला राष्ट्रीय सरकार के गठन के बाद पहली बार 1946 ईस्वी में सेंट्रल लेजिस्लेटिव काउंसिल में चार हिन्दी आशु लेखकों की नियुक्ति हुई और हिन्दी आशुलिपि को प्रोत्साहन मिला। आजादी के बाद हिन्दी को राजभाषा का स्थान प्राप्त होने से कई आशुलिपि की पुस्तकें लिखी गई जिनमें पिटमैनं त्वरालेखन, हिन्दी -आशुलिपि एवं नागरी आशुलिपि आदि हैं। ये सभी पुस्तकें पिटमैन सिद्धान्त के आधार पर लिखी गई थीं। इसके उपरान्त मानक आशुलिपि एवं नवीन आशुलिपि पद्धतियाँ सामने आई जो सिंह प्रणाली के आधार पर विकसित हुई। आशुलिपि के तीन अभिन्न अंग हैं- श्रुतलेख लिखना, लिप्यांतरण करना एवं टंकण करना। आशुलिपि एक कला है जिसमें मुख्य रूप से तीन प्रकार के कौशल को शामिल किया जाता है।

(1) सुनने की कला भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों के उच्चारण को समझने की क्षमता

 (2) मानसिक कौशल- आउट-लाईन को याद रखना, शब्दों को पहचानना तथा तीव्र गति से बोले गए शब्दों को लिखना ।

(3) मैनुअल कौशल (हाथ से लिखने की कला) - श्रुतलेख के दौरान पेन, पेन्सिल एवं नोटबुक आदि को पकड़ने की कुशलता एवं श्रुतलेख को टंकण करना। आशुलिपि का महत्व यक्ता के भाषणों को लिपिबद्ध कर उनका भाषा लिपि में सही प्रतिलेखन करना आशुलिपिकों के द्वारा ही संभव है क्योंकि इसमें भाषा ज्ञान एवं विवेक की आवश्यकता होती है जिसकी तुलना मशीन में नहीं की जा सकती। उद्योग और व्यवसाय के बढ़ने से आशुलिपिकों की मांग दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है। यह एक ऐसा निश्चित ज्ञान है जिसके द्वारा शीघ्र तथा आकर्षक रोजगार उपलब्ध हो सकता है। आशुलिपि के महत्व को निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर समझा जा सकता है-

 

(1) शब्दों को पूर्ण रूप से लिखने के बजाए आशुलिपि में रेखाओं के द्वारा तीव्र गति से लिखा जा सकता है।

(2) इसके द्वारा अधिकतर लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

(3) इसके द्वारा समय और ऊर्जा की बचत होती है।

(4) मस्तिष्क में अचानक आए विचारों को तुरंत लिखा जा सकता है।

(5) इसके द्वारा गोपनीयता को बनाए रखा जा सकता है।

(6) आशुलिपि का विस्तृत क्षेत्र है इसका प्रयोग न केवल भाषणों को लिखने के लिए किया जाता है, बल्कि किसी भी प्रकार के पत्र-व्यवहार व दूसरे दस्तावेजों को लिखने के लिए भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त रेडियो और टेलीविजन के द्वारा प्रसारित समाचार आदि को तीव्र गति से लिखने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

 

प्रश्न- 16. वेब पब्लिशिंग या वेव पेज बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये एवं लिंक क्या है? समझाइये।

 

उत्तर- आजकल अपना साधारण वेबसाइट अथवा वेब पेज की होस्टिंग के लिये मुफ्त वेब स्पेस प्राप्त करना काफी आसान हो गया है। इस मुफ्त के वेब सर्वर पर रखा जाने वाला यह वेब पेज किसी छोटे व्यवसाय के लिये हो सकता है या आपके विचारों को अन्य लोगों तक पहुँचाने का एक मन्त्र साधन हो सकता है। यही नहीं आप अपना बायोडाटा अन्य लोगों को देखने के लिये वेब पेज पर दे सकते हैं। इसे करने के लिये पेशेवर कार्यकर्त्ता होने की आवश्यकता नहीं है। यह काम आप स्वयं भी कर सकते हैं।

 

आजकल इन्टरनेट पर वेब पेज बनाने वाले कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं। इसमें से कई व्यावसायिक स्तर पर भी उपयोग में लिये जा रहे हैं। जैसे माइक्रोसॉफ्ट का फ्रंटपेज वेब पेज बनाने की प्रक्रिया के व्यवहार को हम शब्दों से समझने का प्रयास करते हैं।

 एक नया और जालान पेज- आजकल उपलब्ध नवीनतम और सर्वश्रेष्ठ वेब आयरिंग टूल्स में एक है- माइक्रोसॉफ्ट फ्रंट पेज इस सॉफ्टवेयर के साथ प्राप्त होने वाली विजाईस के द्वारा नया यूजर भी वेब पेज आसानी से बना सकता है। बिजाई द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देते हुये कुछ ही मिनटों में वेब पेज तैयार होगा। वेब पेज का कस्टमाइजह भी किया जा सकता है, सर्वप्रथम फ्रंट पेज को आरम्भ कीजिये ।फाइल न्यू पर क्लिक कीजिये। फ्रंट पेज द्वारा उपयोग में आने वाली विजार्ड्स और टेम्पलेट्स की सूची आपको दिखाई देगी। इनमें से नॉर्मल पेज पर क्लिक कर OK पर क्लिक करें। आपकी इस विण्डो में एक खाली पेज प्रकट होगा जैसा कि सामने वर्ड प्रोसेसरों में दिखाई देता है। टाइटल ईसर्ट करना किसी भी वेब पेज का प्रथम और महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। इसकी हैडिंग और 1 को अथवा अन्य किसी भी स्टाइल को चुन लीजिये। इस वेब पेन का स्टाइल दर्शाने के लिये इस पेज पर राइट क्लिक कीजिये और मीनू में से पेज प्रॉपर्टीज कीजिये। पेज प्रॉपर्टीज डायलॉग बॉक्स में टाइटल बॉक्स में उचित टाइटल कर OK पर क्लिक कीजिये।

 

इमेज और एनीमेशन का समावेश- यह पेज जिस पर केवल टैक्स्ट ही उपलब्ध हो एक अच्छा पेज नहीं माना जा सकता है। इमेज और एनीमेशन स्वयं तैयार करके लगानी चाहिये। नेट से डाउट लोड करके भी इनका उपयोग किया जा सकता है। इसके बाद आपको इमेज और एनीमेशन इंसर्ट करने के लिये मीनू क्लिक करना होगा। इसके बाद एक विण्डो खुलेगी जिसमें कई फील्ड उपलब्ध होंगी जिसमें से लोकेशन और यू आर फील्ड में आपको उस एनीमेशन या इमेज का एड्रेस देना होगा।

 

बुक मार्क बनायें- कभी-कभी आवश्कयता पड़ने पर वर्तमान पेज के किसी खण्ड को क्लिक करने की आवश्यकता होती है। इसके लिये पहले उस खण्ड पर बुक मार्क बनाया जाता है। इसके लिये उस खण्ड विशेष को स्लेक्ट करें और एडिट मीनू से बुक मार्क पर क्लिक कीजिये, आपके समक्ष खुले बुक मार्क डायलॉग बॉक्स में इस बुक मार्क के लिये उचित नाम प्रदान कीजिये और OK पर क्लिक कीजिये।

 

विभिन्न पेजों को लिंक कीजिये एक ऐसा पेज जिस पर भारी मात्रा में कंटेन्ट हो, देखने में नीरस होंगे। इसे लोड लेने में अधिक समय लगेगा इसलिये अपनी वेबसाइट में छोट-छोटे वेब पेज बनाना अधिक उपयोगी होता है। इन पेजों को आपस में जोड़ने के लिये आपस में लिंक बनाये जाते हैं जिन्हें 'हाइपर लिंक' के नाम से जाना जाता है। लिंक का उपयोग एक ही पेज के कई हिस्सों में किया जाता है। लिंक बनाने के लिये उस स्थान पर कर्सर लाइये जहाँ हाइपर लिंक बनाना है, ये मेल एड्रेसों के लिये समय-समय पर काम आते हैं।

 

प्रश्न-17. नेट सर्फिंग (ई-मेल के आदान-प्रदान) का वर्णन कीजिये।

उत्तर- इण्टरनेट आपस में जुड़े नेटवर्कों का जाल है। अक्सर वर्ल्डवाइड वेब (WWW) को इण्टरनेट समझ लिया जाता है। वास्तव में यह दस्तावेजों का समूह है जो आपस में जुड़े इन नेटवर्कों पर पेज के रूप में सामने आता है। जिन पेजों को इण्टरनेट पर डाल दिया जाता है उसमें सचित्र, लिखित ध्वनि एवं महत्वपूर्ण एच.टी. एमाल रूप में तैयार दस्तावेज होते हैं, जिसमें आपको दूसरे दस्तावेजों में जाने की सुविधा मिलती है। ब्रिटेन के किसी शहर से कम्प्यूटर नेटवर्क डाले गये किसी दस्तावेज जो जापान या दतिया शहर से डाले गये दस्तावेजों से जोड़ा जा सकता है। वर्ल्ड वाइड वेब सूचनाओं का एक विशाल भण्डार है। इसमें कंपनी पेशेवर व्यापारिक, शैक्षिक और मनोरंजन सामग्री होती है। वेब पर डाली गई किसी सूचना तक दुनियाँ के किसी कम्प्यूटर टर्मिनल से पहुँचा जा सकता है। यशर्ते वह टर्मिनल एक समान प्रोटोकाल (संचार माध्यम) के माध्यम से जुड़ा हो। प्रश्न यह उठता है कि सही प्रोटोकॉल के बाद इण्टरनेट से काम की सूचना कैसे निकाली जाये ?

वेब ब्राउजर इण्टरनेट के सचित्र भाग WWW तक पहुँचने के लिये जिस सॉफ्टवेयर की जरूरत पड़ती हैं उसे ब्राउजर या खोजक कहते हैं। इससे आप उन वेब पेजों को देख सकते हैं जिनमें लिखित सामग्री, ग्राफिक्स (चित्र), ध्वनि या वीडियो (दृश्य) होते हैं। सबसे पहला ब्राउजर 1990 के दशक के आरम्भ में नेशनल सेण्टर फॉर सुपर कम्प्यूटिंग एप्लिकेशंस ने बनाया था जिसका नाम NCSA MOSAIC था। इन ब्राउजरों के निशान व क्लिक इण्टरेफेसों ने वेब को लोकप्रिय बनाने में बहुत मदद की है। आजकल दो सबसे लोकप्रिय ब्राउजर माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नेविगेटर हैं ये दोनों एन.सी.एस.ए. जौनेक की बुनियादी अवधारणा पर आधारित हैं।

 

माइक्रोसॉफ्ट इण्टरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नेवीगेटर दोनों में बहुत-सी खूबियां. हैं। इनकी बुनियादी बातों को बहुत कम समय में सीखा जा सकता है। इसकी उन विशेषताओं को खाली समय में देखा और सीखा जा सकता है। दोनों खोजक में कुछ समानतायें और कुछ अन्तर भी हैं। इन्हीं अन्तरों को लेकर दोनों कम्पनियों के बीच बाजार फैलाने की होड़ चल रही है। कम्प्यूटर को इण्टरनेट कनेक्शन से जोड़ने के बाद ब्राउजर को चालू करते ही वह डिफॉल्ट (अर्थात् पूर्वनिधारित ढंग) से एक खास वेबसाइट में आपके पास विकल्प है कि आप चाहें तो इस डिफॉल्ट के शुरूआती पेज को बदल सकते हैं। नेट स्केप नेविगेटर में EDIT | PREFERENCES पर क्लिक करके किया जा सकता है। अब डिफाइल्ट पेड बॉक्स में उस साइट का पता टाइप करें, जिसे आप शुरूआत के साथ चालू करने के लिये भरना चाहते हैं। इसके बाद नेवीगेटर स्टार्ट विद खण्ड के अन्तर्गत होम पेज आइकॉन के आगे क्लिक करें और फिर OK बटन पर क्लिक करें। टूल बार में होम बटन पर क्लिक करने से आप डिफाल्ट होम पेज पर पहुँच जायेंगे।

 

इण्टरनेट एक्सप्लोरर के उपयोग के समय पहले अपनी पसंद की वेब का पता टाइप करें और फिर व्यू इण्टरनेट विकल्प पर क्लिक करें फिर जनरल टैब के अन्तर्गत न्यूज करैण्ट विकल्प पर क्लिक करें खोज के की खिड़की के दायीं तरफ स्थित रेखाचित्र से बनी छवि यह संकेत देती है कि ब्राउजर सर्वर दूर स्थित कम्प्यूटर से आँकड़ों को प्राप्त कर रहा है। जब छवि में रेखाचित्रण नहीं हो रहा हो तो यह इस बात का संकेत है कि सूचना प्राप्त की जा चुकी है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सर्वर नामक कम्प्यूटर कहाँ है? यह विदेश में है या अपने देश, प्रदेश या पड़ोस में है। ब्राउजर उसमें से फाइलों को आपके कम्प्यूटर में उतार देता है ये आपके कम्प्यूटर की स्क्रीन पर दिखाई देती हैं यह काम कितनी तेजी से होगा यह आपके मोडम की गति, आपके सेवा प्रदाता के मोडम की गति पर निर्भर करता है। जिन फाइलों को आप उतार रहे हैं उनके आकार और उस समय इण्टरनेट पर यातायात की स्थिति पर निर्भर करता है। खोजक खिड़की के नीचे बनी स्थिति रेखा पर जिन फाइलों को आप उतार रहे हैं उनके उतरने की प्रगति एवं उनके आकार, साइट के जिस पते पर आपने संपर्क किया है, दिखती रहती है। जिससे फाइल लेना है उससे सम्पर्क हुआ या नहीं यह भी दिखाता रहता है। ब्राउजर की खिड़की के ऊपर औजार यानी टूलबार बने रहते हैं। काम के चिन्हों- बटनों की यह एक पंक्ति है। यह नेट पर यात्रा करने और आप कहाँ तक पहुँचे हैं इसका हिसाब-किताब रखने में आपकी मदद करता है। नेट स्केप नेवीगेटर और इण्टरनेट

एक्सप्लोरर के टूल बार में थोड़ा अन्तर है। बैक बटन आपको लौटाकर पहले पेज में ले जाता है जहाँ से गुजरते हुये आप वर्तमान पेज में पहुंचे हैं।

 

फारवर्ड बटन- अगर आप पीछे लौट गये हैं तो इस बटन का इस्तेमाल करके जहाँ से लौटे हैं उस पेज को फिर से उतार सकते हैं। होम बटन- आपने जिस किसी होम पेज का चयन किया है यह वहाँ तक आपको ले जाता है। यदि आपने किसी पेज का चयन नहीं किया है तो यह आपको डिफाल्ट होम पेज यानी माइक्रोसॉफ्ट या नेट स्केप के वेबसाइट में पहुँचा देगा। रिलोड या रिफ्रेश बटन- यह वर्तमान पेज को फिर से उतार देता है। सर्व बटन यह ब्राउजर के उस पेज से आपको जोड़ देता है जिसमें इण्टरनेट एक्सप्लोरर में मौजूद अनेक इण्टरनेट डायरेक्ट्रयां और संसाधनों का पता है। प्रिंट बटन- यह आपके ब्राउजर में उतर कर मौजूदा दस्तावेज की छपाई की सुविधा प्रदान करता है।

 

स्टाप - यह बटन वर्तमान पेज को उतारने से ब्राउजर को रोक देता है। नेटस्केप नेविगेटर में कुछ खास सुविधायें हैं, जो माइक्रोसॉफ्ट इण्टरनेट एक्सप्लोरर में नहीं हैं। माई नेट स्केप बटन आपको नेट स्केप नेट सेण्टर के खास वेब पेज में ले जाता है। इण्टरनेट में लिखित सामग्री फौरन आपके सिस्टम में उतर जाती है, वहीं तस्वीरों के उतारने के समय गति धीमी हो जाती है। इस गति को बढ़ाने की दो विधियों है- सफर वेबसाइटों का बहुत से लोगों के लिये इण्टरनेट और www दोनों एक ही चीज हैबुनियादी तौर पर देव इण्टरनेट का एक हिस्सा है जहाँ वेब आइकॉनों पर सूचनायें एक साथ ली जाती हैं।

 

वेब ठिकानों का सफर- वेबसाइट पर हम निम्न तरीकों से जा सकते हैं-

 (1) पहले एक प्रोग्राम की आवश्यकता होती है इसे वेब ब्राउजर कहते हैं। विण्डोज 95 या 98 के प्रयोगकर्ता के पास पहले से लगा इण्टरनेट एक्सप्लोरर होता है। इसको पीसी के डेस्कटॉप पर बने इसके आइकॉन को क्लिक करना होता है।

 

(2) यदि वेब ब्राउजर खोलने के बाद इण्टरनेट पर आपका कनेक्शन नहीं हो पाता है तो आप डायल अपने नेटवर्किंग फोल्डर (यह माइ कम्प्यूटर में होता है) में जाकर सेवा प्रदाता के आइकॉन को क्लिक करें।

(3) इसके उदाहरण के लिये हम NET ENGLISH के साइट पर जाने की तैयारी कर रहे हैं। किसी वेबसाइट पर जाने के लिये आपको उसका पता जानना जरूरी है।

(4) आप देख रहे हैं कि ई-रेखांकित आलेख बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह लिंक दर्शाता है। ये वेबसाइट के अन्य हिस्सों के सम्पर्क सूत्र हैं हमें ट्रेनिंग में जाना हो तो अपना माउस मैटर क्लिक करना होगा।

(5) तत्काल स्क्रीन का दृश्य बदलेगा और स्क्रीन पर ट्रेनिंग का पेज आ जायेगा। एक ही बार में साइट में सभी चीजें दिखाई नहीं देती हैं। इसके लिये आपको स्क्रीन के दाहिनी तरफ के बार को स्क्राल करके नीचे जाना चाहिये।

(6) इसी पैक आइकॉन पर क्लिक करने से आप पहले वाले वेब पर आ जायेंगे। यदि आप फारवर्ड को क्लिक करते हैं तो आप आगे ट्रेनिंग पेज की तरफ बढ़ जायेंगे। तीर के ये निशान आगे-पीछे जाने में सहायता प्रदान करते हैं।

 (7) बुनियादी रूप से यही सब कुछ वेबसाइट के आस-पास होता है। रेखांकित लिंक को

 

आप क्लिक करके नये पेज पर जा सकते हैं। बेब ठिकानों को खोजना- वेबसाइट का पता मालूम हो तो वेबसाइट खोजना सरल होता है। यदि पता मालूम नहीं है तो सॉफ्टवेयर का उपयोग करना होगा। इसके दो तरीके हैं-

 (1) हम CDAK की वेबसाइट खोजने की कोशिश कर रहे हैं, इसके लिये पतों वाली बार में CDAC टाइप करते हैं और इण्टर कुंजी को दबाते हैं।

(2) एक्सप्लोरर में खर्च इंजन YAHOO INFOSECK. COM टाइप करने से इस ठिकाने पर आप आ जाते हैं। फिर इसके लिये पेज का खर्च खाने में CDAC का पता मालूम कर सकते हैं। वेब पर जानकारी हासिल करना- किसी भी वेबसाइट पर सामान्य रूप से दिखने वाली जानकारी से ज्यादा सामग्री होती है।

 

इसे यहाँ से खरीद सकते हैं-

(1) यदि आप सस्ते या मुफ्त सॉफ्टवेयर हासिल करना चाहते हैं तो नेट का कनेक्शन अनिवार्य है।

(2) स्क्रीन की बाईं तरफ से निचले हिस्से में मुख्य प्रोग्राम के अलग-अलग समूह हैं। यदि आप इमेज के प्रोग्राम का सम्पादन चाहते हैं तो उदाहरण के लिये आप फको क्लिक करें फिर डाउनलोड को क्लिक करें।

 

(3) खरीदारी का वेब का एक अद्भुत केन्द्र है। इसके उदाहरण के लिये हम AMAZON BOOKS STORE पर जाते हैं। इस प्रकार मनपसन्द किताब खोज सकते हैं।

(4) किताबें खरीदने के लिये हमें सिर्फ एड-दुशॉपिंग बॉस्केट पर क्लिक करना होगा और भुगतान के लिये तरीके का ब्यौरा देना होगा।

(5) सीडी खरीदने की यह बेहतर जगह है। सीडी के कई ऑन लाइन म्यूजिक स्टोर मौजूद हैं। आप अपने मन पसन्द सीडी टाइटल खोज सकते हैं। उनके गानों का मुखड़ा भी सुन सकते हैं।

 

प्रश्न-18. ई-लाइब्रेरी का अर्थ समझाइये।

उत्तर- ई-लाइब्रेरी का अर्थ या आशय- ई-लाइब्रेरी से आशय उस डिजिटल लाइब्रेरी से है, या डिजिटल पुस्तकालय से है, जहाँ पर हमें फिजिकल रूप से नहीं जाना पड़ता तथा 365 दिन हम 24 घंटे इस लाइब्रेरी का उपयोग कर सकते हैं तथा अपने अनुसार अध्ययन सामग्री प्राप्त कर सकते हैं। ई-लाइब्रेरी का अर्थ एक ऐसी लाइब्रेरी से है, जहाँ पर डिजिटल रूप से सूचना और अध्ययन सामग्री एक्सेस की जाती है। इस लाइब्रेरी में इंटरनेट कनेक्शन के द्वारा कम्प्यूटर या फिर एंड्राइड मोबाइल के द्वारा हम कहीं पर भी देश के किसी भी कोने में बैठकर किसी भी समय अपने अनुसार सूचना तथा अध्ययन सामग्री प्राप्त कर सकते हैं।

 

प्रश्न-19. ई-लाइब्रेरी (इलेक्ट्रॉनिक भाइवेरी क्या है? विस्तार से समझाइये।

उत्तर- ई-लाइब्रेरी का विस्तृत रूप इलेक्ट्रोनिक लाइब्रेरी है, तथा हिन्दी में इसे इलेक्ट्रॉनिक पुस्तकालय भी कहा जाता है। क्योंकि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि वह लाइब्रेरी जिसमें हम इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों एवं स्रोतों के द्वारा अधिगम या ज्ञान प्राप्त करते हैं, इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी या ई-लाइब्रेरी के अन्तर्गत आता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों या स्रोतों जैसे- कम्प्यूटर, मोबाइल, टी.बी., रेडियो आदि के माध्यम से अनेक प्रकार की सूचनाएँ तथा विभिन्न क्षेत्रों का ज्ञान प्राप्त करना ई-लाइब्रेरी का ही एक भाग है।

 

7 ई-लाइब्रेरी में सभी स्तर के अनुसार अधिगम सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। इसमें हम प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर तक तथा अनुसंधानकर्ताओं के लिए भी सभी प्रकार की सामग्री उपलब्ध रहती है। ई-लाइब्रेरी अनुसंधान कार्य को अत्यन्त सरल बना देती है। क्योंकि इसके द्वारा समस्त प्रकार की अधिगम और अनुसंधान संबंधित सूचनाएँ तथा लिखा हुआ लेख अधिगमकर्ताओं तक बहुत ही आसानी से पहुँच जाता है। ई-लाइब्रेरी द्वारा अधिगम या ज्ञान प्राप्त करने के लिए कुछ माध्यमों की आवश्यकता होती है, जैसे- कम्प्यूटर, मोबाइल, फोन बहु माध्यम नेटवर्किंग आदि इन सभी की सहायता से ई-लाइब्रेरी बहुत ही सरल और आसान बन गयी है। ई-लाइब्रेरी में नवीनतम सूचनायें पूरी किताब के रूप में लगभग 7,000 मिलियन से अधिक नक्शे में उपलब्ध हैं, कोई भी प्रश्न डालकर हम ई-लाइब्रेरी के माध्यम से उस प्रश्न से संबंधित अनेक किताबों का विस्तृत अध्ययन कर सकते हैं तथा इस प्रकार की लाइब्रेरी से. संबंधित सूचना हम कम्प्यूटर लैपटॉप तथा आधुनिकतम स्मार्टफोन के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं, और उसके बारे में जान सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी में शिक्षार्थी को गतिशीलता तथा अन्य तकनीकी अन्तःक्रिया पर बल दिया जाता है। यह विशिष्ट आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के लिए बहुत आवश्यक और महत्वपूर्ण है।

 

इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी में हम मैंगजीन, जर्नल समाचार पत्र, किताब आदि से संबंधित सभी प्रकार की सामग्री प्राप्त कर सकते हैं, जिससे अधिगमकर्ताओं के समय की भी बचत होती है तथा पैसे की भी बचत होती है और वे विभिन्न प्रकार के अवसादों से घिरने से भी बंच जाते हैं।

 

प्रश्न-20. ई-लाइब्रेरी से सूचनाओं को प्राप्त करने के स्रोत कौन-कौन से हैं? इसका महत्व भी लिखिये।

उत्तर- ई-लाइब्रेरी से सूचनाओं को प्राप्त करने के स्रोत ई-लाइब्रेरी के माध्यम से प्रत्येक स्तर की सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए विशेष प्रकार के माध्यमों की आवश्यकता होती है, जो निम्न प्रकार है-

(1) मैगजीन द्वारा विभिन्न प्रकार की मैगजीन से हम घर बैठकर हर प्रकार की सूचनाओं को प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि हर एक विषय से संबंधित सूचना इसमें होती है।

(2) समाचार-पत्र द्वारा- समाचार पत्र ई-लाइब्रेरी का सबसे सशक्त माध्यम है जिससे विभिन्न प्रकार की घटनाओं के बारे में हम अपने मोबाइल कम्प्यूटर पर ही जान सकते हैं।

(3) किताब के द्वारा- ई-लाइब्रेरी के माध्यम से विभिन्न प्रकार की किताबें हमें देखने को मिल जाती हैं जिससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

(4) नक्शों के द्वारा- ई-लाइब्रेरी के माध्यम से विभिन्न प्रकार के नक्शे हमें उपलब्ध हो जाते हैं जो अनुसंधान, भूगोल, इतिहास आदि कई विषयों से संबंधित होते हैं। (5) टी.वी. और रेडियो द्वारा टी.वी. और रेडियो के द्वारा भी हमें विभिन्न प्रकार को सूचनाएँ ज्ञानवर्धक जानकारियाँ प्राप्त होती हैं जो इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी के माध्यम का ही प्रमुख भाग है।

(6) बेबसाइट के द्वारा- वेबसाइट के द्वारा भी विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ हम कम्प्यूटर, मोबाइल आदि के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।

 

 ई-पुस्तकालय का महत्व- ई-पुस्तकालय का महत्व निम्न प्रकार से है-

(1) ई-लाइब्रेरी को हिन्दी में ई-पुस्तकालय इलेक्ट्रॉनिक पुस्तकालय के नाम से जाना जाता है, आज के युग में डिजिटलाइजेशन अत्यधिक तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है जिसका एक परिणाम ई-पुस्तकालय था ई-लाइब्रेरी भी है। इसे हम पुस्तकालय के नाम से भी जानते हैं। ई-पुस्तकालय का आज के समय में बहुत महत्व है।

(2) आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति अपने काम में बिजी रहता है और वह अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए पुस्तकालय तक जाने का समय भी नहीं निकाल पाता है। इसलिए उनके लिए ई-पुस्तकालय बहुत ही महत्वपूर्ण है। ई-पुस्तकालय एक इलेक्ट्रॉनिक पुस्तकालय है, जहाँ पर हम किसी भी विषय से संबंधित सूचना सामग्री घर बैठे मोबाइल या कम्प्यूटर की सहायता से इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।

(3) पुस्तकालय का महत्व प्रत्येक क्षेत्र में है, चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या फिर अनुसंधान का या फिर मनोरंजन का) इलेक्ट्रॉनिक पुस्तकालय के द्वारा हम सभी प्रकार की सामग्री घर बैठे कहीं पर भी किसी भी समय प्राप्त कर सकते हैं।

 

प्रश्न-21. ई-लाइब्रेरी के क्या लाभ होते हैं? इसकी सीमाएं (दोष) भी बताइये।

उत्तर- ई-लाइब्रेरी के लाभ ई-लाइब्रेरी के लाभ निम्न प्रकार से है- -

(1) लाइब्रेरी के द्वारा छात्र को अपने समय, स्थान व गति के अनुसार भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

(2) इलेक्ट्रॉनिक माध्यम ही एक ऐसा माध्यम है जिसमें सीडी, रोम, डीवीडी, इंटरनेट, मोबाइल, लेपटॉप कम्प्यूटर का प्रयोग करने से छात्रों में अनेक प्रकार की अधिनम संबंधी स्थायी रोचक गतिविधियाँ जागती हैं।

(3) इसके द्वारा ऑनलाइन सम्प्रेषण की क्रिया भी संभावित होती है।

(4) इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी पठन सामग्री के लिए नवीनीकरण और सहायक सामग्री भी घोषित हो चुकी है।

(5) इसमें विद्यार्थियों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी कराया जाता है इससे जो भी नई सूचना लाइब्रेरी में अपडेट होती हैं वह एसएमएस के माध्यम से स्टूडेंट तक तत्कालपहुंच जाती हैं।

(6) ई-लाइब्रेरी द्वारा अधिगमकर्ताओं को उनकी व्यक्तिगत विभिन्नता एवं आवश्यकताओं के अनुसार अनुभव प्राप्त करने के लिए वेबसाइट पर अनेक प्रकार की सामग्री उपलब्ध रहती है।

(7) संस्कृति, स्थान तथा शैली में विभिन्नता होने के कारण भी अधिगमकर्ताओं को अधिगम से लाभ मिलता है।

 

ई-लाइब्रेरी के दोष या सीमाएँ- ई-लाइब्रेरी के दोष या सीमाएँ निम्न प्रकार से हैं-

(1) ई-लाइब्रेरी से सूचना या अधिगम प्राप्त करने के लिए किसी माध्यम (जैसे- कम्प्यूटर, लैपटॉप तथा मोबाइल) का प्रयोग किया जाता है, इसलिए आपको कम्प्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल आदि की तकनीकी में विशेष योग्यता होनी चाहिए।

(2) ई-लाइब्रेरी का प्रयोग उन विद्यार्थियों के लिए घातक है जो अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं।

(3) इसमें प्रोत्साहन का अभाव रहता है इसलिए बहुत से विद्यार्थी इसका उपयोग नहीं कर पाते हैं।

(4) ई-लाइब्रेरी का प्रयोग करने के लिए अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता होती है जिनका कि अभाव है।

 

प्रश्न-22. सरकारी टीवी चैनलों को प्राइवेट चैनलों से पिछड़ने के कारणों को दूर करने हेतु सरकार द्वारा कौनसे कदम उठाये जा रहे हैं?

उत्तर- तमाम सुविधाओं से लैस होने के बावजूद सरकारी टीवी चैनलों का प्राइवेट चैनलों से पिछड़ना सरकार को अखरने लगा है। दोनों के बीच बढ़ते फर्क और प्राइवेट चैनलों के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान को देखते हुए सरकार अपने टीवी चैनलों के कॉन्टेंट सुधारने की कवायद में जुट गई है। इसके लिए सरकारी टीवी चैनलों को क्रिएटिविटी एवं प्रोडक्शन के मामले में प्राइवेट चैनलों के बराबर लाने की योजना बनाई गई है भारत में सरकारी न्यूज चैनल की बात करें तो उनमें दूरदर्शन, लोकसभा, राज्यसभा सहित डीडी के तमाम क्षेत्रीय चैनल आते हैं। सरकारी चैनल की कायाकल्प को लेकर भारत सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाये हैं-

 

एक योजना के तहत केन्द्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने दूरदर्शन, राज्यसभा सहित डीडी के तमाम क्षेत्रीय चैनलों के लिए प्रोफेशनल क्रिएटिव हेड लाने का फैसला किया है, जिससे कंटेंट और प्रोडक्शन की क्वालिटी प्राइवेट चैनलों की भाँति हो सके। इस पूरी प्रक्रिया को 2021 से पहले पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है।

 

दरअसल, सरकार को लगता है कि सरकारी चैनलों की अपनी एक विश्वसनीयता है। सरकार द्वारा दर्शकों की उम्मीदों को ध्यान में रखते हुए अपने टीवी चैनलों में क्रिएटिव हेड लाए जाएंगे। उन पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होगी कि पूरे चैनल की शक्लो-सूरत को किस तरह बदला जाय? वो चैनलों को दर्शकों की अपेक्षाओं, खासकर युवाओं की पसंद और रूचियों को ध्यान में रखते हुए जरूरी बदलाव का खाका खीचेंगे। पिछले दिनों प्रसार भारती में हुई एक मीटिंग में इन क्रिएटिव हेड्स की नियुक्ति को मंजूरी दी जा चुकी है। सरकारी चैनलों को प्राइवेट चैनलों का लुक देने की कवायद पर काम शुरू हो चुका है।

 

इस सिलसिले में पिछले दिनों आठ वीडियो वॉल बनाई जा चुकी हैं। डीडी के 68 में से 62 चैनलों को डिजिटल बनाने का काम हो चुका है। सरकार को लगता है कि उसके पास दर्शकों का एक बड़ा समूह है और पहुँच के मामले में डीडी और सरकारी चैनलों का दायरा निजी चैनलों से कहीं ज्यादा है। डीडी फिलहाल फ्री डिश की मदद से लगभग 2.25 करोड़ घरों तक पहुँच रहा है, जिसमें 104 फ्री चैनल दिखाए जा रहे हैं। सरकार का लक्ष्य आने वाले समय में इसे 5 करोड़ घरों तक पहुँचाने का है।

 

प्रश्न-23. 'आभासी कक्षा' से क्या आशय है? इसके क्या लाभ हैं?

उत्तर- विगत अनेक वर्षों से कक्षा का विचार एक भौतिक स्थान (कक्षा) से जुड़ा था जहाँ एक शिक्षक अपने छात्रों की कक्षाएँ लेता (पढ़ाता है। प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, कुछ समय पहले एक नए प्रकार की कक्षा की धारणा उभरी। इस धारणा से जो नई कक्षा बनी उसे 'आभासी कक्षा' कहते हैं।

 

आभासी कक्षा (वर्चुअल क्लासरूम) को एक डिजिटल वातावरण के रूप में जाना जाता है जो सीखने की प्रक्रिया के विकास को सक्षम बनाता है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) छात्र को अध्ययन सामग्री का उपयोग करने की अनुमति देता है, और बदले में, शिक्षक और अन्य छात्रों के साथ बातचीत करता है। एक आभासी कक्षा की कोई भौतिक सीमा नहीं है। इसकी सीमाएँ कम्प्यूटर के माध्यम से पहुँच की उपलब्धता से जुड़ी हैं। दूसरी ओर, छात्र किसी भी समय और कहीं से भी अपनी कक्षाएँ लेने के लिए कक्षा में 'प्रवेश' कर सकता है। पारंपरिक कक्षाओं के विपरीत, जहाँ शिक्षक शारीरिक रूप से उपस्थित होता है और छात्र के कार्यों पर अधिक नियंत्रण रखता है। आभासी कक्षा में वह छात्र होता है जो स्वयं यह तय करता है कि उसे कब, कैसे और अध्ययन करना है ? वर्चुअल क्लासरूम में आमतौर पर अलग-अलग उपकरण होते हैं जिनका अध्ययन करने वाला व्यक्ति उपयोग कर सकता है। इस प्रकार के शैक्षिक वातावरण में वीडियोकॉन्फ्रेसिंग, अध्ययन सामग्री डाउनलोड करना, मंचों और बातचीत में भागीदारी और इंटरैक्टिव अभ्यास सामान्य बात है। यहाँ यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण होगा कि, हालांकि ऐसी संस्थाएँ हैं जो पूरी तरह से ऑनलाइन प्रशिक्षण प्रदान करती हैं, पारंपरिक अध्ययन केन्द्र हैं जो शैक्षिक प्रस्ताव की गुणवत्ता में सुधार के लिए आभासी कक्षाओं के साथ अपने स्कूलों या विश्वविद्यालयों के प्रस्ताव को पूरा करते हैं। आभासी कक्षाओं के लाभ-हाल के वर्षों में वर्चुअल क्लासरूम से मिलने वाले अनेक लाभों के कारण इनकी काफी बड़ी संख्या में वृद्धि हुई है। इसके निम्नलिखित लाभ हैं-

 

(1) से किसी को भी किसी भी प्रकार की बाधाओं के बिना, अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को जोड़कर अपने प्रशिक्षण में सुधार करने की अनुमति देते है।

(2) यह कोई कम बात नहीं है कि इसमें अध्ययन आराम से किया जा सकता है, जैसे घर पर सोफे पर बैठकर।

(3) आभासी कथा में निहित सभी सामग्री, संसाधनों और अभ्यासों तक पहुँच स्थायी है। यह प्रशिक्षण के पूरे स्थापित अवधि के लिए दिन के किसी भी समय सदैव खुला है। इस तरह, छात्र इसे उस समय ले जा सकता है और अपनी गति से जो उसे सबसे अच्छा लगता है, जब उसके पास खाली समय हो ।

(4) इसका एक लाभ यह है कि यह दो कारणों से छात्र के लिए लाभदायक है। एक तो यह कि इसमें समय की बचत होती है क्योंकि आपको किसी भी स्कूल में जाने के लिए समय नष्ट नहीं करना होता। दूसरा यह कि छात्र को उस स्थान (कक्षा) तक जाने में होने वाले अनावश्यक व्यय में भी बचत होती है।

 

प्रश्न-24. भौतिक कक्षा तथा आभासी कक्षा में अन्तर समझाइये।

 उत्तर- एक आभासी कक्षा एक ऑनलाइन सीखने का वातावरण है जो शिक्षकों और छात्रों को संवाद, बातचीत, सहयोग, विचारों की व्यवस्था करने की अनुमति देता है। एक आभासी कक्षा छात्रों को ग्रह पर कहीं भी गुणवत्ता वाले शिक्षकों तक पहुँचने को सक्षम बनाती है जब तक कि उन दोनों के पास एक विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्शन न हो। यह समकालिक सीखने के लिए आम बाधाओं जैसे लागत, दूरी और समय इत्यादि को तोड़ सकता है।

 

(1) वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की क्षमता (ताकि शिक्षक और छात्र एक दूसरे को देख सकें)

(2) ऑडियो कॉन्फ्रेंसिंग (ताकि प्रतिभागी एक दूसरे को सुन सकें

(3) वास्तविक समय पाठ चैट।

(4) इंटरएक्टिव ऑनलाइन बाइट बोर्ड (ताकि उपयोगकर्ता एक ही ऑनलाइन पेज पर बातचीत कर सकें) ।

(5) शिक्षण सामग्री की लाइब्रेरी (अधिक संरचित पाठ प्रदान करने के लिए (आवश्यक)

(6) शिक्षक उपकरण और नियंत्रण (एक भौतिक कक्षा की तरह) । भौतिक कक्षा तथा आभासी कक्षा में अन्तर- कई मायनों में, एक ऑनलाइन कक्षा केवल भौतिक कथा को प्रतिबिम्बत करती है। एक भौतिक कक्षा में, छात्र को शिक्षक को देखने और सुनने में सक्षम होना चाहिए, अन्य छात्रों को देखना और सुनना, वाइट बोर्ड अपनी स्वयं की शिक्षण सामग्री के बारे में अच्छा विचार रखना चाहिए। एक आभासी कक्षा में, एक छात्र थीडियो / ऑडियो स्ट्रीम के माध्यम से शिक्षक को देख और सुन सकता है ऑनलाइन व्हाइट बोर्ड शिक्षकों को नेत्रहीन रूप से विचारों को समझाने और अभ्यास के माध्यम से सहयोग करने की अनुमति देता है।



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