गलता लोहा
- शेखर जोश
पाठ-परिचय शेखर जोशी द्वारा रचित
गलता लोहा कहानी जातिगत विभाजन पर कां कोणों से टिप्पणी करने वाली कहानी है। इस
कहानी में एक मेधावी एवं निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन अपने पैतृक व्यवसाय को छोड़कर
अन्य जातीय व्यवसाय को अपना लेता है। यह इस समय होता है जब मोहन किन्हीं
परिस्थितियों वश उस मनोदशा तक पहुँचता है और उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता
है। सामाजिक विधि निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता है और
अपने काम में भी कुशलता दिखाता है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और धन चलाने की विद्या का ज़िक्र आया है।
उत्तर- धनराम लोहार पिता का बालक था।
उसके दिमाग में गणित नहीं बैठता था। मास्टर त्रिलोक सिंह उसे तेरह का पहाड़ा
पढ़ते-पढ़ते थक जाते थे और घंटी से पीटते थे। उधर धनराम के पिता गंगाराम उसे लोहार
का काम सिखा रहे थे। वे उसे सान चढ़ाना, धौकनीक तथा घन चलाना सिखा रहे थे। वे भी
गलती करने पर उसे छड़ी या हत्थे से पीटते थे। इस प्रकार धनराम एक साथ दो-दो
विद्याएँ सीख रहा था- पढ़ाई की विद्या तथा लोहार-कर्म की विद्या।
उत्तर- धनराम लोहार पिता का बालक था।
उसके दिमाग में गणित नहीं बैठता था। मास्टर त्रिलोक सिंह उसे तेरह का पहाड़ा
पढ़ते-पढ़ते थक जाते थे और घंटी से पीटते थे। उधर धनराम के पिता गंगाराम उसे लोहार
का काम सिखा रहे थे। वे उसे सान चढ़ाना, धौकनीक तथा घन चलाना सिखा रहे थे। वे भी
गलती करने पर उसे छड़ी या हत्थे से पीटते थे। इस प्रकार धनराम एक साथ दो-दो
विद्याएँ सीख रहा था- पढ़ाई की विद्या तथा लोहार-कर्म की विद्या।
प्रश्न धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था?
उत्तर - धनराम स्वयं को नीची जाति का
तथा मोहन को ऊँची जाति का समझता था। इस कारण उसके मन में बचपन से मोहन के प्रति
सम्मान की भावना बैठ गई। दूसरे, मोहन कक्षा में उससे अधिक होशियार था।
इसलिए मास्टर त्रिलोक सिंह ने उसे कक्षा का मॉनीटर बना दिया था। तोसरे, मास्टरजी कहा करते थे कि वह एक दिन बड़ा होकर उनका तथा स्कूल का नाम
करेगा। इन सब बातों के कारण धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझता था।
प्रश्न धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों?
उत्तर- धनराम को मोहन के हथौड़ा चलाने
और लोहे की छड़ की गोलाई की कुशलता पर इतना अधिक आश्चर्य नहीं हुआ जितना कि उसके
सीधे-साधे एवं सामान्य व्यवहार पर। मोहन पुरोहित खानदान का पुत्र था। उसे ऊँची
जाति का माना जाता था। सामान्यतः कोई ब्राह्मण बालक लोहार जैसे निम्न माने जाने वाले
कार्य में हाथ नहीं डालता। धनराम को इसी बात पर आश्चर्य हुआ कि मोहन ने अपनी जाति
को भुलाकर यह काम कैसे स्वीकार कर लिया।
प्रश्न मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
उत्तर - लखनऊ आने के बाद मोहन के जीवन में
परिवर्तन आ गया। यहाँ उसे अपने घर से दूर रहना था। गाँव में रहने पर उसकी शिक्षा
के दरवाजे बंद थे। यहाँ आकर वे रास्ते खुले। उसे पढ़ने का अवसर मिला लेकिन यह
पढ़ने का अवसर उसे आनन्द नहीं दे पाया क्योंकि उसे दिनभर घरेलू नौकर की तरह काम
करना पड़ता था। शहर के एकदम नये वातावरण एवं रात-दिन घर के कामों में व्यस्त रहने
के कारण गाँव का मेधावी छात्र मोहन वहाँ पढ़ाई में बहुत पीछे रह गया। अतः यह
अध्याय बहुत सुखद नहीं था, परन्तु था तो नया अध्याय ही।
प्रश्न मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने जवान के चाबुक कहा है और क्यों?
उत्तर - मास्टर त्रिलोक सिंह ने धनराम
को ये शब्द कहे- 'तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है - रे। विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें
?" लेखक के इन व्यंग्य-वचनों को 'जबान के चाबुक' कहने के पीछे मास्टर की मानसिकता को
दर्शाया है। धनराम के घर लोहा से सम्बन्धित कार्य होता था उसका पढ़ाई-लिखाई में
ध्यान नहीं था। अतः मास्टर ने खीझ कर इस कथन को कहा है।
प्रश्न (1) बिरादरी का यही सहारा होता है।
(क) किसने किससे कहा?
(ख) किस प्रसंग में कहा?
(ग) किस आशय से कहा?
(घ) क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?
उत्तर- (क) यह वाक्य वंशीधर तिवारी ने
अपनी बिरादरी के युवक रमेश से कहे।
(ख) मोहन की पढ़ाई के बारे में।
(ग) वंशीधर तिवारी ने उपर्युक्त वाक्य कृतज्ञता के भाव से कहा।
(घ) इस कहानी में वंशीधर तिवारी का आशय सिद्ध नहीं हो सका। रमेश ने जिस सहानुभूति से मोहन को पढ़ाना लिखाना स्वीकार किया था, उसे वह निभा नहीं सका। उसने मोहन का पूरी तरह शोषण किया।
(2) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी-
कहानी का यह वाक्य-
(क) किसके लिए कहा गया है?
(ख) किस प्रसंग में कहा गया है?
(ग) यह पात्र विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है?
उत्तर- (क) यह वाक्य मोहन के लिए कहा
गया है।
(ख) मोहन धनराम लोहार को आफर पर बैठा था। धनराम एक मोटी छड़ वाले लोहे
को ठीक से मोड़ नहीं पा रहा था तभी मोहन ने अपनी ऊँची जाति की परवाह न करते हुए वह
छड़ सँभाली और कुशलता से उसे गोल कर दिया। इस सफलता के कारण उसकी आँखों में सृजन
की चमक आ गई। उसे लगा कि यह प्रशंसनीय काम उसके हाथों से हुआ है।
(ग) (1) जाति-धर्म निरपेक्ष व्यवसाय,
(2) उदारता,
(3) लगनशीलता,
(4) परिश्रमी,
(5) कार्यकुशलता।
पाठ के आस-पास
प्रश्न गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फर्क है? चर्चा करें और लिखें।
उत्तर मोहन को गाँव के जीवन में गरीबो, साधनहीनता और प्राकृतिक बाधाओं का सामना करना पड़ा। पढ़ाई जारी रखने
के लिए उसे रोज दो मोल की ऊँचाई चढ़ना तथा पहाड़ी नदी को पार करना पड़ता था। बरसात
के दिनों में कभी-कभी दूसरे गाँव में रुकना पड़ता था।
शहर में आकर ये बाधाएँ तो नहीं रहीं, लेकिन संघर्ष और भी कड़े हो गए। उसे दिनभर नौकरों की तरह काम करना
पड़ता था। रमेश बाबू के घरवालों की हर बात माननी पड़ती थी। गली-मुहल्ले के लोगों
के काम भी करने पड़ते थे। जिस पढ़ाई के लिए वह शहर में आया था, वह पढ़ाई उसे नाममात्र को मिल सकी। इस प्रकार मोहन के जीवन में संघर्ष
ही संघर्ष रहे।
प्रश्न एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें।
उत्तर - मास्टर त्रिलोक सिंह एक परंपरागत अध्यापक हैं। वे बच्चों को
मार-पीटकर पढ़ाई कराने में विश्वास रखते हैं। बच्चों को डाँटना, पीटना और कटु वचन कहना मानो उनका अधिकार है। वे धनराम पर तीनों तरीके
आजमाते हैं।
मास्टर जी के मन में जातिगत उच्चता और
नीचता का भाव भी गहराई से बैठा हुआ है। इसलिए वे मोहन को प्रेम करते हैं तथा धनराम
का तिरस्कार करते हैं। धनराम के दिमाग में लोहा होने का व्यंग्य-वचन कहना शोभनीय
नहीं कहा जा सकता। वे धनराम से मुफ्त में दर्शतियों पर धार भी लगवाते हैं। इसकी भी
प्रशंसा नहीं की जा सकती।
मास्टर त्रिलोक सिंह बच्चों को पढ़ाने
लिखाने, सिखाने और आगे बढ़ाने में रुचि लेते हैं। उनके तरीके अशोभनीय हो सकते
हैं, किंतु शिक्षा-कर्म में उनको निष्ठा सच्ची है। निष्कर्ष में कह सकते
हैं कि मास्टर त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व खूबियों और खामियों का मिश्रण है।
प्रश्न गलता लोहा कहानी का अंत एक खास तरीके से होता है। क्या इस कहानी का कोई अन्य अंत हो सकता है? चर्चा करें।
उत्तर- इस कहानी के अंत में यह स्पष्ट
नहीं होता कि मोहन ने लोहे को गोल करने के बाद केवल सृजन-सुख लूटा और खेती करने
चला गया, या इस व्यवसाय को अपना लिया। यदि लेखक सांकेतिक रूप में यह स्पष्ट कर
देता कि मोहन और धनराम दोनों ने मिलकर अपने इस व्यवसाय को आगे बढ़ाया ताकि कहानी
के द्वारा यह संदेश जाता कि अनुभव, योग्यता और भ्रम के द्वारा किसी कार्य
को आगे बढ़ाया जा सकता है।
>> भाषा की बात - -
प्रश्न पाठ में निम्नलिखित शब्द लौहकर्म से
संबंधित हैं। किसका क्या प्रयोजन है? शब्द के सामने लिखिए-
1. धौंकनी
2. दराँती
3. हसी
4. आफर
5. हथौड़ा
उत्तर- 1. धौंकनी यह आग को सुलगाने या धधकाने के
काम आती है।
2. दराँती दराँती मूलत: खेत में घास या
फसलें काटने के काम आती है। लोहार मुख्य रूप से दराँती जैसे औजार बनाते हैं।
3. सँड़सी - लोहे की दो छड़ों का बना हुआ कैंचीनुमा औज़ार
जिससे गर्म छड़ें, बटलोई आदि पकड़ते हैं।
4. आफर भट्टी जिसमें लोहा तपाया जाता है। -
5. हथौड़ा लोहे को ठोकने और पोटने के काम आने वाला औजार
प्रश्न पाठ में काट-छाँटकर जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है कोई पाँच शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर- उलट-पलट जब मैं घर पहुँचा तो देखा कि बिल्ली घर
में घुसकर उलट- पुलट कर रही है।
उठा-पटक करना -जब मास्टर जी कक्षा में पहुँचे तो सारे
बच्चे धमाचौकड़ी मचा रहे थे और आपस में कर रहे थे।
पढ़-लिखकर मोहन के पिता चाहते थे कि मोहन बड़ा आदमी बने ।
घूम फिरकर - राजेश बगीचे में घूम-फिरकर लौट आया।
खा-पीकर अर्जुन रोज सुबह खा-पीकर स्कूल जाता है।
प्रश्न बूते का प्रयोग पाठ में तीन स्थानों पर हुआ है उन्हें छाँटकर लिखिए और जिन संदर्भों में उनका प्रयोग है, उन संदर्भों में उन्हें स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- 1. बूढ़े वंशीधर जी के बूते का अब यह सब
काम नहीं रहा। यहाँ इसका अर्थ है 'वश का' या 'सामर्थ्य का' अर्थात् अब बूढ़े वंशीधर यह सब पुरोहिती का काम करने योग्य नहीं रहे।
उनके शरीर में अधिक शक्ति नहीं रही।
2. यही क्या, जन्म-भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहाँ कर पाते हैं। यहाँ 'बूते पर' का अर्थ है- आश्रय पर, सहारे पर।
3. दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे।
यहाँ' बूते पर' का अर्थ है- सहारे, बल पर।
प्रश्न मोहन ! थोड़ा दही तो ला दे बाजार से।
मोहन! ये कपड़े धोबी को दे तो आ ।
मोहन! एक किलो आलू तो ला दे।
ऊपर के वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए
हैं। इन वाक्यों में आप सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए।
उत्तर- आप थोड़ा दही तो ला दें बाजार
से।
तू ये कपड़े धोबी को दे तो आ
तू एक किलो आलू तो ला दें।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मोहन के चरित्र की कोई दो विशेषताएं बताइए जो आपको प्रभावित करती है।
उत्तर- "गलता लोहा" कहानी का
नायक मोहन ब्राह्मण जाति का पात्र है। उसके चरित्र को दो विशेषताएँ हमें अधिक
प्रभावित करती है-
1. अभिजात भाईचारे के स्थान पर वह मेहनत
निम्न जाति के भाई-चारे को महत्व देता था।
2. मोहन अपने बड़ों को जवाब न देकर उनकी
आज्ञा का पालन करता था जब पिता ने यजमान के यहाँ रुद्राभिषेक के लिए कहा तो वह
पिता को जवाब न देकर खेतों में काम करने चला गया। इसी सन्दर्भ में वह लखनऊ के
कष्टों को बताकर पिता के हृदय को दुःखी करना नहीं चाहता था।
प्रश्न- धनराम नाम का बालक कक्षा तीन तक ही पढ़ाई क्यों कर सका?
उत्तर- लुहार जाति का बालक धनराम दूसरे
खेतिहर या मजदूर परिवार के बच्चों के समान कक्षा तीन तक की पढ़ाई कर सका। इसके
अनेक कारण थे-
1. वह मन्दबुद्धि बालक रहा हो या मन में बैठा डर कि पूरे दिन घोंटा
लगाने पर भी उसे तेरह का पहाड़ा याद न हो सका।
2. स्कूल में मास्टर साहब की पिटाई, घर पर पिता की पिटाई से तंग आकर उसने
पढ़ाई छोड़कर पैतृक धंधा अपनाया।
3. मास्टर साहब का उपेक्षापूर्ण बर्ताव व व्यंग्य वाणी के कारण उसने
विद्यालय छोड़ना ?उचित समझा।
