Class 11 Hindi Chapter 1 Namak ka Daroga Question Answer

Sachin ahirwar
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अध्याय 1

 

नमक का दारोगा

 

- प्रेमचन्द-

पाठ-परिचय- प्रेमचंद ने आदर्शोन्मुख यथार्थवाद पर आधारित अनेक कहानियाँ लिखीं 'जिनमें 'नमक का दारोगा' अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहानी की मूल संवेदना धन के ऊपर धर्म की जीत दिखाना है। हालांकि पहले तो धन का जोर चल जाता है, लेकिन बाद में धर्म की जीत होती है। कहानी का प्रमुख पात्र मुंशी वंशीधर ईमानदार कर्मयोगी है। दूसरी ओर पंडित अलोपीदीन उसे अपने धन के बल पर खरीदना चाहते हैं लेकिन असफल रहते हैं। अपनी असफलता से कुंठित होकर धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से निलंबित करवा देते हैं। लेकिन अंत में सत्य की जीत होती है। वे सरकारी नौकरी से बर्खास्त वंशीधर को एक ऊँचे वेतन पर अपनी जायदाद का मैनेजर रखना चाहते हैं। इसके लिए वह धन का बल नहीं दिखाते हैं बल्कि निवेदन करते हैं, "परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारेवाला बेमुरौवत, उद्दंड, किंतु धर्मनिष्ठ दारोगा बनाए रखे।" इस घटना से पहले ही कहानी के माध्यम से प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार पाठकों के समक्ष उजागर हो जाता है। साथ ही हमें यह ज्ञात होता है कि ईमानदार तथा सच्चे व्यक्ति को अपनी लड़ाई अकेले ही लड़नी पड़ती है। कहानी का अंत सत्य की जीत के साथ होता है।

 

    गद्यांश

    दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी जिसे देखिए, वही पंडितजी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं, मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला, कल्पित रोजनामचे भरने वाले अधिकारी वर्ग, रेल में बिना टिकट सफर करने वाले बाबू लोग, जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार, यह सब-के-सब देवताओं की भाँति गरदनें चला रहे थे। (प्रश्न बैंक, 2022)

शब्दार्थ - जीभ-जागना इधर-उधर की फालतू बातें करना। टीका-टिप्पणी - - प्रतिक्रिया, विचार। निंदा की बौछार बुराई करना पाप कटना समाप्त होना। कल्पित - कल्पना से, जो वास्तविक न हो। रोजनामचा वह रजिस्टर जिस पर रोज की कार्यवाही लिखी जाती है। जाली दस्तावेज नकली कागज साहूकार ब्याज पर पैसा उधार देने वाले। - गरदनें चलाना बहुत बातें बनाना

सन्दर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'आरोह' के पाठ 'नमक का दारोगा' से लिया गया है। इसके रचियता मुंशी प्रेमचंद जी है।

प्रसंग - शहर में पंडित अलोपीदीन का खूब मान-सम्मान और नाम था। परन्तु जब वे नमक की चोरी के सिलसिले में पकड़े गए तो शहर भर के लोग भौंचक्के रह गए। इस समाचार को सुनकर उनमें हलचल मच गई।

व्याख्या- पंडित अलोपीदीन बंदी बनाए जाने पर बेहोश हो गए। यह रात का समय था सब गहरी नींद में सो रहे थे, चारों ओर सन्नाटा था परंतु पंडित जी के बुरे कर्मों की चर्चा बड़े व्यापक रूप में हो रही थी। सबेरा होते ही बच्चे-बूढ़े सभी पंडित अलोपीदीन जैसे सम्मानित सेठ की गिरफ्तारी को लेकर तरह-तरह की बातें बना रहे थे तथा उनकी निंदा कर रहे थे। इस निंदा को सुनकर ऐसा लगता था मानों अब बुराई का अंत हो गया है। जो लोग खुद भ्रष्टाचारी और बेईमान हैं, जो दूध के नाम पर पानी बेचते हैं, नकली बहीखाते बनाते हैं, बिना टिकट रेल यात्रा करते हैं, सेठ और साहूकार जाली दस्तावेज बनवाते हैं, वे सब भी सेठ अलोपीदीन के भ्रष्टाचार की खुलेआम निंदा कर रहे थे।

विशेष- (i) दूसरों में दोष देखने की प्रवृत्ति का वर्णन किया गया है। (ii) गद्य के आरम्भ में सूत्रात्मक शैली को अपनाया गया है। (iii) उर्दू भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है।

 

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोतर

 

प्रश्न 1. कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?

 उत्तर- कहानी में हमें कहानी का मुख्य पात्र मुंशी वंशीधर सबसे अधिक प्रभावित करता है क्योंकि वह ईमानदार, कर्तव्यपरायण एवं सत्यनिष्ठ व्यक्ति है।

 

प्रश्न 2. 'नमक का दारोगा' कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?

उत्तर- 'नमक का दारोगा' कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के दो महत्वपूर्ण पहलू उभर कर सामने आते हैं। पहला वो जब वह अपने धन के बल पर मुक्त हो जाते हैं और दूसरा वो जब वह वंशीधर की ईमानदारी तथा धर्मनिष्ठता से प्रभावित होकर उसे अपने यहाँ उच्च पद पर आसीन करते हैं।

 

प्रश्न 3. कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि ये समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं-

(क) वृद्ध मुंशी, (ख) वकील, (ग) शहर की भीड़।

 

उत्तर- (क) वृद्ध मुंशी

        वृद्ध मुंशी समाज में व्याप्त रिश्वतखोरी को उजागर करता है। वह अपने बेटे को नौकरी ढूँढ़ने जाते समय ऊपरी आय के विषय में जमकर बताता है। वह हर तरह से अपने बेटे के मन में ऊपरी आय का लोभ पैदा करने का प्रयास करता है।

 

(ख) वकील -

        वकीलों के माध्यम से यह उजागर हुआ है कि वे पैसे वालों के लिए अन्याय का भी साथ देते हैं। वे धन के लोभ में फँसकर न्याय का गला घोंट देते हैं।

 

(ग) शहर की भीड़

        जब पंडित जी को गिरफ्तार किया जाता है तो शहर की भीड़ उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ती है। जिससे उजागर होता है कि आम जनता को मनोरंजन के लिए कोई-न-कोई अवसर चाहिए।

 

प्रश्न 4. निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए- नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।

(क) यह किसकी उक्ति है?

(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया

(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?

उत्तर- (क) यह उक्ति दारोगा वंशीधर के पिता वृद्ध मुंशी की है।

(ख) मासिक वेतन एक निश्चित तिथि पर मिलता है और फिर धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार पूर्णमासी का चाँद एक रात को पूरा दिखता है और फिर धीरे-धीरे कम होते हुए लुप्त हो जाता है।

(ग) नहीं, एक पिता को अपने पुत्र से ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। मेरा अनुभव यह है कि ऊपरी आय से मन में ग्लानि उपजती है। मासिक वेतन से मन प्रसन्न होता है।

 

प्रश्न 5. 'नमक का दारोगा' कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- 'नमक का दारोगा' कहानी के अन्य शीर्षक 'ईमानदार दारोगा' अथवा 'कर्तव्यपरायण दारोगा' रखे जा सकते हैं। कहानी में दारोगा वंशीधर एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में चित्रित है। इसलिए पहला शीर्षक उपयुक्त है। वहीं वह अपना कर्तव्य पूर्ण समर्पण से निभाता है। इसलिए दूसरा शीर्षक भी उपयुक्त है।

 

प्रश्न 6. कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते ?

उत्तर- अलोपीदीन का वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे उसकी धर्मनिष्ठा, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता तथा सच्चाई प्रमुख कारण हो सकते हैं। हर्म भी इस कहानी का अंत कुछ इसी प्रकार करते। कहानी का यह अंत पूर्णतः उपयुक्त है।

 

प्रश्न 2. नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों ?

उत्तर - वर्तमान समाज में अनेक ऐसे पद हैं जिन्हें पाने के लिए लोग लालायित रहते हैं। जिनमें प्रमुख हैं- पुलिसकर्मी, परिवहनकर्मी, सरकारी डॉक्टर, सरकारी विभागों में अफसरी, बड़े-बड़े नेताओं के सहायक आदि। लोग इन पदों को पाने के लिए लालायित इसलिए रहते हैं क्योंकि इनमें अच्छी आय के साथ-साथ मान-सम्मान भी मिलता है।

 

प्रश्न 3. अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्कों ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो।

उत्तर- बड़े-बड़े नेता चुनाव से पूर्व बड़े-बड़े वायदे करते हैं। तब मन कहता है कि क्या ऐसा हो पाएगा। लेकिन जब वह चुनाव जीत जाते हैं तो अपने वायदों को पूर्ण रूप से भूल जाते हैं। इस प्रकार तर्क भ्रम को दूर कर देते हैं। नेता भी सामान्य व्यक्ति की तरह वायदे भूल जाते हैं। तथा पुराने ढर्रे पर चलते हैं।

 

प्रश्न 4. पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया। वृद्ध मुंशी जी द्वारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए -

(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।

(ख) जब आपको पढ़ना लिखना सार्थक लगा हो।

(ग) 'पढ़ना-लिखना' को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा – साक्षरता अथवा शिक्षा ?

(क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं? )

उत्तर- (क) जब पढ़ने-लिखने के बाद हमें नौकरी नहीं मिलती तो हमें पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगता है।

(ख) जब मैंने पढ़ाई-लिखाई के दौरान अच्छा साहित्य पढ़ा और उसे अपने जीवन में उतारा तो मुझे अपना पढ़ना-लिखना सार्थक लगा।

(ग) पढ़ना-लिखना' को शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा। हम इन दोनों को समान नहीं मानते हैं।

 

प्रश्न 5. 'लड़कियाँ हैं, वे घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।' वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?

उत्तर- समाज में लड़कियों को बोझ माना जाता है क्योंकि उसके बड़े होने पर समाज को उसकी शादी की चिंता सताने लगती है। उसके विवाह में भी काफी धन खर्च करना पड़ता है। यह वाक्य इसी स्थिति की वास्तविकता को प्रकट करता है।

 

> समझाइए तो जरा-

 

प्रश्न 1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।

उत्तर- इस वाक्य में व्यंग्य है। महत्व बड़े पद का नहीं है, ऊपर की कमाई का है। अतः सांसारिक रूप से चालाक, स्वार्थी और समझदार व्यक्ति को ऊपरी आय वाली नौकरी करनी चाहिए।

 

प्रश्न 2. इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि अपनी पथ-प्रदर्शक और आत्मावलंबन ही अपना सहायक था।

उत्तर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के इस युग में वंशीधर जैसे व्यक्ति अपने धैर्य, बुद्धि तथा स्वावलम्बन के सहारे ही जी सकते हैं। हमारे चारों ओर भ्रष्टाचार की दलदल है। केवल वही व्यक्ति उस दलदल से बच सकता है जो धैर्यवान हो, बुद्धिमान हो तथा स्वावलम्बी हो ।

 

प्रश्न 3. तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।

उत्तर- जो पहले से ही सोच रहे थे, वह तर्क से स्पष्ट हो गया। वंशीधर को रात को सोते- सोते अचानक पुल पर से जाती हुई गाड़ियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी। उन्हें संदेह हुआ कि जरूर इसमें कुछ गैर कानूनी काम होगा। उन्होंने तर्क से सोचा कि कोई मनुष्य रात के अँधेरे में गाड़ियाँ क्यों ले जायेगा। यह सोचते ही उनके मन में उठा भ्रम और पक्का हो गया। उन्हें लगा कि जरूर इसमें गोलमाल है।

 

प्रश्न 4. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।

उत्तर- इसका अर्थ है कि धन के बल पर न्याय और नीति को खिलौने की तरह नचाया जा सकता है। ईमानदार पुरुष को बेईमान और बेईमान को सज्जन पुरुष सिद्ध किया जा सकता है।

 

प्रश्न 5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।

उत्तर- अभी लोग रात में सोए हुए थे कि पंडित अलोपीदीन के गिरफ्तार होने की खबर कानोंकान फैल गई। लोग इस विषय में बातें करने लगे।

 

प्रश्न 6. खेद ऐसी समझ पर पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।

उत्तर- वंशीधर के बूढ़े पिता चाहते थे कि बेटा खूब रिश्वत खाए परन्तु जब उसने सत्यनिष्ठा का आचरण किया और नौकरी से हटा दिया गया तो उन्हें लगा कि बेटे की पढ़ाई- लिखाई बेकार गई क्योंकि उसने परिवार की समस्या को दूर करने का प्रयास नहीं किया।

 

प्रश्न 7. धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।

उत्तर- चालीस हजार रुपए रिश्वत मिलती देखकर भी कर्त्तव्यनिष्ठ वंशीधर अपने ईमान पर टिके रहे। तब लेखक को धर्म की शक्ति का अहसास हुआ। उन्हें लगा कि वंशीधर की धर्म- शक्ति ने अलोपीदीन की धन-शक्ति को कुचलकर व्यर्थ कर दिया।

 

 प्रश्न 8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।

उत्तर - न्याय के परिसर (अदालत) में वंशीधर की धर्म-शक्ति और अलोपीदीन की धन (घूस) शक्ति में युद्ध छिड़ गया। इधर वंशीधर सत्यमार्ग पर डटा हुआ था। उधर अलोपीदीन रिश्वत के बल पर अदालत के सभी अमलों, वकीलों और न्यायाधीशों को खरीदने में लगा हुआ था। दोनों में संघर्ष चल रहा था।

 

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न- "नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना यह तो पीर की मजार कथन किसने किससे कहा ?

उत्तर- यह कथन बाबू वंशीधर के पिता ने उनसे स्वयं कहा था।

 

प्रश्न पं. अलोपीदीन ने अपने गहरे अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए क्या किया?

उत्तर- पं. अलोपीदीन ने अपने धन के बल से ईमानदार कर्मयोगी बंशीधर को नौकरी से मुअल करा दिया। यह उनका अपराध बोध था जिसे उन्होंने समझा और सत्य के आगे झुक गए। इस अपराधबोध से मुक्ति पाने के लिए बंशीधर को बहुत ऊंचे वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त कर दिया।














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